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“भक्ति में छिपी वह शक्ति जो असंभव को भी संभव बना दे”

“भक्ति में छिपी वह शक्ति जो असंभव को भी संभव बना दे”

जानिए भक्ति में कितनी शक्ति है, कैसे यह जीवन बदल सकती है और ईश्वर को भी आकर्षित कर सकती है।

भक्ति—सिर्फ एक भावना नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है। यह वह शक्ति है जो मनुष्य को उसके सांसारिक बंधनों से ऊपर उठाकर ईश्वर से जोड़ देती है। जब मन एकाग्र होकर परमात्मा की शरण में जाता है, तो वह दुर्बल नहीं, अपितु भक्ति की शक्ति से युक्त हो जाता है।

इतिहास गवाह है कि भक्ति की शक्ति कितनी शक्ति है। ध्रुव ने मात्र पाँच वर्ष की आयु में तप कर प्रभु नारायण को प्रकट कर लिया। मीरा ने अपने प्रेम में विष का प्याला पी लिया, फिर भी उनका कुछ नहीं बिगड़ा। हनुमान जी की भक्ति ने उन्हें अशक्त वानर से महाशक्तिशाली देवता बना दिया, जिनका नाम लेते ही भय दूर हो जाता है।

भक्ति वह माध्यम है जो हमें हमारे अहंकार से मुक्त कर प्रभु की गोद में पहुँचा देती है। जब भक्त रोता है, तो ईश्वर स्वयं धरती पर उतर आते हैं। जब भक्त पुकारता है, तो सृष्टि की सारी शक्तियाँ उसकी सहायता के लिए लग जाती हैं।भक्ति की शक्ति  में वह दिव्य आकर्षण है जो ईश्वर को भी विवश कर देता है।

आज के युग में जहाँ हर ओर व्यर्थ की भागदौड़ है, वहाँ भक्ति एक ऐसा शांत और सुखद आश्रय है जो आत्मा को स्थिर करता है, मन को सुकून देता है और जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है। यह हमें सिखाती है कि शक्ति तलवार में नहीं,भक्ति की शक्ति में है; सामर्थ्य बाहुबल में नहीं, श्रद्धा में है।

जिसने सच्चे ह्रदय से भक्ति की, वह कभी अकेला नहीं रहा। उसके साथ स्वयं भगवान खड़े रहते हैं। भक्ति की शक्ति ही वह मार्ग है जो न सिर्फ मोक्ष की ओर ले जाता है, बल्कि इस जीवन को भी सुंदर, शांत और सार्थक बना देता है।

अंत में यही कहा जा सकता है:

“भक्ति से बढ़कर कोई शक्ति नहीं, क्योंकि जहाँ भक्ति है, वहाँ स्वयं भगवान हैं।”

https://bhakti.org.in/bhakti-mein-chhipi-shakti-asambhav-ko-sambhav/

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