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कहानी उस प्राणी की जिसे केवल एक अघोरी ही बाँध सका – रहस्य और तंत्र की कथा”

कहानी उस प्राणी की जिसे केवल एक अघोरी ही बाँध सका – रहस्य और तंत्र की कथा”

“50 फीट लंबा रहस्यमयी प्राणी जिसे एक अघोरी ने बाँधा”https://bhakti.org.in/aghori-ke-bandhan-me-prani/

 

कहानी उस प्राणी की जिसे केवल एक अघोरी ही बाँध सका – रहस्य और तंत्र की कथा”


भारतवर्ष की भूमि सदा से ही रहस्यों और दिव्य चमत्कारों की साक्षी रही है। यहाँ हर पर्वत, नदी और मंदिर के पीछे कोई न कोई अलौकिक कथा छिपी है। ऐसी ही एक कथा है — एक ऐसे प्राणी की, जिसकी ताकत को देवता भी नियंत्रित न कर सके, और जिसे अंततः एक अघोरी साधक ने अपनी तांत्रिक शक्ति से बाँधा।

जब जंगल में गूंज उठी भयावह पुकार

कहा जाता है कि काशी के समीप एक प्राचीन श्मशान भूमि थी, जहाँ साधारण लोग कदम भी नहीं रखते थे।रात के अंधेरे में वहाँ से अजीब आवाज़ें आतीं — कोई हँसता, कोई रोता, और कभी-कभी हवा में घंटियों की हल्की झंकार सुनाई देती।लोग कहते  “वहाँ एक ‘अदृश्य प्राणी’ रहता है, जिसे किसी ने कभी देखा नहीं, पर जिसने देखा, वह लौटकर नहीं आया।”

गाँव के साधु का आगमन

एक दिन एक अघोरी साधु उस गाँव में पहुँचा।लोगों ने उसे सब बताया, पर अघोरी मुस्कुराया “जिसे तुम भय मानते हो, वही तो मेरा साधन है।”रात होते ही वह श्मशान गया।
चारों ओर घना अंधेरा, और बीच में जलती चिता की लपटें।साधु ने महाकाल का ध्यान किया, और ‘भूत बंधन तंत्र’ का जाप आरंभ किया।

तंत्र की शक्ति

अघोरी ने त्रिकाल तंत्र का उच्चारण शुरू किया।उसने अपने चारों ओर रेखा खींची — ‘अघोर कवच’।प्राणी ने कई बार उस रेखा को तोड़ने की कोशिश की, पर हर बार भस्म हो गया उसका रूप।अंततः अघोरी ने अपने कमंडलु का जल फेंका और बोला “महाकाल की आज्ञा से, तू अब मुक्त हो!”क्षणभर में भयानक गर्जना हुई, और वह प्राणी धुएं में विलीन हो गया।

वह प्राणी कौन था?

उसका नाम था वासु।लेकिन यह वासु कोई साधारण जीव नहीं था।कहते हैं, उसकी लंबाई थी 50 फीट से भी अधिक, और वजन 1000 किलो से ज़्यादा
वह न तो पूरी तरह पशु था, न मानव… एक ऐसी सत्ता, जो सृष्टि के संतुलन को बिगाड़ सकती थी अगर समय रहते उसे रोका न जाता।
उसकी आंखें लाल अग्नि सी जलती थीं, और उसकी गर्जना से कई गाँव कांप उठते थे। जंगल में उसका नाम सुनकर ही लोग रास्ता बदल लेते थे।

कौन था वह अघोरी?

उस अघोरी साधक का नाम किसी को ठीक-ठीक नहीं पता। कुछ उसे शिव का उपासक मानते हैं, तो कुछ उसे शिव का ही एक अंश कहते हैं।वह अघोरी वर्षों से एकांत में साधना कर रहा था।एक रात उसे स्वप्न में आदेश मिला — “जिसे कोई रोक नहीं पाया,अब तुझे उसे बाँधना होगा।नहीं तो सृष्टि डगमगा जाएगी।”
अघोरी ने अपने कमंडल में भस्म, रुद्राक्ष और मंत्रों की शक्ति से युक्त तांत्रिक जल भरा। वह उस प्राणी की ओर चला… एकांत जंगल की गहराई में।

तांत्रिक शक्ति से वश में किया गया

जब अघोरी उस वासु के सामने पहुँचा, तो उसकी आंखों से ज्वाला निकल रही थी।पर अघोरी डरा नहीं।वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा…मंत्रों का उच्चारण करते हुए उसने जल छिड़का, और लोहे की जंजीरें उस प्राणी पर बाँध दीं।
वासु ने तीन बार गुर्राया, धरती हिल गई…पर चौथी बार उसकी आंखें बंद हो गईं।वह शांत हो गया… स्थिर…जैसे पत्थर का बन गया हो।

आज वह कहाँ है?

कई लोग कहते हैं कि वह आज भी एक पुराने मंदिर के द्वार पर बैठा है —एक विशाल पत्थर की मूर्ति के रूप में।उसके गले में आज भी लोहे की मोटी जंजीर लिपटी हुई है।जो भक्त सच्चे मन से उसके सामने जाते हैं, उन्हें एक विशेष ऊर्जा महसूस होती है।
कुछ तो यह भी मानते हैं कि वह अघोरी भी आज उसी स्थान पर तपस्या में लीन है —एक शिवलिंग के पास बैठा, संसार से अनजान।

यह केवल कहानी नहीं, एक संकेत है

यह कथा केवल एक रहस्यमयी जीव और अघोरी की नहीं है।यह कहानी है उस शक्ति की जो अनियंत्रित हो तो विनाश कर सकती है,और साधना के वश में हो तो रक्षा बन जाती है।
भारत की हर लोककथा की तरह, इसमें भीरहस्य, भक्ति, और चेतावनी तीनों छिपी हुई हैं।

रहस्य का अंत

सुबह होते ही गाँव वालों ने देखा कि श्मशान अब शांत था।कोई भय नहीं, कोई अजीब आवाज़ नहीं।अघोरी ने बस इतना कहा

“वह प्राणी किसी अधूरे यज्ञ की अग्नि से जन्मा था। उसे मोक्ष मिला है।”

और फिर वह साधु बिना कुछ बोले चला गया।कहते हैं, आज भी पूर्णिमा की रात को उस श्मशान से हल्की दीप-ज्योति दिखती है —वो उस अघोरी की आत्मा की तपश्चरीया का प्रकाश है।

जिसे देवता भी नहीं बाँध पाए,उसे एक अघोरी ने मंत्रों से शांत कर दिया।“यह वाक्य केवल एक कल्पना नहीं,बल्कि यह बताता है कि जब साधना सच्ची हो,तो सबसे विकराल शक्ति भी झुक जाती है।


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