“उत्तराखंड की पवित्र नदियाँ और देवप्रयाग का दिव्य संगम”

"उत्तराखंड की पवित्र नदियाँ और देवप्रयाग का दिव्य संगम"
“उत्तराखंड की पवित्र नदियाँ और देवप्रयाग का दिव्य संगम”

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उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, न केवल अपने तीर्थ स्थलों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की नदियाँ भी दिव्यता और आध्यात्म का प्रतीक हैं। इन नदियों के जल में केवल पानी नहीं बहता, बल्कि यहाँ बहती है सदियों पुरानी आस्था, परंपरा और संस्कृति।

यहाँ की तीन प्रमुख नदियाँ — अलकनंदा, भागीरथी और सरस्वती — विशेष महत्व रखती हैं। इन तीनों का मिलन होता है एक अद्भुत और पवित्र 
स्थान पर, जिसे कहते हैं देवप्रयाग


अलकनंदा नदी, बद्रीनाथ धाम से निकलती है। यह अपने साथ हिमालय की शुद्धता और तपस्वियों की साधना लेकर बहती है। इसका जल शांत, लेकिन गहरा है — जैसे किसी ऋषि का ध्यान।

भागीरथी नदी, गंगोत्री से निकलती है। इसका प्रवाह तीव्र है, जैसे किसी तपस्वी का संकल्प। यही वह नदी है, जिसे राजा भगीरथ ने पृथ्वी पर लाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया था। उसी के नाम पर इसका नाम पड़ा — भागीरथी।

सरस्वती नदी, जो आज लुप्त मानी जाती है, देवप्रयाग में एक अदृश्य धारा के रूप में मानी जाती है। मान्यता है कि वह भी यहाँ अलकनंदा और भागीरथी से मिलती है।

देवप्रयाग — जहाँ ये तीनों नदियाँ मिलती हैं — केवल एक भौगोलिक संगम नहीं, बल्कि आस्था, शक्ति और ज्ञान का मिलन है। यहीं से गंगा को उसका नया रूप मिलता है। यहीं से शुरू होती है माँ गंगा की यात्रा — जो करोड़ों लोगों की श्रद्धा का केंद्र है।

यह संगम न केवल जल का संगम है, बल्कि तीन अलग-अलग ऊर्जा धाराओं का मिलन है। यहाँ खड़े होकर जो कोई भी नदियों को देखता है, उसके भीतर एक गहराई उतरती है, एक शांति आती है — जैसे स्वयं प्रकृति कोई मंत्र जप रही हो।




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