गर्भगृह में पर्दा क्यों डाला जाता है? जानिए इसका गहरा रहस्य”
जब रात की नीरवता धरती पर उतरती है, जब आकाश चाँदनी की चादर ओढ़ लेता है… तब मंदिरों में एक विशेष दृश्य देखने को मिलता है।
गर्भगृह — जहाँ भगवान स्वयं विराजते हैं — वहाँ एक सुंदर, सादा लेकिन भावों से भरा पर्दा गिरा दिया जाता है।
पर सवाल यह उठता है…
आख़िर ये पर्दा क्यों डाला जाता है?
क्या भगवान को भी विश्राम की आवश्यकता होती है?
क्या मूर्ति में भी जीवन है?
उत्तर है — हाँ।
सनातन धर्म में भगवान को केवल पूजनीय ही नहीं, जीवंत और सजीव माना गया है। मूर्ति, पत्थर मात्र नहीं, वह प्राण प्रतिष्ठित होती है — और जहाँ प्राण हों, वहाँ व्यवहार भी होते हैं।
हर दिन मंदिरों में भगवान की सेवा ठीक उसी प्रकार होती है जैसे एक प्रिय अतिथि या परिवार के सदस्य की —
प्रातः मंगला आरती से लेकर संध्या शयन आरती तक।
हर सेवा में समय का पालन, नियम का महत्व और भावनाओं का गहरा संयोग होता है।
रात को जब शयन आरती होती है, तो यह माना जाता है कि भगवान विश्राम करने जा रहे हैं।
उस समय गर्भगृह के द्वार पर पर्दा डाला जाता है —
यह कोई साधारण पर्दा नहीं,
यह एक मर्यादा है…
एक संस्कार है…
एक आत्मिक अनुशासन है।
जैसे हम किसी को विश्राम के समय अकेला छोड़ते हैं,वैसे ही भगवान को भी विश्राम का अधिकार है।यह पर्दा उस निजता का प्रतीक है।
कुछ परंपराओं में तो यह भी माना जाता है कि रात को भगवान अपने धाम में लौट जाते हैं, और सुबह पुनः भक्तों के दर्शन के लिए लौटते हैं।
जब सुबह द्वार खुलते हैं, तो उसे मंगला दर्शन कहा जाता है —
और वह दृश्य इतना पवित्र होता है, मानो साक्षात प्रभु नींद से जागकर भक्तों को दर्शन देने आए हों।
इसलिए, गर्भगृह का पर्दा केवल वस्त्र नहीं —
वह एक भक्ति का भाव है,
एक श्रद्धा का संकेत है,
और एक दिव्य संदेश है —
कि भगवान भी हमारे जैसे संबंध, प्रेम, और विश्राम के अधिकारी हैं।
तो अगली बार जब आप मंदिर जाएं और गर्भगृह में पर्दा गिरा हुआ देख लें, तो यह न समझें कि भगवान नहीं हैं…
बल्कि यह समझें कि वो वहीं हैं — अपने शयन में लीन, प्रेम में मग्न, और भक्तों के भावों से घिरे हुए।