महाभारत के बाद — संजय की अनसुनी गाथा

यह स्क्रिप्ट उस व्यक्ति की कथा है जिसने महाभारत का हर दृश्य अपनी दिव्य दृष्टि से देखा, परंतु जब युद्ध समाप्त हुआ तो मौन साध लिया। यह है संजय की अनसुनी गाथा — एक ऐसी कहानी जो युद्ध के बाद के शून्य में शांति खोजती है, और यह बताती है कि सच्चा ज्ञान केवल विजय या पराजय में नहीं, बल्कि अनुभव और आत्मचिंतन में छिपा होता है।
कुरुक्षेत्र की रणभूमि शांत हो चुकी थी। धूल बैठ गई थी, रथों की गति रुक गई थी और शंखों की गर्जना मौन में बदल चुकी थी। सब कुछ समाप्त हो चुका था — सिवाय स्मृतियों के। इन स्मृतियों के बीच खड़ा था संजय, वही संजय जिसने दिव्य दृष्टि से पूरे युद्ध का साक्षात्कार किया था।
वह अब भी देख रहा था — लेकिन इस बार आँखों से नहीं, हृदय से। उसके सामने बिखरे पड़े थे हजारों शव, खून में लथपथ भूमि और टूटे हुए सपने। जब उसने धृतराष्ट्र को युद्ध का वर्णन किया था, तब शब्द उसके कर्तव्य थे; पर अब वही शब्द उसके लिए बोझ बन गए थे।
संजय का मन युद्ध के दृश्य भूल नहीं पा रहा था। उसे याद आया वह क्षण जब अर्जुन ने अपने धनुष को नीचे रख दिया था, जब कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। तब उसे लगा था कि यह युद्ध धर्म की रक्षा के लिए है, पर अब जब युद्ध समाप्त हो गया, तो उसे लगा — धर्म बचा या मनुष्य मर गया?
धृतराष्ट्र, जिसने अपने सौ पुत्रों को खो दिया था, अब केवल मौन था। उसने संजय से कहा, “मुझे दिखाओ वह भूमि जहाँ मेरे पुत्र गिरे।” संजय ने उत्तर दिया, “राजन, अब वह भूमि नहीं रही, केवल राख है।”
यही वह क्षण था जब संजय ने महसूस किया कि उसकी दृष्टि का उद्देश्य अब युद्ध का वर्णन नहीं, बल्कि शांति का मार्ग दिखाना है। उसने दरबार छोड़ दिया और निश्चय किया कि वह जीवन के उस सत्य की खोज करेगा जो युद्ध से परे है।
संजय यात्रा पर निकल पड़ा — गंगा के तट, हिमालय की घाटियाँ, और उन गाँवों तक जहाँ युद्ध के घाव अब भी ताज़ा थे। हर स्थान पर उसने वही प्रश्न सुना — “क्या यही धर्म था?” और हर बार उसने उत्तर दिया, “धर्म युद्ध में नहीं, हृदय की करुणा में है।”
वह उन स्त्रियों के बीच गया जिन्होंने अपने पुत्र खो दिए थे, उन बच्चों के पास जो अनाथ हो गए थे। उसने उन्हें सिखाया कि जीवन फिर से प्रारंभ किया जा सकता है। उसने कहा, “मनुष्य तभी सच्चा योद्धा है जब वह विनाश के बाद भी सृजन करना जानता है।”
धीरे-धीरे संजय एक दार्शनिक बन गया। लोग उसे सुनने आने लगे। वह युद्ध की कथा नहीं, शांति की भाषा बोलता था। उसने कहा — “महाभारत केवल हथियारों की कहानी नहीं, यह आत्मा के संघर्ष की गाथा है।”
कई वर्षों बाद, जब वह एक नदी किनारे बैठा था, एक युवा उसके पास आया और बोला, “आपने युद्ध देखा, तो बताइए — क्या भगवान कृष्ण सचमुच वहीं थे?” संजय ने मुस्कुराकर कहा, “हाँ, पर केवल अर्जुन के साथ नहीं। वे हर उस हृदय में थे जो सत्य की तलाश में था।”
यह वही क्षण था जब संजय ने जाना कि दिव्यता केवल युद्धभूमि में नहीं, बल्कि हर आत्मा में विद्यमान है। उसने अपने शिष्यों को सिखाया — “जब तक तुम्हारे भीतर द्वेष है, तब तक तुम्हारा कुरुक्षेत्र खत्म नहीं हुआ।”
समय बीतता गया। संजय वृद्ध हो चला था, पर उसकी वाणी अब भी उतनी ही गहरी थी। लोग कहते हैं कि उसने अंत समय तक शांति का उपदेश दिया और एक सुबह, गंगा तट पर ध्यान में लीन होकर उसने देह त्याग दी। पर उसके शब्द अमर हो गए —
“युद्ध देखना आसान है, पर मन की शांति देखना कठिन। जिस दिन तुम अपने भीतर के युद्ध को जीत लोगे, उसी दिन सच्ची विजय होगी।”
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. प्रश्न: क्या संजय ने युद्ध के बाद राजदरबार छोड़ा था?
उत्तर: लोककथाओं के अनुसार, हाँ। संजय ने युद्ध के बाद राजदरबार त्यागकर सन्यासी जीवन अपना लिया और मानवता की सेवा में लग गया।
2. प्रश्न: क्या संजय ने महाभारत के बाद कोई ग्रंथ लिखा?
उत्तर: किसी प्रमाणित ग्रंथ का उल्लेख नहीं मिलता, पर माना जाता है कि उसकी शिक्षाएँ मौखिक रूप से लोगों तक पहुँचीं।
3. प्रश्न: क्या धृतराष्ट्र और संजय का साथ अंत तक रहा?
उत्तर: कुछ कथाओं के अनुसार, संजय ने धृतराष्ट्र की सेवा अंत तक की और उसके साथ वनवास भी गया। धृतराष्ट्र के देहांत के बाद उसने संन्यास ले लिया।
4. प्रश्न: संजय का सबसे बड़ा संदेश क्या था?
उत्तर: शांति, क्षमा और करुणा — यही उसका जीवन दर्शन था। उसने सिखाया कि धर्म का सच्चा अर्थ है दूसरों के दुख को समझना।
5. प्रश्न: क्या संजय को दिव्य दृष्टि बाद में भी प्राप्त रही?
उत्तर: कहा जाता है कि कृष्ण के वचनों से प्राप्त वह दृष्टि धीरे-धीरे समाप्त हो गई, पर उसका ज्ञान और विवेक उसकी आत्मा में स्थायी रहा।
महाभारत का अंत केवल एक युद्ध का अंत नहीं था, बल्कि मानवता के पुनर्जन्म की शुरुआत थी। संजय ने हमें यह सिखाया कि हर विनाश में एक शिक्षा छिपी होती है, और हर मौन में एक गाथा। यह वही अनसुनी गाथा है — जो आज भी आत्मा को शांति का मार्ग दिखाती है।