
माँ शीतला माता, जिन्हें “रोग निवारिणी देवी” कहा जाता है, हिन्दू धर्म में आरोग्य और शुद्धता की देवी मानी जाती हैं। वे विशेष रूप से उन बीमारियों को दूर करती हैं जो संक्रमण या बुखार से संबंधित होती हैं — जैसे चेचक, खसरा, ज्वर, और त्वचा रोग। ऐसा कहा जाता है कि स्वयं देवताओं ने भी माँ शीतला के चमत्कारी मंत्र से आरोग्य प्राप्त किया था।
पुराणों में वर्णन है कि जब देवताओं को भी भयानक रोग घेर लेते थे, तब वे किसी वैद्य के पास नहीं जाते थे…बल्कि वे सिर झुकाकर जाते थे माँ शीतला के चरणों में।
शीतला, यानी जो शीतल करे…
जो जलते शरीर को ठंडक दे,
जो रोगों की जड़ को नष्ट कर दे,
जो केवल भक्ति से ही आरोग्य का वरदान दे दे।
माँ शीतला का स्वरूप
माँ शीतला को प्रायः एक गधे पर सवार, हाथ में झाड़ू, कलश, नीम की पत्तियाँ और जल पात्र लिए हुए दिखाया जाता है।
उनका यह स्वरूप संदेश देता है कि
“शुद्धता, संयम और स्वच्छता ही सबसे बड़ा देवोपचार है।”
उनका नाम ‘शीतला’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है — “शीतलता देने वाली”।
वे न केवल शरीर की, बल्कि मन की भी ठंडक प्रदान करती हैं।
माँ शीतला की कथा
पुराणों में कथा आती है कि जब एक बार पृथ्वी पर महामारी फैली, तो सभी देवता और मनुष्य रोग से पीड़ित हो गए। तब ब्रह्मा जी ने माँ शीतला की स्तुति की और कहा —“हे देवी! आपके बिना यह सृष्टि संतुलित नहीं रह सकती। आप ही रोगों की जननी और उनकी नाशक भी हैं।”माँ शीतला ने तब एक कलश में “शीतल जल” लेकर सभी रोगग्रस्त प्राणियों पर छिड़क दिया।जहां वह जल गिरा, वहाँ रोग समाप्त हो गया।उसी क्षण ब्रह्मा जी ने उन्हें यह आशीर्वाद दिया कि —
“जो भी सच्चे मन से तुम्हारा पूजन करेगा, उसका रोग नष्ट होगा।
माँ शीतला का चमत्कारी मंत्र
शास्त्रों में कई स्थानों पर माँ शीतला के मंत्र का उल्लेख मिलता है।
यह मंत्र इतना प्रभावशाली है कि कहा जाता है —
“जिसने इसे श्रद्धा से जपा, उसके घर में कोई गंभीर रोग नहीं ठहरता।”
मंत्र:
ॐ देवी शीतले! सर्वरोग निवारिणि।
नमोऽस्तु ते जगद्धात्रि! सर्वमङ्गलकारिणि॥
(अर्थ):
हे जगत् जननी शीतला माता! आप सर्वरोग नाश करने वाली और मंगल देने वाली हैं। आपको नमस्कार है।
इस मंत्र के जाप का सही तरीका
दिन: सोमवार या शुक्रवार को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
समय: प्रातः सूर्योदय से पहले (ब्राह्म मुहूर्त में)।
स्थान: घर के आँगन या साफ स्थान पर मिट्टी के चूल्हे के पास।
सामग्री: नीम की पत्तियाँ, ठंडा जल, दही, चावल और गुड़।
जप संख्या: 108 बार जाप करने से चमत्कारी परिणाम मिलते हैं।
विशेष रूप से माता का पूजन “शीतला अष्टमी” के दिन किया जाता है, जो होली के बाद आने वाले आठवें दिन होती है।
शीतला माता पूजा की विधि
प्रातः स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करें।
मिट्टी के चूल्हे के पास माता का चित्र या मूर्ति रखें।
ठंडा भोजन जैसे दही-भात, पूड़ी, हलवा, बासी रोटी आदि अर्पित करें।
नीम की पत्तियों से जल का छिड़काव करें।
चमत्कारी मंत्र का 108 बार जप करें।
“शीतलता” का प्रसाद सबको बाँटें।
यह पूजन केवल आरोग्य ही नहीं देता, बल्कि मन की अशुद्धि भी मिटा देता है।
आपने चेचक के रोग में देखा होगा — गाँवों में आज भी लोग शीतला माँ का व्रत रखते हैं, बिना नमक का खाना खाते हैं, और ठंडा भोजन चढ़ाते हैं।
क्योंकि यही मां की कृपा पाने का तरीका है।
🌼 शीतला माता को नीम के पत्ते, दही-चावल, ठंडा जल, और मिट्टी का कलश बहुत प्रिय है।
जो माता को प्रेम से भोग लगाता है, जो सच्चे मन से उनका यह मंत्र जपता है—
> || ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं शीतलायै नमः ||
उसे माँ शीतला की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।
फिर चाहे रोग शारीरिक हो या मानसिक —
माँ शीतला सब कुछ शांत कर देती हैं।
🙏 आइए, आज से ही हम माँ शीतला का यह चमत्कारी मंत्र अपनाएं।
श्रद्धा, विश्वास और भक्ति के साथ
क्योंकि जहां विज्ञान चुप हो जाता है, वहां माँ की शक्ति बोलती है।
माँ शीतला का संदेश
माँ शीतला केवल पूजा की देवी नहीं हैं, बल्कि स्वच्छता और संयम की प्रतीक हैं।
वे हमें सिखाती हैं कि रोगों से बचाव का सबसे बड़ा उपाय सफाई और सात्त्विक जीवन है।
अगर हम अपने घर, मन और व्यवहार को स्वच्छ रखें, तो कोई रोग हमें छू भी नहीं सकता।
🌸 शीतला अष्टमी का महत्व
इस दिन श्रद्धालु रात्रि में चूल्हा नहीं जलाते और ठंडे भोजन का सेवन करते हैं।
यह एक प्रतीक है —
“शरीर को विश्राम देना और अग्नि को शीतल बनाना।”
कहते हैं कि इस दिन जो व्यक्ति माँ शीतला का ध्यान करता है, उसके घर से नकारात्मक ऊर्जा और रोग दोनों दूर हो जाते हैं।
शीतला माता और नीम का संबंध
माँ शीतला के हाथों में नीम की पत्तियाँ होती हैं।
नीम को “प्राकृतिक एंटीसेप्टिक” कहा गया है।
यह दर्शाता है कि माता का संदेश केवल अध्यात्मिक नहीं, वैज्ञानिक भी है —
नीम की शीतलता शरीर को रोगमुक्त करती है।
शीतला स्तुति (संक्षिप्त पाठ)
शीतले शीतले मातः शीतलाय नमोऽस्तुते।
सुरासुरार्चिते देवि लोकानुग्रहकारिणि॥
त्वं हि रोगं हरिष्यन्ति त्वं हि रोगं करिष्यसि।
रोगान् हृत्वा सुखं देहि महादेवि नमोऽस्तुते॥
इस स्तुति का नियमित पाठ करने से घर में शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि बनी रहती है।
निष्कर्ष
माँ शीतला माता केवल एक देवी नहीं, बल्कि प्रकृति की शुद्ध शक्ति हैं।उनकी उपासना करने वाला हर भक्त यह अनुभव करता है कि विश्वास, स्वच्छता और भक्ति से हर कठिनाई मिट सकती है।आज के युग में जब नई-नई बीमारियाँ जन्म ले रही हैं, तो माँ शीतला का यह संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है —
“स्वच्छ रहो, शांत रहो, और शीतलता को अपनाओ — यही सच्ची आराधना है।”
