इस समय भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का माहौल है। सीमा पर असुरक्षा है, और लोगों के दिलों में चिंता, गुस्सा और भय का मिश्रण साफ़ दिखाई देता है। ऐसे समय में अक्सर हमारे मन में सवाल उठता है — “आख़िर कब तक यह संघर्ष यूँ ही चलता रहेगा?” लेकिन शायद यह भी एक अवसर है — आत्मचिंतन का, और भक्ति की ओर लौटने का।

वर्तमान संघर्ष और शांति की पुकार: आइए भक्ति के मार्ग पर लौटें

जब चारों ओर हिंसा, द्वेष और अस्थिरता हो, तो यही समय होता है जब हमें भीतर की ओर देखने की ज़रूरत होती है। जब युद्ध के नगाड़े बज रहे हों, तब हृदय के भीतर शांति का राग गूंजाना चाहिए। क्योंकि सच्चा योद्धा वही है जो बाहरी लड़ाई के साथ-साथ अपने अंदर के अंधकार से भी युद्ध करे।

भक्ति क्या सिखाती है?

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा था:
“शांति और क्षमा ही वीरता की असली पहचान है।”
भक्ति हमें यही सिखाती है — प्रेम, करुणा, धैर्य और समर्पण। हम युद्ध से नहीं, भक्ति से संसार को बदल सकते हैं। अगर हर नागरिक अपने भीतर प्रेम और करुणा की भावना जगाए, तो बाहरी युद्धों की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।

इस समय हम क्या कर सकते हैं?

1. प्रार्थना करें — अपने देश के जवानों की रक्षा के लिए, शांति की स्थापना के लिए, और सभी प्राणियों के कल्याण के लिए।

2. भजन और जप करें — राम नाम, कृष्ण नाम या शिव नाम का स्मरण, नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक शक्ति में बदल देता है।

3. दूसरों को भी प्रेरित करें — सोशल मीडिया या व्यक्तिगत बातचीत के माध्यम से, लोगों को भक्ति के मार्ग पर लाने का प्रयास करें।

4. द्वेष न फैलाएँ — किसी भी समुदाय या देश के प्रति घृणा फैलाना समस्या को बढ़ाता है। प्रेम ही समाधान है।

निष्कर्ष
युद्ध की आवाज़ें भले ही तेज़ हों, लेकिन भक्ति की पुकार उनसे कहीं अधिक गूंजती है। इस कठिन समय में आइए हम अपने भीतर शांति, प्रेम और भक्ति का दीप जलाएँ। देशभक्ति का सर्वोच्च रूप तब है जब हम अपने मन को नियंत्रित करके, समाज में सकारात्मकता फैलाएँ।

“जय हिंद, जय श्री राम”

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