मार्कंडेय की अमर कथा से जानिए चरण स्पर्श का रहस्य”
“कैसे पाँव छूने से बदली एक बालक की किस्मत – ऋषि मार्कंडेय की अमर कथा से जानिए चरण स्पर्श का रहस्य”

हम सब बचपन से सुनते आए हैं कि बड़ों के पाँव छूना चाहिए। पर क्या आपने कभी सोचा है कि इस परंपरा के पीछे इतना ज़ोर क्यों दिया गया? क्या केवल यह एक संस्कार है या इसके पीछे कोई अद्भुत शक्ति छिपी है?
आज हम इसी रहस्य को समझेंगे — ऋषि मार्कंडेय की अद्भुत कथा के माध्यम से, जिन्होंने अपने माता-पिता के चरणों में नतमस्तक होकर मृत्यु को भी मात दी।
ऋषि मार्कंडेय की कथा
बहुत समय पहले, प्राचीन भारत में मृकंड ऋषि नाम के एक महापुरुष रहते थे। उनकी पत्नी का नाम थी मरुद्वती। दोनों वर्षों से संतानहीन थे। उन्होंने कठोर तपस्या की, और भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए।
भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया —
“तुम्हें एक पुत्र मिलेगा। लेकिन तुम्हें चुनना होगा —
वह अल्पायु (बहुत छोटी उम्र वाला) और तेजस्वी होगा,
या दीर्घायु (लंबी उम्र वाला) लेकिन सामान्य बुद्धि वाला।”
मृकंड ऋषि और मरुद्वती ने कहा —“हे प्रभु, हमें तेजस्वी पुत्र चाहिए, चाहे उसकी आयु छोटी ही क्यों न हो।” और इस प्रकार जन्म हुआ मार्कंडेय नामक बालक का — जो बचपन से ही तेजस्वी, बुद्धिमान और अत्यंत भक्त था।
मृत्यु का समय और माता-पिता के चरण स्पर्श की घटना
जब मार्कंडेय 16 वर्ष के हुए, तभी उनके माता-पिता को याद आया — भगवान शिव ने कहा था कि पुत्र की आयु केवल सोलह वर्ष होगी।
उनका हृदय काँप उठा। वे दुख में डूब गए।
मार्कंडेय ने पूछा —
“माता-पिता, आप इतने व्यथित क्यों हैं?”
तब उनके पिता ने सच्चाई बताई कि — “बेटा, तुम्हारी आयु केवल सोलह वर्ष है।”
यह सुनकर मार्कंडेय मुस्कुराए। उन्होंने कहा —
“यदि यह सत्य है, तो मैं अपना हर क्षण भगवान शिव की भक्ति में बिताऊँगा।”
उस दिन उन्होंने अपने माता-पिता के चरणों को पकड़ा, उन्हें प्रणाम किया और कहा —“आपके चरणों में झुककर मैं आशीर्वाद माँगता हूँ कि मेरा जीवन ईश्वर की भक्ति में सफल हो।”
जैसे ही उन्होंने माता-पिता के चरण स्पर्श किए, उनके भीतर एक दिव्य ऊर्जा जागृत हुई।उनकी आत्मा ने कहा — “जो पुत्र अपने माता-पिता के चरणों में नम्रता से सिर झुकाता है, उसे स्वयं मृत्यु भी नहीं छू सकती।”
यमराज से टकराव
जब नियत समय आया, यमराज स्वयं मार्कंडेय के पास आए — उनका जीवन लेने के लिए। परंतु वह बालक मंदिर में महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर रहा था और शिवलिंग को आलिंगन किए बैठा था।
यमराज ने फेंका पाश — परंतु वह शिवलिंग पर जा गिरा। तभी भगवान शिव प्रकट हुए, और उन्होंने क्रोधित होकर यमराज से कहा —“यह बालक मेरा भक्त है, जिसने अपने माता-पिता और मुझ दोनों के चरणों में सिर झुकाया है। जो इतना विनम्र है, उसे मृत्यु कैसे छू सकती है?” शिव ने यमराज को रोक दिया, और मार्कंडेय को अमरत्व प्रदान किया। तब से वे “चिरंजीवी ऋषि मार्कंडेय” कहलाए।
इस कथा से मिलने वाली शिक्षा
इस घटना का सबसे गहरा संदेश यह है कि —
जब हम विनम्र होकर अपने माता-पिता, गुरु या ईश्वर के चरणों को स्पर्श करते हैं, तो हम केवल उनका आशीर्वाद नहीं लेते, बल्कि अपने भीतर की कठोरता, अहंकार और भय को मिटाते हैं।
1. अहंकार का नाश: चरण स्पर्श का मतलब है — “मैं सब कुछ नहीं जानता, मैं छोटा हूँ।” यह नम्रता का सर्वोच्च रूप है।
2. आशीर्वाद की धारा: बड़ों के पाँव से निकलती ऊर्जा — आशीर्वाद के रूप में हमें स्थिरता और सुरक्षा देती है।
3. आध्यात्मिक जुड़ाव: चरण स्पर्श करते समय हमारा सिर — यानी अहं — नीचे झुकता है और हृदय भावनाओं से भर जाता है। यही क्षण हमें ईश्वर से जोड़ता है।
4. कर्म की शुद्धि: जिस व्यक्ति के जीवन में विनम्रता होती है, उसके कर्मों में भी पवित्रता आ जाती है।
5. संस्कार का संचार: यह परंपरा बच्चों में संस्कार भरती है — कि बड़ा केवल उम्र से नहीं, अनुभव और आशीर्वाद से होता है।
पाँव चूमने के लाभ – आधुनिक दृष्टिकोण से
मनोवैज्ञानिक लाभ: चरण स्पर्श करने से मन का तनाव कम होता है, क्योंकि यह आत्मसमर्पण की भावना जगाता है।
ऊर्जा संतुलन: भारतीय संस्कृति में माना गया है कि पैरों के नीचे मूलाधार चक्र होता है — जो स्थिरता और जीवनशक्ति का केंद्र है। चरण स्पर्श से यह ऊर्जा सकारात्मक रूप में प्रवाहित होती है।
सामाजिक लाभ: यह संस्कार पीढ़ियों के बीच प्रेम और सम्मान की कड़ी जोड़ता है। संस्कार की शिक्षा: यह बच्चों को सिखाता है कि सम्मान करना कमजोरी नहीं, बल्कि शक्ति है।
जब हम पाँव चूमते हैं…
तो हम यह नहीं कहते कि “आप महान हैं और मैं छोटा।” बल्कि यह कहते हैं — “आपकी कृपा से मैं भी सीख सकता हूँ, आपका अनुभव मेरी राह रोशन करेगा।” ऋषि मार्कंडेय ने माता-पिता के चरणों में झुककर न केवल जीवन पाया — बल्कि मृत्यु को भी शिक्षा दी कि नम्रता ही सच्ची शक्ति है।
आज जब हम बड़ों के पाँव छूते हैं, तो यह याद रखें —यह केवल एक संस्कार नहीं, यह आत्मा की शुद्धि का मार्ग है। चरण स्पर्श वह क्षण है जब “मैं” समाप्त होता है, और “हम” की शुरुआत होती है।
यही वह शक्ति है जो एक बालक को अमर बना सकती है — जैसे ऋषि मार्कंडेय बने।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: क्या केवल माता-पिता के चरण छूना ही पर्याप्त है?
उत्तर: माता-पिता के साथ गुरु, आचार्य और ईश्वर के चरणों का सम्मान भी जीवन में उतनी ही शक्ति देता है।
प्रश्न 2: क्या चरण स्पर्श केवल धार्मिक कर्म है?
उत्तर: नहीं, यह मानसिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से लाभकारी है। यह विनम्रता और कृतज्ञता का अभ्यास है।
प्रश्न 3: क्या स्त्री-पुरुष दोनों को पाँव चूमना चाहिए?
उत्तर: हाँ, यह भावना लिंग पर निर्भर नहीं करती — यह श्रद्धा और संस्कार का प्रतीक है।
प्रश्न 4: क्या किसी से असहमति होने पर भी चरण छूना उचित है?
उत्तर: यदि मन में सम्मान है, तो हाँ। यदि केवल दिखावा है, तो नहीं — क्योंकि चरण स्पर्श की शक्ति सच्ची भावना में ही है।
अंतिम संदेश
ऋषि मार्कंडेय की कथा हमें सिखाती है —जिसने बड़ों के चरणों में सिर झुकाया, उसने मृत्यु को भी झुका दिया। नम्रता में वह शक्ति है जो हमें जीवन का अमरत्व देती है।
🙏 “चरणों में जो झुक गया, वही सच्चे अर्थों में ऊँचा उठा।” 🙏