क्यों कहा गया है कि करवा चौथ की रात स्त्री का प्रेम भगवान से भी महान होता है?

 क्यों कहा गया है कि करवा चौथ की रात स्त्री का प्रेम भगवान से भी महान होता है?

 क्यों कहा गया है कि करवा चौथ की रात स्त्री का प्रेम भगवान से भी महान होता है?

क्यों कहा गया है कि करवा चौथ की रात स्त्री का प्रेम भगवान से भी महान होता है?https://bhakti.org.in/karva-chauth-ki-…e-bhi-mahan-kyon/



करवा चौथ… एक ऐसा नाम, जिसे सुनते ही मन में त्याग, प्रेम और विश्वास की एक छवि उभर आती है। यह व्रत केवल पति की लंबी आयु के लिए नहीं, बल्कि उस दिव्य भावना का प्रतीक है जिसमें एक स्त्री का प्रेम इतना गहरा होता है कि वह स्वयं भगवान से भी वरदान छीन लेती है।
हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व सिर्फ एक रिवाज़ नहीं — बल्कि स्त्री के अटूट विश्वास, धैर्य और आत्मबल का जीवंत उदाहरण है।

 करवा चौथ का वास्तविक अर्थ

“करवा” — यानी मिट्टी का पात्र, और “चौथ” — यानी चतुर्थी तिथि। यह दिन केवल चाँद देखने का दिन नहीं, बल्कि आत्मसंयम, आस्था और भक्ति का पर्व है। इस व्रत में स्त्री निर्जल रहकर, दिनभर भूख-प्यास सहकर अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती है। कहते हैं —

 “जहाँ ईश्वर परीक्षा लेते हैं, वहाँ नारी अपनी श्रद्धा से परिणाम बदल देती है।”

 जब प्रेम ने भगवान को भी झुका दिया — करवा चौथ की कथा

बहुत समय पहले की बात है…
एक राजा की सात सुंदर और धर्मपरायण बेटियाँ थीं। सबसे छोटी बेटी का नाम वीरवती था। विवाह के बाद जब उसने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा, तब उसका पति दूर व्यापार पर गया हुआ था।
दिनभर व्रत रखने के बाद शाम ढलने लगी। वीरवती भूख और प्यास से कमजोर पड़ रही थी, पर उसने अपने व्रत को पूरा करने का प्रण लिया था।

उसकी हालत देखकर उसकी बड़ी बहनों को दया आ गई। उन्होंने छल से एक दर्पण लेकर उसे चाँद का प्रतिबिंब दिखाया और कहा — “देखो, चाँद निकल आया है।”
वीरवती ने विश्वास करके जल ग्रहण किया। परंतु उसी क्षण दूर देश में उसके पति की मृत्यु हो गई।

जब उसे यह समाचार मिला, तो वह बिलख उठी और अपने पति का शव देखकर जोर-जोर से रोने लगी। उसकी करुण पुकार से देवताओं तक धरती कांप उठी।
तब देवी पार्वती प्रकट हुईं और बोलीं —

> “वीरवती, यह तुम्हारा प्रेम सच्चा है, पर तुम्हारा व्रत अधूरा था। इसीलिए यह परिणाम हुआ। अगले वर्ष जब तुम पूरे विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत रखोगी, तुम्हारा पति फिर जीवित हो जाएगा।”

वीरवती ने पूरे वर्ष इंतजार किया। अगले वर्ष करवा चौथ के दिन, उसने न स्नान छोड़ा, न पूजा, न संकल्प। पूरे श्रद्धा से व्रत रखा और चाँद देखकर पति के चरणों में जल अर्पित किया।
तभी चमत्कार हुआ — उसका पति जीवित हो उठा।
तभी से कहा जाता है कि —

 “करवा चौथ की रात वह होती है, जब नारी का प्रेम मृत्यु से भी जीत जाता है।”
और यही वह क्षण था जब संसार ने स्वीकार किया —
स्त्री का प्रेम, भगवान से भी महान हो सकता है।

 धार्मिक दृष्टिकोण से करवा चौथ का महत्व

1. भक्ति में शक्ति – इस दिन स्त्री अपने मन, वाणी और कर्म को नियंत्रित करती है। यही आत्मसंयम उसे आध्यात्मिक ऊँचाई देता है।

2. व्रत का उद्देश्य – पति की लंबी आयु और वैवाहिक सुख के लिए किया गया उपवास स्वयं में एक तपस्या है।

3. श्रद्धा का संकल्प – स्त्री का यह व्रत केवल सांसारिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक बंधन है — जो जीवन-मरण के पार भी प्रेम को अमर कर देता है।

4. देवी पार्वती का आशीर्वाद – यह व्रत माँ गौरी को समर्पित माना जाता है। माना जाता है कि जो स्त्री यह व्रत रखती है, उसके घर में सौभाग्य, शांति और समृद्धि बनी रहती है।

 करवा चौथ की विधि (संक्षेप में)

1. सूर्योदय से पहले सास के हाथ से “सरगी” लेना शुभ माना जाता है।

2. दिनभर निर्जल व्रत, मन में भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी का ध्यान रखना।

3. शाम के समय — थाली में करवा, दीपक, चावल, मिठाई और चंद्रमा के प्रतीक रखकर पूजा।

4. कथा सुनना — करवा चौथ की कथा सुनना और “करवा माता” की आरती करना।

5. चाँद निकलने पर — छलनी से चाँद देखना, फिर पति का चेहरा देखना और उसके हाथ से जल ग्रहण करना।


 क्यों कहा जाता है कि स्त्री का प्रेम भगवान से भी महान है?

क्योंकि भगवान तो नियम के अनुसार फल देते हैं,
पर नारी प्रेम में नियम नहीं, केवल भावना जानती है।
वह अपने त्याग, व्रत और श्रद्धा से भाग्य को भी बदल देती है।
जब वह भूख-प्यास में भी अपने पति के लिए मुस्कुरा कर प्रार्थना करती है,
तो वह केवल एक पत्नी नहीं, बल्कि देवी का रूप बन जाती है।
कहा भी गया है —

 “जहाँ भक्ति और प्रेम एक हो जाएं, वहाँ ईश्वर भी हस्तक्षेप नहीं करते।”
करवा चौथ इसी दिव्यता का प्रतीक है।

 आधुनिक समय में करवा चौथ

आज के युग में यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पारिवारिक प्रेम और विश्वास का उत्सव बन चुका है।
अब पुरुष भी अपनी पत्नियों के साथ व्रत रखते हैं। यह परिवर्तन दिखाता है कि करवा चौथ अब एकतरफा परंपरा नहीं, बल्कि दो आत्माओं के बीच आपसी सम्मान का व्रत बन गया है।


🙏 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)


Q1: क्या करवा चौथ में पानी पीना पाप है?
👉 पारंपरिक रूप से यह निर्जल व्रत है, परंतु स्वास्थ्य कारणों से अब कई महिलाएँ जल ग्रहण कर लेती हैं। श्रद्धा भाव सबसे महत्वपूर्ण है।

Q2: अविवाहित महिलाएँ व्रत रख सकती हैं क्या?
👉 हाँ, बहुत-सी कन्याएँ भविष्य के सुयोग्य वर के लिए यह व्रत रखती हैं। इसे “सौभाग्य-वृद्धि व्रत” कहा गया है।

Q3: यदि चाँद बादलों में छिप जाए तो क्या करें?
👉 दीपक या चाँद की दिशा में देखकर मन ही मन चंद्रदेव को प्रणाम करें और पूजा पूर्ण करें। भावना ही पूजा का सार है।

Q4: गर्भवती स्त्री व्रत रख सकती है?
👉 डॉक्टर की सलाह के अनुसार रखें। माँ और बच्चे का स्वास्थ्य सर्वोपरि है; श्रद्धा हृदय में रखना ही पर्याप्त है।

Q5: क्या पति भी व्रत रख सकता है?
👉 हाँ, अब बहुत से पति अपनी पत्नियों के साथ व्रत रखते हैं। यह समान भाव और प्रेम का सुंदर उदाहरण है।


करवा चौथ केवल एक त्यौहार नहीं,
यह प्रेम की वह अग्नि परीक्षा है जिसमें स्त्री अपनी आस्था से मृत्यु को भी चुनौती देती है।
जब वह निर्जल रहकर भी मुस्कुरा रही होती है, तो वह केवल एक पत्नी नहीं, ईश्वर की सच्ची प्रतिमा बन जाती है।
शायद इसी लिए कहा गया है

“भगवान नियमों से बंधे हैं,
पर नारी का प्रेम… नियमों से परे है।”
और इसीलिए, सदियों से कहा जाता है —
“करवा चौथ की रात, स्त्री का प्रेम भगवान से भी महान होता है।”



Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *