भगवान शिव के गले में वासुकि नाग क्यों रहते हैं ! रहस्य, कथा और प्रतीकात्मक अर्थ

भगवान शिव के गले में वासुकि नाग क्यों रहते हैं ! रहस्य, कथा और प्रतीकात्मक अर्थ

भगवान शिव के गले में वासुकि नाग क्यों रहते हैं ! रहस्य, कथा और प्रतीकात्मक अर्थ

क्या आपने कभी सोचा है कि शिव के गले में ही नाग क्यों हैं?वे चाहें तो उन्हें हाथ में लपेट सकते थे, या पैरों में रख सकते थे, पर उन्होंने उन्हें गले में स्थान क्यों दिया?

october 29,2025

 

भगवान शिव के गले में वासुकि नाग क्यों रहते हैं ! रहस्य, कथा और प्रतीकात्मक अर्थ
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Last Update on 29 October 2025!भगवान शिव को देवों के देव — महादेव कहा जाता है। उनकी वेशभूषा हमेशा रहस्यमय और अद्भुत रही है जटाओं में गंगा, मस्तक पर चंद्र, त्रिशूल हाथ में, और गले में लिपटे हुए वासुकि नाग। पर क्या आपने कभी सोचा है कि शिव के गले में ही नाग क्यों हैं? वे चाहें तो उन्हें हाथ में लपेट सकते थे, या पैरों में रख सकते थे, पर उन्होंने उन्हें गले में स्थान क्यों दिया? आइए इस रहस्य को पौराणिक और आध्यात्मिक दृष्टि से समझते हैं।

वासुकि नाग कौन थे?

वासुकि नागराजों के राजा हैं — यानी नागलोक के अधिपति। वे भगवान विष्णु के शेषनाग के छोटे भाई और भगवान शिव के परम भक्त हैं। उनका उल्लेख समुद्र मंथन की कथा में आता है, जब देवता और दैत्य दोनों ने वासुकि को मंदराचल पर्वत के चारों ओर लपेटकर रस्सी बनाया था। मंथन करते-करते वासुकि के मुख से विष निकला, और वही विष कालांतर में “हलाहल विष” कहलाया — जो इतना भयंकर था कि उससे सम्पूर्ण सृष्टि जलने लगी।

 हलाहल विष और भगवान शिव

देवता और दैत्य दोनों उस विष से भयभीत हो गए।सृष्टि विनाश के कगार पर थी। तब सबने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस विष को रोकें। शिव ने अपनी करुणा और अद्भुत शक्ति से उस हलाहल विष को स्वयं पी लिया ताकि सृष्टि बची रहे। वह विष उनके गले में ठहर गया, और उनका गला नीला पड़ गया — इसलिए वे नीलकंठ कहलाए।

विष की बूँदें और वासुकि नाग की पीड़ा

कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव विष पी रहे थे, तब उस विष की कुछ बूँदें उनके होंठों से समुद्र में टपक पड़ीं। यह दृश्य देवताओं और नागलोक दोनों ने देखा। वासुकि नाग, जो उस समय समुद्र के समीप ही थे,उन्होंने सोचा कि यह अमृत का अंश है — और उसे ग्रहण कर लिया। पर वह विष अत्यंत घातक था। जैसे ही वासुकि ने उसे निगला, उनका शरीर अंदर से जलने लगा। उनकी आँखें लाल हो गईं, और शरीर पर विष के दाग पड़ गए। वासुकि अत्यंत पीड़ा में तड़पने लगे — वे समुद्र के तट पर गिर पड़े। भगवान शिव ने यह देखा, तो वे तुरंत वहाँ पहुँचे।
उन्होंने अपने करुणामय स्पर्श से वासुकि के शरीर को शांत किया। विष का प्रभाव रोकने के लिए शिव ने अपने गले से थोड़ी शक्ति निकालकर वासुकि पर रखी।
इससे वासुकि जीवित तो बच गए, पर उनका रंग सदा के लिए बदल गया — वे काले और नीले पड़ गए, और विष के प्रभाव से उनकी देह पर सर्पचिह्न अंकित हो गए।

वासुकि ने करुणा से कहा 

प्रभो, आपने मुझे विष से बचाया। मैं सदा आपके निकट रहना चाहता हूँ।” भगवान शिव ने मुस्कराकर कहा —“वासुकि, तुम मेरे उस गले में निवास करोगे जहाँ यह विष ठहरा है,
ताकि यह संसार सदा तुम्हें देखकर समझ सके कि भक्ति और समर्पण सबसे बड़ी शक्ति है।”तभी से वासुकि नाग शिव के गले में निवास करने लगे।

 प्रतीकात्मक अर्थ — शिव के गले में नाग क्यों?

यह कथा केवल एक पौराणिक प्रसंग नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक प्रतीक है।

1. गले में नाग — आत्मनियंत्रण का प्रतीक:
शिव ने विष को पीकर नियंत्रित किया, बाहर नहीं निकाला।
इसका अर्थ है कि उन्होंने अपने भीतर की नकारात्मक शक्तियों को भी नियंत्रण में रखा।
वासुकि नाग उसी आत्मसंयम के प्रतीक हैं।

2. नाग — भय और विष पर विजय का प्रतीक:
सर्प से हर कोई डरता है, पर शिव के गले में वही सर्प शांत है।
इसका अर्थ है — जिसने अपने भय को स्वीकार कर लिया, उसने जीवन पर अधिकार पा लिया।

3. गला — जीवन और मृत्यु का सेतु:
गला वह स्थान है जहाँ श्वास और वाणी दोनों बसते हैं।
शिव ने विष वहीं रोका, न उसे निगला, न बाहर फेंका —
यह दर्शाता है कि वे जीवन और मृत्यु दोनों के स्वामी हैं।

4. नाग — ऊर्जा और कुंडलिनी का प्रतीक:
योग में नाग या सर्प कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है,
जो मेरुदंड में लिपटी रहती है।
जब यह शक्ति जागृत होती है, तो व्यक्ति शिव के समान हो जाता है।

शिव के हाथ में क्यों नहीं लिपटे नाग?

अब यह प्रश्न आता है —
वासुकि शिव के गले में ही क्यों लिपटे रहते हैं, हाथ में क्यों नहीं?

इसका उत्तर दो स्तरों पर समझिए —

🔸 भक्ति के स्तर पर:

वासुकि ने कहा था —

“प्रभो, जहाँ आपका विष है, वहीं मेरी भक्ति है।” क्योंकि विष गले में ठहरा था, इसलिए वासुकि ने गले में निवास माँगा। इससे बड़ा समर्पण कोई नहीं।

ज्ञान के स्तर पर:
गला “वाणी” का केंद्र है। वाणी में सत्य, असत्य, क्रोध और प्रेम सब होते हैं। वासुकि का वहाँ रहना दर्शाता है कि शिव की वाणी सदैव संतुलित और नियंत्रित है —वे कभी असत्य नहीं बोलते।

 शिव और वासुकि का आध्यात्मिक संबंध

वासुकि केवल सर्प नहीं हैं — वे शिव की ऊर्जा के रक्षक हैं। जब शिव गहन ध्यान में होते हैं, तो वासुकि उनकी प्राण शक्ति को स्थिर रखते हैं।इसलिए अनेक शिवलिंगों के चारों ओर सर्प की आकृति बनाई जाती है —यह दर्शाता है कि शिव और सर्प का संबंध भय का नहीं, ऊर्जा का है।

 शिव का संदेश — भय पर विजय

शिव के शरीर का हर अंग एक संदेश देता है:

त्रिशूल — नकारात्मकता का नाश,

चंद्र — संतुलन और शांति,

गंगा — जीवन का प्रवाह,

नाग — भय पर विजय का प्रतीक।

जो शिव की भक्ति करता है, वह अपने भीतर के विष को शांत करना सीखता है।वासुकि नाग हमें सिखाते हैं कि

 “जो अपने विष को स्वीकार लेता है, वही सच्चा शिवभक्त है।”

 आध्यात्मिक दृष्टि से

जब कोई साधक ध्यान में प्रवेश करता है,तो उसकी ऊर्जा सर्प की तरह ऊपर उठती है —यह कुंडलिनी जागरण है।शिव उस परम जाग्रत अवस्था के प्रतीक हैं।उनके गले में वासुकि नाग यह दर्शाते हैं किऊर्जा को जाग्रत रखना है, पर नियंत्रित भी रखना है।

भगवान शिव के गले में वासुकि नाग केवल आभूषण नहीं हैं —वे भक्ति, समर्पण, विष पर विजय और आत्मसंयम का प्रतीक हैं।जब शिव ने संसार को बचाने के लिए विष पीया,तब वासुकि ने भी अपने आराध्य के साथ दुःख साझा किया।उनकी देह झुलस गई, पर भक्ति अडिग रही।
इसलिए शिव ने उन्हें गले का स्थान दिया —जहाँ से “विष” भी था और “भक्ति” भी।यही सच्चा शिवत्व है —जहाँ विष भी आशीर्वाद बन जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)


Q1: वासुकि नाग कौन हैं?
A: वासुकि नाग नागलोक के राजा और भगवान शिव के परम भक्त हैं। वे शेषनाग के छोटे भाई हैं।

Q2: वासुकि शिव के गले में क्यों रहते हैं?
A: क्योंकि जब शिव ने हलाहल विष पिया, उसकी कुछ बूँदें वासुकि पर गिरीं। उन्होंने विष सहा और फिर शिव ने उन्हें करुणा से अपने गले में स्थान दिया।

Q3: वासुकि का काला रंग क्यों है?
A: विष के प्रभाव से उनका शरीर जल गया था, जिससे वे काले और नीले रंग के हो गए।

Q4: क्या वासुकि शिव के गले में सदा रहते हैं?
A: हाँ, वासुकि शिव के स्थायी आभूषण हैं, जो भक्ति और त्याग के प्रतीक हैं।

Q5: इसका जीवन में क्या संदेश है?
A: भय, क्रोध और नकारात्मकता को दबाने से नहीं, उन्हें स्वीकार कर नियंत्रित करने से मुक्ति मिलती है — यही शिव का संदेश है।



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