"हनुमान चालीसा – तुलसीदास की अमर भक्ति"

“हनुमान चालीसा – तुलसीदास की अमर भक्ति”

“हनुमान चालीसा – तुलसीदास की अमर भक्ति”

“हनुमान चालीसा – तुलसीदास की अमर भक्ति”http://: https://bhakti.org.in/तुलसीदास-की-अमर-भक्ति/

“यह भारत भूमि… संतों, ऋषियों और भक्तों की भूमि रही है।यहां हर युग में ऐसे भक्त जन्मे, जिन्होंने प्रभु की भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
ऐसे ही एक संत थे — गोस्वामी तुलसीदास।”

“तुलसीदास… एक ऐसा नाम, जो राम भक्ति की आत्मा बन गया।वे न केवल रामचरितमानस के रचयिता थे, बल्कि उन्होंने भक्ति साहित्य को अमूल्य रचनाएं दीं।इनमें सबसे प्रसिद्ध और सरल रचना है — हनुमान चालीसा।
एक ऐसी स्तुति, जो हर संकट में रक्षा करती है।जो बल, बुद्धि और भक्ति का वरदान देती है।”

तुलसीदास जी और हनुमान चालीसा की रचना

यह वह समय था जब मुग़ल सत्ता का प्रभाव बढ़ रहा था। समाज में भय, अन्याय और अधर्म की छाया थी।तुलसीदास जी ने प्रभु राम और हनुमान के माध्यम से भक्तों में फिर से विश्वास और शक्ति भरने का कार्य किया।”

एक रात्रि, जब वे ध्यान में लीन थे, उन्हें श्री हनुमान जी के स्वरूप का दर्शन हुआ।उन्हीं पलों में उनके अंतःकरण से निकली 40 चौपाइयों की दिव्य स्तुति –जिसे हम आज ‘हनुमान चालीसा’ के नाम से जानते हैं।”

हनुमान चालीसा का महत्व और अर्थ

“हनुमान चालीसा मात्र एक भजन नहीं, एक जीवन दर्शन है।यह चालीसा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति से कोई भी कार्य असंभव नहीं।
जब आप पढ़ते हैं —राम काज करिबे को आतुर — तब आपको यह प्रेरणा मिलती है कि सेवा ही सच्ची शक्ति है।

“जब आप पढ़ते हैं —
‘दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते’ —तो विश्वास जागता है कि कोई भी कठिन कार्य, आपकी भक्ति से सरल हो सकता है।”

हनुमान चालीसा का विश्व में प्रभाव

“आज यह चालीसा भारत ही नहीं, विश्वभर में करोड़ों लोगों द्वारा पढ़ी जाती है।प्रभु राम के सेवक हनुमान, जिन्हें संजीवनी लाने वाला वीर कहा गया —
उनके नाम का स्मरण ही रोग, भय और शोक का नाश करता है।”एक चालीसा, जिसने समय, स्थान और भाषा की सीमाएं लांघ दीं।
यह केवल एक काव्य नहीं, एक अमोघ अस्त्र है —जो हमें जीवन की हर परीक्षा में विजयी बनाता है।”

“तुलसीदास जी ने हमें केवल राम की कथा नहीं दी —उन्होंने हमें विश्वास दिया, शक्ति दी, और बताया —कि सच्ची भक्ति से बड़ा कोई धन नहीं।”

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

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