“पांव रखने से पावन हुआ |जानिए गुरुद्वारा पांवटा साहिब के नाम की दिव्य कथा”

भारत की पवित्र भूमि पर असंख्य गुरुद्वारे और तीर्थ स्थल हैं, जिनका इतिहास केवल ईंट-पत्थरों में नहीं, बल्कि आस्था और आत्मा में बसता है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले में स्थित गुरुद्वारा पौंटा साहिब भी ऐसा ही एक दिव्य स्थान है, जो न केवल सिख धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि हर श्रद्धालु के लिए आत्मिक शांति का केंद्र है।
कहते हैं — जहाँ गुरु के चरण पड़ जाते हैं, वह भूमि भी पवित्र हो जाती है। और यही कथा जुड़ी है “पौंटा साहिब” नाम से, जिसका अर्थ ही है — गुरु के पांव से पावन हुई भूमि।गुरुद्वारा श्री पौंटा साहिब हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में एक प्रख्यात गुरुद्वारा है. गुरुद्वारा श्री पौंटा साहिब सिखों के दसवें गुरु , गुरु गोबिंद सिंह जी की स्मृति में बनाया गया था
गुरु गोबिंद सिंह जी का आगमन
साल 1685 के आसपास की बात है, जब दसवें सिख गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी, आनंदपुर साहिब से निकलकर यमुना नदी के किनारे आ पहुँचे। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ था एक ओर शांत बहती यमुना, दूसरी ओर हरियाली से ढके पहाड़।यह वही जगह थी जहाँ गुरुजी ने अपने घोड़े से उतरकर विश्राम किया। जब उनके पवित्र चरण इस भूमि पर पड़े, तो मानो धरती धन्य हो उठी। आसपास के लोगों ने इसे गुरु की कृपा माना और कहा “यह भूमि तो पांव रखने से पावन हो गई।”
पौंटा साहिब नाम की उत्पत्ति
कथा के अनुसार जब गुरुजी यहाँ ठहरे, तो उन्होंने एक छोटी सी झोपड़ी बनवाई और कुछ समय के लिए यही निवास किया।“पौंटा” शब्द की जड़ “पांव टेका” या “पांव रखा” से मानी जाती है। जब लोगों ने देखा कि गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहाँ अपने पवित्र चरण रखे और इस भूमि को आशीष दी, तो इसे “पांव टेका साहिब” कहा जाने लगा, जो कालांतर में “पौंटा साहिब” नाम से प्रसिद्ध हो गया।
ज्ञान, शक्ति और सेवा का केंद्र
गुरु गोबिंद सिंह जी केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि एक महान कवि, दार्शनिक और संत थे।पौंटा साहिब में उन्होंने अपने शिष्यों को केवल युद्ध-कला ही नहीं, बल्कि शब्द-कला और आत्मज्ञान का भी प्रशिक्षण दिया।यहीं पर गुरुजी ने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की, जिनमें प्रसिद्ध दशम ग्रंथ का एक हिस्सा भी शामिल है।कहा जाता है कि इसी स्थल पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने “जय जय जगत जगदीश हरे” और अन्य भक्तिपूर्ण रचनाएँ भी कीं।
गुरुद्वारा श्री पौंटा साहिब का इतिहास
इस गुरुद्वारे के धार्मिक महत्व का एक उदाहरण है यहाँ पर रखी हुई “पालकी” जो कि शुद्ध सोने से बनी है और किसी एक भक्त ने ये यहाँ दानस्वरुप बनवाई थीपौंटा’ शब्द का अर्थ होता है – ‘पैर’ . इस जगह का नाम इसके अर्थ के अनुसार सर्वश्रेष्ठ महत्व रखता हैं. कहा जाता है की सिख गुरु गोबिन्द सिंह जी अश्व रोहण करके यहाँ से गुजर रहे थे और वो इसी जगह पहुँच कर रुक गए थे और इस जगह को पवित्र माना जाने लगा. इसलिए ” पाओं” और “टीके” को मिलाकर “पाओंता” नाम दिया गया था. गुरुद्वारा पौंटा साहिब न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।यहीं से गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने सेनापतियों और सिख सैनिकों को संगठित किया। यहीं उन्होंने सिख शक्ति और संगठन का संदेश दिया “धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों का ज्ञान आवश्यक है।”आज भी गुरुद्वारे में वह स्थान मौजूद है जहाँ गुरुजी के शस्त्र रखे गए थे जिन्हें श्रद्धा से “शस्त्र गढ़” कहा जाता है।
प्रकृति और अध्यात्म का संगम
पौंटा साहिब की सबसे विशेष बात यह है कि यहाँ आपको प्रकृति की शांति और गुरु की कृपा दोनों का अनुभव एक साथ होता है।यमुना नदी की कलकल ध्वनि, आसपास की हरियाली और गुरुद्वारे की शीतल आभा — सब मिलकर एक अद्भुत ऊर्जा का संचार करते हैं।हर आगंतुक जब यहाँ पहुंचता है, तो उसके मन में एक अजीब सी शांति उतर आती है। यह स्थान केवल दर्शन के लिए नहीं, बल्कि आत्मा के शुद्धिकरण के लिए भी प्रसिद्ध है।
पौंटा साहिब में लंगर और सेवा
गुरुद्वारे की परंपरा के अनुसार यहाँ आने वाले हर व्यक्ति को लंगर (भोजन) का प्रसाद मिलता है।सेवा की भावना यहाँ इतनी गहरी है कि कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं लौटता।लोग कहते हैं कि जो यहाँ सच्चे मन से सेवा करता है, उसे जीवन में कभी कमी नहीं रहती।सेवा ही यहाँ का सच्चा धर्म है — चाहे वह जूते संभालने की हो, रसोई में मदद की या संगत को पानी पिलाने की।
आसपास के पवित्र स्थल
गुरुद्वारे के पास ही यमुना घाट है, जहाँ भक्त स्नान कर अपने मन और तन को शुद्ध करते हैं।कहा जाता है कि इस नदी का जल यहाँ विशेष रूप से पवित्र माना जाता है क्योंकि इसे गुरु के चरणों का स्पर्श मिला था।इसके अलावा यहाँ गुरु का बाग भी प्रसिद्ध है वह बाग जहाँ गुरुजी ने अपने शिष्यों के साथ बैठकर ग्रंथ लेखन किया था।
पौंटा साहिब का संदेश
पौंटा साहिब केवल एक गुरुद्वारा नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा स्थल है।यह हमें सिखाता है कि जब हम सच्चे मन से अपने कर्म, सेवा और भक्ति में लगते हैं, तो हर जगह दिव्यता प्रकट होती है।गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहाँ रहकर जो शिक्षा दी निरभउ होके धर्म की रक्षा करो” वही आज भी हर आगंतुक के हृदय में गूंजती है।
निष्कर्ष
पांव रखने से पावन हुआ” — यह वाक्य केवल एक कथा नहीं, बल्कि एक सच्चाई है।गुरु गोबिंद सिंह जी के पवित्र चरणों ने इस भूमि को अमर बना दिया।आज भी जब कोई श्रद्धालु पौंटा साहिब पहुँचता है, तो उसके मन में यही भाव उठता है कि —“यह वह भूमि है जहाँ खुद ईश्वर के दूत ने पांव रखे थे।”पौंटा साहिब हमें यह सिखाता है कि जहाँ गुरु का वास होता है, वहाँ हर श्वास में शांति, हर दिशा में भक्ति और हर मन में शक्ति बस जाती है।
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