“माँ कामाख्या देवी: अद्भुत शक्ति का रहस्यमयी धाम”
https://bhakti.org.in/kamakhya-shakti/
भारत भूमि देवी-देवताओं की आराधना से पवित्र मानी जाती है। यहाँ हर पर्वत, हर नदी, हर मंदिर अपने भीतर एक रहस्य समेटे हुए है। इन्हीं रहस्यों में से एक है — माँ कामाख्या देवी मंदिर, जो असम के नीलाचल पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर न केवल शक्ति उपासना का केंद्र है, बल्कि यह माँ भगवती के शक्ति रूप का सबसे रहस्यमयी धाम माना जाता है।
माँ कामाख्या, आदि शक्ति सती का ही वह स्वरूप हैं, जिनके प्रतीकस्वरूप योनि अंग यहाँ प्रतिष्ठित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने सती के शरीर को अपने कंधे पर उठाकर विक्षिप्त अवस्था में तांडव किया था, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित किया। जहाँ-जहाँ सती के अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। उन्हीं में से एक सर्वाधिक शक्तिशाली पीठ है — कामाख्या धाम।
कामाख्या देवी का परिचय
माँ कामाख्या देवी को देवी शक्ति के दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख स्थान प्राप्त है। कहा जाता है कि यहाँ देवी सती का योनि अंग गिरा था, इसलिए यह स्थान “योनि पीठ” कहलाता है। यह शक्ति पीठ उन स्थानों में से एक है जहाँ देवी की शक्ति का साक्षात् वास माना गया है।
मंदिर का इतिहास
इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर लगभग 8वीं शताब्दी में बनाया गया था। किंवदंती के अनुसार, भगवान शिव की पत्नी सती ने जब अपने पिता दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन न कर सकीं तो उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर देह त्याग दी। इसके बाद क्रोधित भगवान शिव ने सती के शरीर को लेकर तांडव करना शुरू किया। भगवान विष्णु ने संसार की रक्षा के लिए सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। जहाँ-जहाँ वे अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्ति पीठों की स्थापना हुई।
कामाख्या मंदिर उसी स्थान पर है जहाँ देवी का योनि भाग गिरा था। इसलिए यहाँ की पूजा अत्यंत गूढ़ और रहस्यमयी मानी जाती है।
कामाख्या देवी की शक्ति
माँ कामाख्या देवी को सृष्टि की जननी कहा गया है। यहाँ देवी को “कामरूपा” के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि यह स्थान स्त्री शक्ति और सृजन की ऊर्जा का प्रतीक है। कामाख्या में कोई देवी की मूर्ति नहीं है, बल्कि यहाँ योनि के प्रतीक रूप में एक प्राकृतिक शिला की पूजा की जाती है, जो सदैव जल से आर्द्र रहती है।
कामाख्या के अनुष्ठान और मेला
हर वर्ष अंबुबाची मेला के समय मंदिर बंद कर दिया जाता है क्योंकि माना जाता है कि इस समय देवी रजस्वला होती हैं। यह पर्व स्त्री शक्ति के सम्मान और सृजन की पवित्रता का प्रतीक है। तीन दिन बाद मंदिर खुलता है, और भक्त माँ की “शुद्धि” के बाद दर्शन करते हैं।
इस मेले में देशभर से लाखों श्रद्धालु आते हैं। तांत्रिक, साधक और भक्त यहाँ अपनी-अपनी साधनाएँ पूरी करने आते हैं। कामाख्या को तंत्र साधना का सर्वोच्च स्थल माना जाता है।
आध्यात्मिक रहस्य
कामाख्या केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। यहाँ आने वाले व्यक्ति को ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसकी आत्मा देवी की ऊर्जा से जुड़ रही हो। यहाँ पूजा करने से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, दांपत्य जीवन में मधुरता आती है और साधना में सिद्धि प्राप्त होती है।
यह स्थान हमें सिखाता है कि स्त्री शक्ति केवल सृजन की नहीं, बल्कि संरक्षण और परिवर्तन की शक्ति भी है।
तांत्रिक दृष्टि से कामाख्या
तांत्रिक मान्यताओं में कहा गया है कि कामाख्या देवी ही समस्त शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं। यहाँ तंत्र, मंत्र और यंत्र — तीनों का संगम होता है। साधक यहाँ कामरूप क्षेत्र में रहकर सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं।
माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से माँ का ध्यान करता है, उसके जीवन से भय, दुख और नकारात्मकता समाप्त हो जाती है।
माँ की कृपा के फल
-
संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है।
-
दांपत्य जीवन में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।
-
तांत्रिक बाधाएँ और भय दूर होते हैं।
-
आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
-
मन की शांति और आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है।
कैसे पहुँचें कामाख्या देवी मंदिर?
माँ का यह पवित्र धाम गुवाहाटी (असम) में स्थित है।
निकटतम रेलवे स्टेशन – गुवाहाटी जंक्शन (6 किमी)
हवाई अड्डा – लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई एयरपोर्ट (20 किमी)
यहाँ तक टैक्सी, बस और ऑटो से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
माँ कामाख्या देवी केवल एक शक्ति पीठ नहीं, बल्कि स्त्री ऊर्जा की परम उपासना का प्रतीक हैं। जो भी भक्त यहाँ श्रद्धा और विश्वास के साथ आता है, उसे देवी का आशीर्वाद अवश्य मिलता है। कामाख्या हमें यह संदेश देती हैं कि सृष्टि तभी सुंदर है जब उसमें शक्ति और शिव का संतुलन बना रहे।
