एक व्यक्ति ध्यान में लीन, चारों ओर प्रकाश और शांति का वातावरण, जो भक्ति के मार्ग की ओर लौटने का प्रतीक है।

वर्तमान संघर्ष और शांति की पुकार: आइए भक्ति के मार्ग पर लौटें

वर्तमान संघर्ष और शांति की पुकार: आइए भक्ति के मार्ग पर लौटें

 

एक व्यक्ति ध्यान में लीन, चारों ओर प्रकाश और शांति का वातावरण, जो भक्ति के मार्ग की ओर लौटने का प्रतीक है।
संघर्षों के बीच भक्ति ही वह दीपक है जो जीवन में प्रकाश और शांति लाती है।

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आज का युग तकनीक, महत्वाकांक्षा और प्रतिस्पर्धा से भरा हुआ है। हर व्यक्ति आगे बढ़ना चाहता है, लेकिन इस दौड़ में कहीं न कहीं मनुष्य अपनी शांति, करुणा और भक्ति खो बैठा है।
हमारे चारों ओर संघर्ष बढ़ रहा है  देश में, समाज में, परिवार में, और सबसे अधिक मनुष्य के भीतर।यही कारण है कि आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है  भक्ति के मार्ग पर लौटना।भक्ति केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन की वह प्रक्रिया है जो मनुष्य को स्वयं से जोड़ती है।जब मनुष्य भक्ति की ओर लौटता है, तो वह दूसरों को नहीं, खुद को सुधारने की शुरुआत करता है — और यही सच्ची शांति का मार्ग है।इस समय भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का माहौल है। सीमा पर असुरक्षा है, और लोगों के दिलों में चिंता, गुस्सा और भय का मिश्रण साफ़ दिखाई देता है। ऐसे समय में अक्सर हमारे मन में सवाल उठता है  “आख़िर कब तक यह संघर्ष यूँ ही चलता रहेगा?” लेकिन शायद यह भी एक अवसर है  आत्मचिंतन का, और भक्ति की ओर लौटने का।जब चारों ओर हिंसा, द्वेष और अस्थिरता हो, तो यही समय होता है जब हमें भीतर की ओर देखने की ज़रूरत होती है। जब युद्ध के नगाड़े बज रहे हों, तब हृदय के भीतर शांति का राग गूंजाना चाहिए। क्योंकि सच्चा योद्धा वही है जो बाहरी लड़ाई के साथ-साथ अपने अंदर के अंधकार से भी युद्ध करे।

वर्तमान युग का संघर्ष

हमारे समाज में आज हर व्यक्ति किसी न किसी संघर्ष से जूझ रहा है —

  • आर्थिक चिंता

  • परिवार में मतभेद

  • मानसिक तनाव

  • असंतोष और भय

ये संघर्ष बाहरी नहीं हैं, बल्कि हमारे भीतर के खालीपन का परिणाम हैं।हमने ईश्वर और अपने मूल संस्कारों से दूरी बना ली है, और परिणामस्वरूप मन अशांत और बेचैन हो गया है।

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:

“अशांतस्य कुतः सुखम्?”

अर्थात, “जिसके भीतर शांति नहीं, वह सुख का अनुभव कैसे कर सकता है?”

 भक्ति का अर्थ

भक्ति का अर्थ केवल मंदिर जाना या मंत्र जपना नहीं, बल्कि अपने जीवन को सत्य, करुणा और विश्वास के मार्ग पर चलाना है।भक्ति वह पुल है जो मनुष्य को भौतिकता से अध्यात्म की ओर ले जाता है।जब हम भक्ति में डूबते हैं, तो ईश्वर हमारे जीवन का केंद्र बन जाते हैं।तब मन की उलझनें धीरे-धीरे मिटने लगती हैं, और एक नई ऊर्जा जीवन में भर जाती है।

भक्ति क्यों आवश्यक है

भक्ति के बिना जीवन एक खाली खोल की तरह है।
आज की पीढ़ी के पास सब कुछ है — पैसा, साधन, तकनीक —
लेकिन मन की शांति और आत्मिक संतोष नहीं।
क्योंकि शांति का स्रोत भीतर है, बाहर नहीं।

भक्ति उस स्रोत तक पहुँचने का मार्ग है।
यह हमें सिखाती है कि जो हमारे पास है, उसमें आभार महसूस करें;
जो नहीं है, उसके लिए ईश्वर पर विश्वास रखें।

“भक्ति हमें शिकायत से श्रद्धा की ओर ले जाती है।”

भक्ति में छिपी शांति

जब कोई व्यक्ति सच्चे मन से ईश्वर का स्मरण करता है, तो उसके भीतर करुणा, प्रेम और क्षमा का भाव जाग्रत होता है।भक्ति हमें दूसरों के दोष देखने से रोकती है और आत्मचिंतन की प्रेरणा देती है।यही आत्मचिंतन हर प्रकार के संघर्ष को समाप्त कर देता है।

महर्षि तुलसीदास ने कहा था 

“भय बिन होइ न प्रीति।”

जब ईश्वर के प्रति भक्ति और भय (श्रद्धा) दोनों होते हैं, तभी मनुष्य संतुलित और शांत रहता है।

 भक्ति का आधुनिक अर्थ

आज के संदर्भ में भक्ति का मतलब है —

अपने कार्य में ईमानदारी रखना,

हर व्यक्ति के प्रति सम्मान रखना,

गलत परिस्थिति में भी संयम बनाए रखना,

और हर निर्णय से पहले अंतरात्मा की आवाज़ सुनना।

भक्ति का यह आधुनिक रूप समाज को नई दिशा दे सकता है।यदि हर व्यक्ति अपने भीतर शांति का दीपक जलाएगा, तो दुनिया अपने आप रोशन हो जाएगी।

संघर्ष से शांति की ओर यात्रा

भक्ति मनुष्य को भीतर से बदल देती है।

  1. संघर्ष से स्वीकार्यता: भक्ति सिखाती है कि हर स्थिति ईश्वर की इच्छा है।

  2. क्रोध से करुणा: जब मन ईश्वर से जुड़ता है, तो दूसरों की गलती पर भी क्षमा भाव आता है।

  3. भय से विश्वास: भक्ति हमें यह विश्वास दिलाती है कि जो भी हो रहा है, वह हमारे हित में है।

  4. अहंकार से समर्पण: जब अहंकार टूटता है, तभी आत्मिक शांति जन्म लेती है।

 भक्ति का प्रभाव समाज पर

यदि हर व्यक्ति भक्ति के मार्ग पर लौट आए, तो समाज से —

घृणा की जगह प्रेम,

हिंसा की जगह सहिष्णुता,

और असंतोष की जगह संतोष फैल जाएगा।

भक्ति हमें दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलने की प्रेरणा देती है,और यही किसी भी परिवर्तन का पहला चरण है।

धर्म का नहीं, चेतना का मार्ग

भक्ति किसी धर्म, जाति या पंथ की सीमाओं में नहीं बंधी।यह तो चेतना की यात्रा है जहाँ आत्मा, परमात्मा से मिलन की अनुभूति करती है।भक्ति वह दर्पण है जिसमें हम स्वयं को और ईश्वर को एक साथ देख पाते हैं।”

 ईश्वर का सच्चा संदेश

ईश्वर ने कभी नहीं कहा कि केवल मंदिर में ही मुझे खोजो।उन्होंने कहा  “मुझे अपने कर्मों, अपने प्रेम और अपने विश्वास में खोजो।”जब हम अपने कर्म को पूजा मानते हैं,जब हर जीव में ईश्वर का अंश देखते हैं,तभी सच्ची भक्ति प्रकट होती है।

आज मानवता को हथियारों या विज्ञान से नहीं, बल्कि भक्ति और करुणा से बचाया जा सकता है।संघर्ष की जड़ें बाहर नहीं, हमारे मन में हैं  और उन्हें केवल भक्ति ही शांत कर सकती है।तो आइए,हम सब मिलकर फिर से भक्ति के मार्ग पर लौटें जहाँ न कोई जाति है, न वर्ग, न विरोध सिर्फ प्रेम, विश्वास और शांति की अनंत धारा है।भक्ति ही वह शक्ति है जो मनुष्य को पशुता से देवत्व की ओर ले जाती है।”


 
 

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