जब मनुष्य जीवन के झंझावातों से थककर शांति की खोज करता है, तो वह भक्ति की ओर बढ़ता है। भक्ति केवल एक भावना नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के बीच का प्रेममय सेतु है। यह वह राह है जहाँ अहंकार समाप्त होता है और समर्पण आरंभ होता है।

भक्ति का स्वरूप:
भक्ति के अनेक रूप हैं—श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन। हर रूप में केवल एक ही उद्देश्य होता है—ईश्वर से जुड़ाव। जब मन निष्कलुष होकर भगवान के चरणों में समर्पित होता है, तो वही भक्ति कहलाती है।
भक्ति का प्रभाव:
सच्ची भक्ति जीवन को दिशा देती है। यह हमें क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या जैसे विकारों से मुक्त करती है। श्रीराम, श्रीकृष्ण, मीरा, तुलसीदास, कबीर—इन सभी ने भक्ति के माध्यम से ही ईश्वर को पाया। भक्ति से ही आत्मा का कल्याण होता है और जीवन को एक दिव्य अर्थ मिलता है।
कैसे करें भक्ति की शुरुआत?
प्रतिदिन कुछ समय भगवान के नाम-स्मरण और ध्यान में बिताएं।
सत्संग करें और आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें।
सेवा करें—यह भी भक्ति का ही एक रूप है।
ईश्वर के प्रति भावनात्मक रूप से जुड़ें, और उन्हें अपना सखा, प्रियतम, माता-पिता जैसा मानें।
समापन:
भक्ति कोई बंधन नहीं, यह तो परम स्वतंत्रता की राह है। यह वह दीपक है जो आत्मा को प्रकाशित करता है और हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। जो भक्ति के मार्ग पर चलता है, वह कभी अकेला नहीं होता—क्योंकि उसके साथ स्वयं भगवान चलते हैं।