“माँ दुर्गा ने खुद अपने बेटे की बलि क्यों दी? सच्चाई रोंगटे खड़े कर देगी!”
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“माँ दुर्गा ने खुद अपने बेटे की बलि क्यों दी? सच्चाई रोंगटे खड़े कर देगी!”
क्या कोई माँ ऐसा कर सकती है?
अपने ही पुत्र की बलि…
और वो भी कोई सामान्य स्त्री नहीं — स्वयं माँ दुर्गा!
यह कहानी सिर्फ चौंकाने वाली नहीं है, बल्कि भक्ति, शक्ति और धर्म की परिभाषा को नई गहराई देती है।
देवी के सबसे रहस्यमयी रूप की कथा
बहुत समय पहले, राक्षस रक्तबीज ने पूरे ब्रह्मांड में आतंक मचा रखा था।
उसे हर बार मारने पर उसके खून की हर बूंद से नया रक्तबीज पैदा हो जाता।
कोई भी देवता या देवी उसे पराजित नहीं कर पा रहे थे।
तब माँ दुर्गा ने अपने तीसरे नेत्र से एक भयंकर शक्ति को प्रकट किया –
वो थीं माँ चामुंडा।
उनकी आँखों में ज्वाला थी, हाथों में खप्पर और त्रिशूल।
पहला बलिदान – अपना ही पुत्र!
मान्यता है कि चामुंडा देवी के प्रकट होते ही उनसे एक पुत्र रूप भी उत्पन्न हुआ,
लेकिन उसमें राक्षसी प्रवृत्तियाँ थीं।
वो भी रक्तबीज के समान विध्वंसक था।
माँ ने उसे क्षमा नहीं किया।
उन्होंने बिना विचलित हुए उसका अंत कर दिया।
> क्योंकि अधर्म चाहे कहीं से भी जन्म ले — उसे मिटाना ही धर्म है।
यह कहानी क्या सिखाती है?
भक्ति सिर्फ प्रेम नहीं, न्याय और धर्म की रक्षा भी है।
एक माँ अगर धर्म के लिए अपने ही अंश का त्याग कर सकती है —
तो कभी-कभी कठोरता भी करुणा की एक रूप होती है।
क्या आप जानते हैं?
माँ चामुंडा को तांत्रिक शक्तियों की अधिष्ठात्री भी माना जाता है।
उनका प्रमुख मंदिर हिमाचल प्रदेश के चामुंडा नंदिकेश्वर धाम में है।
आज भी उनकी पूजा गुप्त रूप से तांत्रिक साधकों द्वारा की जाती है।
> माँ दुर्गा का यह रूप हमें सिखाता है कि
सच्ची भक्ति में सिर्फ आस्था ही नहीं,
बल्कि धर्म के लिए कठोर निर्णय लेने की शक्ति भी होनी चाहिए।