क्या होता है मरने के बाद?

“क्या होता है मरने के बाद? क्यों नहीं छोड़ते मृत शरीर को अकेला ?

“क्या होता है मरने के बाद? क्यों नहीं छोड़ते मृत शरीर को अकेला ?

क्या होता है मरने के बाद?

यह सवाल हर इंसान के मन में कभी न कभी ज़रूर उठता है मरने के बाद क्या होता है? क्या आत्मा बस मिट जाती है?या फिर वो किसी और दुनिया में चली जाती है?

क्या होता है मरने के बाद?
क्यों नहीं छोड़ते मृत शरीर को अकेला?https://bhakti.org.in/kya-hota-hai-marne-ke-baad/

“जब कोई अपना हमें छोड़कर चला जाता है, तो एक परंपरा हम सभी निभाते हैं — सारी रात उसके पार्थिव शरीर के पास बैठना। पर क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है?”“हिन्दू परंपराओं के अनुसार, जब किसी की मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा कुछ समय तक इसी संसार में भटकती रहती है। ऐसा माना जाता है कि आत्मा अपने शरीर से पूरी तरह अलग नहीं हो पाती। वो देख रही होती है कि उसके साथ क्या हो रहा है… कौन रो रहा है, कौन उसे अंतिम विदाई देने आया है।”“ऐसे में आत्मा को शांति देने के लिए, और उसे यह महसूस कराने के लिए कि वह अकेली नहीं है — हम उसके पार्थिव शरीर के पास बैठते हैं। ये सिर्फ एक धार्मिक प्रथा नहीं, एक आत्मिक जिम्मेदारी है।”रात भर जागना सिर्फ आत्मा को शांति देने के लिए नहीं है, बल्कि एक और वजह है — रक्षा। रात्रि के समय नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है। और यह माना जाता है कि मृत शरीर पर उनका असर पड़ सकता है। इसलिए घरवाले, खासकर पुरुष सदस्य, शरीर के पास दीप जलाकर बैठते हैं, मंत्रोच्चार करते हैं, और सतर्क रहते हैं।”“विज्ञान भी कहता है कि मृत्यु के बाद शरीर कुछ घंटों तक गर्म रहता है, और कुछ आंतरिक क्रियाएँ धीमी गति से चलती हैं। ऐसे में शरीर की देखरेख ज़रूरी होती है।”ये परंपरा सिर्फ डर या मान्यता की वजह से नहीं निभाई जाती — यह एक अंतिम सेवा है। एक आखिरी बार अपनों के साथ होने का, उन्हें स्नेह देने का मौका।”

हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम, ईसाई और दुनिया के लगभग हर धर्म में इस रहस्य का जवाब अलग-अलग तरीके से दिया गया है। लेकिन एक बात सबमें समान है — शरीर मरता है, आत्मा नहीं।

श्रीमद्भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है

“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुतः॥”
अर्थात — आत्मा को न कोई अस्त्र काट सकता है, न अग्नि जला सकती है, न पानी भिगो सकता है और न वायु सुखा सकती है।

इसलिए जब कोई व्यक्ति मरता है, तो केवल शरीर समाप्त होता है, आत्मा नहीं।शरीर पंच तत्वों से बना है — आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी — और मरने के बाद वही शरीर इन्हीं तत्वों में विलीन हो जाता है।

आत्मा का सफ़र — मृत्यु से परे

मृत्यु के तुरंत बाद आत्मा अपने शरीर को छोड़कर एक सूक्ष्म अवस्था में चली जाती है।कहा जाता है कि कुछ समय तक आत्मा अपने आसपास के वातावरण में ही रहती है।वह अपने प्रियजनों को देख सकती है, सुन सकती है, परंतु कोई उससे संवाद नहीं कर सकता।यही कारण है कि जब किसी की मृत्यु होती है तो परिवार वाले रोते हैं, पुकारते हैं,और ऐसा लगता है मानो मृत व्यक्ति सब सुन रहा हो — क्योंकि आत्मा वास्तव में वहाँ उपस्थित होती है।वह अपने शरीर को छोड़ तो चुकी होती है, लेकिन अपने प्रियजनों से लगाव अब भी बना रहता है।


क्यों नहीं छोड़ते मृत शरीर को अकेला?

जब किसी का देहांत होता है, तो लोग मृत शरीर के पास रहते हैं, दीया जलाते हैं, मंत्र पढ़ते हैं।क्या आपने कभी सोचा क्यों?दरअसल, मृत्यु के बाद के कुछ घंटे बेहद संवेदनशील होते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, आत्मा उस समय पूरी तरह से शरीर से अलग नहीं हुई होती।वह धीरे-धीरे अलग होती है — इसे “प्राण का विच्छेदन” कहा जाता है।यदि उस समय मृत शरीर को अकेला छोड़ दिया जाए, तो वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा या कोई भटकती आत्मा उस शरीर के चारों ओर घूम सकती है।इसलिए परंपराओं में कहा गया है कि जब तक अंतिम संस्कार न हो जाए, तब तक शरीर को अकेला न छोड़ा जाए।दीपक या धूप जलाना, गीता का पाठ करना, या “राम नाम सत्य है” कहना — ये सब उस आत्मा को शांति देने के उपाय माने गए हैं।

अंतिम संस्कार का रहस्य

अंतिम संस्कार केवल एक रिवाज नहीं है, बल्कि यह आत्मा को उसके अगले सफर पर भेजने की एक प्रक्रिया है।जब शरीर को अग्नि दी जाती है, तो यह संदेश आत्मा को मिलता है कि अब यह देह समाप्त हो चुकी है, अब आगे बढ़ना है।कई बार आत्माएँ अपने घर, परिवार या शरीर के पास रह जाती हैं क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं होता कि वो मर चुकी हैं।इसलिए संस्कार और मंत्र उन्हें धीरे-धीरे “मुक्त” करने में मदद करते हैं।हिंदू धर्म में “अग्नि” को सबसे शुद्ध तत्व माना गया है, जो शरीर को पंचतत्व में विलीन कर देती है।इसीलिए दाह संस्कार के बाद अस्थियों को पवित्र नदियों में विसर्जित किया जाता है — ताकि शरीर का अंतिम अंश भी प्रकृति में लौट जाए।

आत्मा कहाँ जाती है?

यह आत्मा के कर्मों पर निर्भर करता है।अगर उसके कर्म शुभ हैं, तो वह उच्च लोकों में जाती है — जिसे स्वर्ग कहा गया है।अगर पाप अधिक हैं, तो वह नरक लोक या यमलोक में जाती है, जहाँ उसे अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है।कर्म समाप्त होने के बाद आत्मा फिर से एक नया शरीर ग्रहण करती है — यही जन्म और मृत्यु का चक्र है, जिसे संसार चक्र कहा गया है।बौद्ध धर्म इसे “कर्म और पुनर्जन्म” के सिद्धांत से जोड़ता है।वहीं आधुनिक विज्ञान कहता है कि जब शरीर मरता है, तो ऊर्जा नष्ट नहीं होती, बल्कि रूप बदल लेती है।अर्थात आत्मा, जिसे हम ऊर्जा कह सकते हैं, बस एक नए रूप में आगे बढ़ जाती है।

13 दिन का शोक क्यों मनाया जाता है?

हिंदू परंपरा में किसी की मृत्यु के बाद 13 दिन तक शोक मनाया जाता है।इन 13 दिनों को सप्ताह या तेरहवीं संस्कार कहा जाता है।कहा जाता है कि इन दिनों में आत्मा धीरे-धीरे अपनी नई यात्रा की तैयारी करती है।परिवार के लोग हवन, पाठ और दान करते हैं ताकि आत्मा को मार्गदर्शन मिले और वह मोक्ष की ओर अग्रसर हो।13वें दिन आत्मा पूर्ण रूप से मुक्त मानी जाती है।
इसीलिए उस दिन “पिंडदान” और “तर्पण” जैसे कर्म किए जाते हैं।यह एक प्रकार का “विदाई संस्कार” है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मृत्यु

विज्ञान मृत्यु को केवल “जीवित क्रियाओं का अंत” मानता है।जब हृदय की धड़कन रुक जाती है, मस्तिष्क की गतिविधि बंद हो जाती है, तब व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया जाता है।
लेकिन कई वैज्ञानिक शोध यह बताते हैं कि मृत्यु के कुछ क्षण बाद भी चेतना (consciousness) कुछ समय तक बनी रहती है।यानी व्यक्ति का “अहसास” कुछ सेकंड या मिनट तक ज़िंदा रह सकता है।इसलिए यह कहना मुश्किल है कि आत्मा कहाँ तक विज्ञान की पकड़ में है — लेकिन यह भी सच है कि मृत्यु केवल एक अंत नहीं, एक परिवर्तन है।

मृत्यु डरावनी नहीं, सच्चाई है

हर जन्म के साथ मृत्यु निश्चित है।लेकिन मृत्यु कोई अंत नहीं — यह आत्मा की यात्रा का एक नया अध्याय है।जिस तरह दिन के बाद रात आती है और फिर सुबह होती है,वैसे ही जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र चलता रहता है।

 

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