क्यों देखती हैं स्त्रियाँ करवा चौथ की रात चाँद को छलनी से — धर्म, आस्था और रहस्य की गहराई

क्यों देखती हैं स्त्रियाँ करवा चौथ की रात चाँद को छलनी से — धर्म, आस्था और रहस्य की गहराई

क्यों देखती हैं स्त्रियाँ करवा चौथ की रात चाँद को छलनी से — धर्म, आस्था और रहस्य की गहराई

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भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर त्यौहार के पीछे केवल रस्में नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक संदेश छिपे होते हैं। इन्हीं में से एक है करवा चौथ, जो नारी की प्रेम, त्याग और विश्वास की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति मानी जाती है। हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत मनाया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना करती हैं।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है —
स्त्रियाँ चाँद को छलनी से क्यों देखती हैं?
चाँद को देखने के बाद पति का चेहरा देखकर ही व्रत क्यों खोला जाता है?
आख़िर इस परंपरा के पीछे क्या धार्मिक, वैज्ञानिक और भावनात्मक महत्व है?
आइए जानते हैं विस्तार से।

करवा चौथ की कथा – एक स्त्री के प्रेम की परीक्षा

करवा चौथ के पीछे कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध है वीरावती की कथा। कहा जाता है कि वीरावती नामक एक रानी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। वह दिनभर भूखी-प्यासी रहकर अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना कर रही थी। जब रात हुई, तो चाँद निकलने का इंतज़ार करते हुए वह बहुत कमजोर हो गई। उसके भाइयों को उसकी हालत देखी नहीं गई, तो उन्होंने एक पेड़ के पीछे दीपक रखकर छल से ऐसा दिखाया जैसे चाँद निकल आया हो। वीरावती ने वह ‘झूठा चाँद’ देखकर व्रत तोड़ दिया। लेकिन जैसे ही उसने पहला कौर खाया, उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। वह विलाप करती हुई चल पड़ी और अपने प्रेम व तपस्या से यमराज को प्रसन्न किया। यमराज ने उसकी भक्ति से प्रभावित होकर उसके पति को पुनः जीवन दे दिया।
तब से यह व्रत हर वर्ष प्रेम, त्याग और नारी शक्ति का प्रतीक बन गया।

 चाँद को छलनी से देखने का कारण

छलनी से चाँद को देखना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक गहरा प्रतीकात्मक अर्थ रखता है।

1. छलनी का अर्थ है — फ़िल्टर करना।
जैसे छलनी अनाज से कचरा अलग करती है, वैसे ही यह हमें सिखाती है कि जीवन में बुरे विचारों, ईर्ष्या, और असत्य को छाँट देना चाहिए।
जब स्त्री छलनी से चाँद देखती है, तो वह अपने मन से हर नकारात्मक भावना को हटाकर अपने पति के लिए शुद्ध प्रेम और आशीर्वाद का संकल्प लेती है।
2. चाँद — सौंदर्य, शीतलता और स्थिरता का प्रतीक है।
हिंदू धर्म में चंद्र देव मन और भावनाओं के स्वामी माने जाते हैं।
छलनी से चाँद को देखकर स्त्री यह प्रार्थना करती है कि उसके जीवन में भी चाँद जैसी शांति, ठहराव और चमक बनी रहे।
3. धार्मिक दृष्टिकोण से:
चाँद भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं। करवा चौथ का व्रत स्वयं माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए किया था।
इसलिए स्त्रियाँ चंद्रमा को भगवान शिव के साक्षी के रूप में देखकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।
4. आध्यात्मिक अर्थ:
छलनी के पीछे से चाँद देखने का अर्थ है — ‘माया के जाल को हटाकर परम सत्य को देखना।’
चाँद यहाँ ईश्वर का प्रतीक है, और छलनी संसार की भ्रमित करने वाली माया।
स्त्री जब छलनी के पार चाँद देखती है, तो वह मानो ईश्वर को अपने हृदय से देखने का भाव प्रकट करती है।

 पति को चाँद के बाद देखने का कारण

जब स्त्री चाँद के दर्शन करती है, तो उसके बाद पति के चेहरे को देखना व्रत की पूर्णता का प्रतीक है। इस परंपरा का गहरा भाव यह है कि पति स्त्री के जीवन का वह अंश है जिसके साथ वह सुख-दुख साझा करती है।
चाँद को देखकर वह ईश्वर को साक्षी बनाती है और पति को देखकर उस व्रत का फल उसे समर्पित करती है। धार्मिक ग्रंथों में यह माना गया है कि चंद्रमा भगवान सोम के रूप में ‘ओज’ और ‘ऊर्जा’ का प्रतीक हैं।
जब स्त्री चाँद देखकर पति के मुख का दर्शन करती है, तो वह यह संकल्प लेती है कि —”मेरे पति का जीवन भी चाँद की तरह उज्जवल, शांत और पूर्ण रहे।”

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी खास

करवा चौथ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी उपयोगी माना गया है।
इस दिन उपवास रखने से शरीर की शुद्धि होती है और मानसिक अनुशासन बढ़ता है।
सूर्यास्त से चाँद निकलने तक जल न पीने से डिटॉक्स प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से होती है।
रात को चाँद की रोशनी में खड़े होकर देखने से मूनलाइट थैरेपी जैसी स्थिति बनती है जो मन को शांति देती है।
पति का चेहरा देखकर व्रत तोड़ने का अर्थ है, प्रेम और मानसिक जुड़ाव को ऊर्जा देना।

 छलनी, दीपक और थाली – तीनों का प्रतीकात्मक महत्व

1. छलनी — मन की शुद्धता और विवेक का प्रतीक।
2. दीपक — ज्ञान और प्रेम की ज्योति जो अंधकार मिटाती है।
3. थाली — समर्पण, सेवा और पूर्णता का प्रतीक।

ये तीनों मिलकर स्त्री के श्रद्धा, प्रेम और तपस्या के त्रिकोण को दर्शाते हैं।

करवा चौथ का आध्यात्मिक संदेश

करवा चौथ केवल पति-पत्नी का पर्व नहीं है, बल्कि यह जीवन के उस बंधन का उत्सव है जिसमें विश्वास, त्याग और भक्ति तीनों साथ चलते हैं। यह व्रत हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम किसी सौदे या अपेक्षा पर आधारित नहीं होता, बल्कि श्रद्धा और आत्मबल पर टिकता है। हर स्त्री जब चाँद को छलनी से देखती है, तो वह केवल अपने पति की दीर्घायु नहीं मांगती, बल्कि अपने जीवन में स्थिरता, शांति और सच्चे प्रेम का आशीर्वाद भी मांगती है।

🙏 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)


प्र.1: करवा चौथ का व्रत किसने शुरू किया था?
उत्तर: सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। उसी परंपरा को पृथ्वी पर स्त्रियाँ निभा रही हैं।

प्र.2: छलनी से चाँद देखने के बाद ही पति को देखना क्यों आवश्यक है?
उत्तर: क्योंकि चाँद को ईश्वर का प्रतीक और पति को जीवन का अंश माना गया है। दोनों को जोड़कर देखने का अर्थ है — ‘ईश्वर को साक्षी बनाकर जीवनसाथी के प्रति समर्पण।’

प्र.3: अविवाहित लड़कियाँ क्या करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं?
उत्तर: हाँ, कई अविवाहित कन्याएँ भविष्य के अच्छे जीवनसाथी की कामना से यह व्रत रखती हैं।

प्र.4: यदि चाँद बादलों में छिपा हो तो क्या करें?
उत्तर: ऐसी स्थिति में स्त्रियाँ चाँद की दिशा में दीपक दिखाकर मानसिक रूप से दर्शन कर सकती हैं, भाव ही सबसे बड़ा पूजन है।

प्र.5: छलनी का प्रयोग क्यों जरूरी माना गया है?
उत्तर: यह प्रतीक है कि जीवन में हर चीज को विवेक की छलनी से परखना चाहिए — यही जीवन का सच्चा ज्ञान है।

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