“रामायण का रहस्य: श्रीराम ने माँ दुर्गा की आराधना क्यों की थी?”
सनातन धर्म के महान ग्रंथ रामायण में अनेक प्रसंग आते हैं जो हमें धर्म, भक्ति और जीवन की गहराइयों से जोड़ते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण प्रसंग है – भगवान श्रीराम द्वारा माता दुर्गा की पूजा। यह प्रसंग हमें बताता है कि स्वयं विष्णु के अवतार श्रीराम ने भी शक्ति की आराधना क्यों की, और इस पूजा का क्या महत्व है।
शक्ति और भक्ति का महत्व
सनातन मान्यता के अनुसार ब्रह्मांड में दो प्रमुख शक्तियाँ कार्य करती हैं – पुरुष और प्रकृति।
पुरुष (ईश्वर का पुरुष स्वरूप) सृष्टि के मूल कारण हैं।
प्रकृति (माता शक्ति) उस कारण को कार्यरूप में बदलती हैं।
बिना शक्ति के, पुरुष भी कार्य नहीं कर सकते। इसी कारण भगवान विष्णु के भी सभी कार्य माता लक्ष्मी की कृपा से ही पूर्ण होते हैं, और भगवान शिव भी माता पार्वती के बिना अधूरे माने जाते हैं।
श्रीराम और रावण का युद्ध
लंकापति रावण शिव का परम भक्त था और उसने कठोर तप करके असीम शक्ति प्राप्त कर ली थी। रावण को यह वरदान भी प्राप्त था कि देवता और दैत्य उसे नहीं मार सकते। ऐसे में रावण का वध करना सरल कार्य नहीं था।
जब भगवान श्रीराम लंका विजय की तैयारी कर रहे थे, तब देवताओं ने उन्हें सुझाव दिया कि रावण का वध केवल शक्ति की कृपा से ही संभव होगा। इसलिए श्रीराम को आदि शक्ति माँ दुर्गा की पूजा करनी चाहिए।
श्रीराम की दुर्गा पूजा का प्रसंग
यह प्रसंग शारदीय नवरात्र से जुड़ा है। मान्यता है कि श्रीराम ने अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी और नवमी तिथि पर माँ दुर्गा की आराधना की थी।
1. श्रीराम ने 108 नीलकमल (नीले कमल) अर्पित करने का संकल्प लिया।
2. जब पूजा लगभग पूर्ण होने को थी, तभी रावण ने छल से एक कमल कम कर दिया।
3. श्रीराम ने देखा कि केवल 107 कमल ही रह गए।
4. श्रीराम को स्वयं कमलनयन कहा जाता है। उन्होंने सोचा – “मेरी दोनों आँखें भी तो कमल जैसी हैं, मैं एक आँख अर्पित कर दूँ।”
5. श्रीराम ने अपनी आँख निकालने के लिए धनुष की नोक लगाई, तभी माँ दुर्गा प्रकट हुईं और बोलीं – “राम! तुम्हारी भक्ति से मैं प्रसन्न हूँ। तुम्हें विजय का आशीर्वाद देती हूँ।”
विजयादशमी का महत्व
माता दुर्गा की कृपा से ही श्रीराम ने रावण का वध किया और धर्म की विजय हुई। इसीलिए इस दिन को विजयादशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
शिक्षा और संदेश
श्रीराम द्वारा माता दुर्गा की पूजा हमें कई शिक्षाएँ देती है—
1. शक्ति की आराधना अनिवार्य है – चाहे कोई कितना ही महान क्यों न हो, शक्ति के बिना कार्य सिद्ध नहीं हो सकता।
2. भक्ति और समर्पण ही सफलता की कुंजी हैं – श्रीराम ने दिखाया कि सच्ची श्रद्धा से देवता स्वयं प्रकट होकर आशीर्वाद देते हैं।
3. धर्म की विजय निश्चित है – अन्याय और अहंकार चाहे कितना भी प्रबल हो, अंततः सत्य और धर्म ही विजयी होता है।
4. नवरात्र का महत्व – यही कारण है कि नवरात्र में माँ दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: श्रीराम ने ही क्यों माता दुर्गा की पूजा की?
क्योंकि रावण शिव का महान भक्त था और अपार शक्ति रखता था। केवल शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा की कृपा से ही उसकी शक्ति का नाश संभव था।
प्रश्न 2: यह पूजा किस समय हुई थी?
अश्विन मास (सितंबर–अक्टूबर) में शारदीय नवरात्र के दौरान।
प्रश्न 3: क्या यह पूजा केवल रामायण में ही मिलती है?
वाल्मीकि रामायण में इस प्रसंग का संकेत है। बंगाल की रामचरितमानस और देवीभागवत जैसे ग्रंथों में इसे विस्तार से बताया गया है।
प्रश्न 4: नवरात्र और दशहरा का संबंध क्या है?
नवरात्र माँ दुर्गा की आराधना का पर्व है। नवरात्र के अंत में दशमी को श्रीराम ने रावण का वध किया। इसीलिए दशहरा, नवरात्र की परिणति है।
प्रश्न 5: इस प्रसंग से हमें क्या सीख मिलती है?
यह कि ईश्वर भी जब अवतार लेते हैं, तो शक्ति की साधना करते हैं। हमें भी अपने जीवन में श्रद्धा, भक्ति और परिश्रम को अपनाना चाहिए।
श्रीराम द्वारा माता दुर्गा की पूजा केवल एक धार्मिक प्रसंग नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है। यह दर्शाता है कि शक्ति और भक्ति के संगम से ही विजय संभव है। इसीलिए आज भी भक्तजन नवरात्र में माँ दुर्गा की आराधना करते हैं और दशहरे पर धर्म की विजय का उत्सव मनाते हैं।