“उत्तराखंड का दिव्य धाम — सुरकंडा देवी मंदिर की सच्ची कहानी”
हिमालय की ऊँची चोटियों के बीच, बादलों के पार, जहाँ हवा में मंत्रों की गूंज सुनाई देती है वहीं स्थित है एक पवित्र और रहस्यमयी स्थान — सुरकंडा देवी मंदिर।यह वह धाम है जहाँ मां शक्ति स्वयं विराजमान हैं,और जहाँ हर कदम पर आस्था, त्याग और अद्भुत शक्ति की अनुभूति होती है।देवभूमि उत्तराखंड को वैसे ही “देवों की भूमि” कहा जाता है,
पर सुरकंडा देवी धाम का महत्व इस भूमि में विशेष और अद्वितीय है।यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि शक्ति की उस कहानी का साक्षी हैजहाँ प्रेम, वियोग और भक्ति — तीनों एक साथ प्रवाहित होते हैं।
कहाँ स्थित है सुरकंडा देवी मंदिर?
सुरकंडा देवी मंदिर उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में,कुण्ड (कादुखाल) नामक स्थान के निकट स्थित है।यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 2,700 मीटर (9,000 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।देहरादून या मसूरी से यह धाम लगभग 33 किलोमीटर की दूरी पर है।मंदिर तक पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को कादुखाल से लगभग 2 किलोमीटर की चढ़ाई करनी होती है।
यह मार्ग चाहे कठिन है, लेकिन हर कदम पर मां के जयकारे, घंटियों की आवाज़और ऊपर झिलमिलाते बादल मन में नई ऊर्जा भर देते हैं।
सुरकंडा देवी की सच्ची कथा – शक्ति और वियोग की कहानी
सुरकंडा देवी मंदिर का संबंध सीधे मां सती और भगवान शिव से है।यह मंदिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है — और इसके पीछे की कथा बेहद भावनात्मक है।एक बार राजा दक्ष प्रजापति, जो सती के पिता थे,ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया।सती ने पति के अपमान को सहन न कर पाने पर स्वयं यज्ञ कुंड में प्रवेश कर प्राण त्याग दिए।शिव जब यह समाचार सुने, तो वे क्रोधित होकरसती के शरीर को कंधे पर उठाकर ब्रह्मांड में घूमने लगे।सृष्टि में संतुलन बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया,जिससे सती का शरीर ५१ भागों में विभाजित हुआ, और जहाँ-जहाँ उनके अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए।किंवदंती है कि सुरकंडा देवी मंदिर उसी स्थान पर बना हैजहाँ मां सती का सिर (कंठ या मुख) गिरा था।इसलिए इसका नाम पड़ा “सुरकंडा” — अर्थात “सिर (सुर)” + “कंठ”।
मां सुरकंडा की शक्ति
मां सुरकंडा को संहार और सृजन की देवी कहा जाता है।उनकी मूर्ति में त्रिशूल, कमल और आशीर्वाद मुद्रा तीनों रूप एक साथ दिखाई देते हैं।भक्तों का विश्वास है कि मां की उपस्थिति यहाँ इतनी प्रबल हैकि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से मां के चरणों में आता है,उसके जीवन के अंधकार मिट जाते हैं।कई साधक कहते हैं कि मंदिर के गर्भगृह में ध्यान करते समय
अचानक एक “गर्म हवा” और “सुगंधित झोंका” महसूस होता है —जो मां की सजीव उपस्थिति का संकेत है।
सुरकंडा देवी का अद्भुत त्योहार — गंगा दशहरा
मां के इस धाम में सबसे बड़ा उत्सव गंगा दशहरा के दिन मनाया जाता है।इस दिन हजारों श्रद्धालु पूरे उत्तराखंड से पैदल यात्रा करके मंदिर पहुंचते हैं।भक्त माँ को फूल, नारियल, चुनरी और बेलपत्र अर्पित करते हैं,और आशीर्वाद मांगते हैं कि उनके परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे।कहते हैं कि इस दिन मां की शक्ति चरम पर होती है,और मां की एक झलक मात्र से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
सुरकंडा धाम की प्राकृतिक सुंदरता
सुरकंडा देवी मंदिर से पूरे हिमालय का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है।यहाँ से आप चौखंबा, बंदरपूँछ, गंगोत्री और भागीरथी घाटी तक देख सकते हैं।मंदिर के चारों ओर बर्फ़ से ढकी चोटियाँ और बादलों की परतेंऐसा अनुभव देती हैं जैसे आप स्वर्ग में खड़े हों।कई यात्री कहते हैं कि जब वे मां के दरबार में पहुंचते हैं,
तो प्रकृति स्वयं स्वागत करती है —हवा में घंटियों की आवाज़ और धूप की किरणें मिलकरएक दिव्य वातावरण बना देती हैं।
रहस्य और आस्था का संगम
यह मंदिर केवल धार्मिक नहीं, बल्कि अध्यात्म और रहस्य का प्रतीक भी है।स्थानीय लोग बताते हैं कि रात के समय मंदिर से कई बारदूर तक घंटियों की ध्वनि और दीपक की ज्योति दिखाई देती है,भले ही मंदिर बंद हो चुका हो।भक्त इसे मां की दिव्य लीला मानते हैं —क्योंकि देवी की शक्ति कभी सोती नहीं।
मां की कृपा और भक्तों का विश्वास
यहाँ आने वाले श्रद्धालु कहते हैं कि मां सुरकंडा से जो भी मांगा जाता है,वह पूरा होता है — बस भक्ति सच्ची होनी चाहिए।किसी की संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है,
तो किसी के जीवन के संकट दूर हो जाते हैं।मां की मूर्ति के समीप रखा त्रिशूल और लाल चुनरीभक्तों की भावनाओं और मां की शक्ति का प्रतीक है।कई बार हवा के झोंके से वह चुनरी स्वतः हिलती है —जैसे मां स्वयं आशीर्वाद दे रही हों।
सुरकंडा देवी – केवल मंदिर नहीं, आत्मा की यात्रा
सुरकंडा देवी मंदिर तक की यात्रा कठिन जरूर है,लेकिन यह मन की शुद्धि और आत्मा की साधना बन जाती है।ऊँचाई, ठंड और थकान के बावजूद जब भक्त मां के द्वार पर पहुंचता है,
तो वह अनुभव करता है कि सारी मुश्किलें भक्ति में विलीन हो गई हैं।यह वही क्षण होता है जब भौतिक जगत से ऊपर उठकरमनुष्य केवल “मां की उपस्थिति” महसूस करता है —
वह जो सर्वव्यापक, सर्वशक्तिशाली और करुणामयी है।
सुरकंडा देवी मंदिर केवल एक शक्ति धाम नहीं,बल्कि प्रेम, त्याग और आस्था का जीवंत प्रतीक है।यह हमें सिखाता है कि जब हम अपने अहंकार को त्यागकरशक्ति के समक्ष नतमस्तक होते हैं,तो वही शक्ति हमें आगे बढ़ने का साहस देती है।मां सुरकंडा आज भी वहीं हैं —बादलों के बीच, शिखर पर बैठी, अपने हर भक्त पर कृपा बरसा रही हैं।बस जरूरत है एक सच्चे कदम की —जो मां की ओर बढ़े, और फिर हर भय, हर संकट मिट जाए।

