“महादेव ने कहा – कुछ न दे सको तो ये एक चीज़ ज़रूर देना, अमीर भी इसके लिए हाथ फैलाता है!”

भगवान महादेव — जो भोलेनाथ कहलाते हैं — सादगी, दया और प्रेम के प्रतीक हैं।वे न तो सोने-चाँदी की कामना करते हैं, न ही भव्य मंदिरों की।महादेव कहते हैं —
“मुझे भक्ति चाहिए, दिखावा नहीं। मुझे प्रेम चाहिए, लेन-देन नहीं।”
एक बार एक भक्त ने भोलेनाथ से पूछा
“भगवान! अगर हमारे पास कुछ भी न हो, तो आपको क्या अर्पित करें?”
महादेव मुस्कुराए और बोले
“यदि कुछ न दे सको, तो एक चीज़ ज़रूर देना, जिसे अमीर भी पाने के लिए हाथ फैलाता है…”
वो एक चीज़ क्या थी?
महादेव ने जो उत्तर दिया, वह इतना गहरा था कि ब्रह्मा, विष्णु और देवता भी मौन हो गए।
भोलेनाथ बोले —“मुझे शुद्ध हृदय की भावनाएँ दो।”उन्होंने कहा —“धन, वस्त्र, मणि-माणिक्य सब व्यर्थ हैं, यदि उनमें प्रेम और सच्चाई नहीं।पर अगर तुम्हारे हृदय में सच्ची भावना है, तो वह मेरे लिए सबसे मूल्यवान भेंट है
महादेव का संदेश: भावना ही सच्चा दान
एक कथा शिव पुराण में आती है —एक गरीब भक्त था जो रोज़ शिवलिंग पर केवल जल चढ़ाता था।कई लोग उसका मज़ाक उड़ाते कि “यह क्या देगा भगवान को?”परंतु जब एक बार मंदिर में अकाल पड़ा और कोई भी पूजन न कर सका,तब वही गरीब भक्त हर दिन जल लेकर पहुँचा।महादेव प्रकट हुए और बोले —
जिसने मुझे भावना से जल दिया, उसने मुझे सृष्टि दी।
और जिसने सोना चढ़ाया पर अहंकार से, उसने कुछ नहीं दिया।”
यही वह “एक चीज़” है — भावना, जो हर भक्ति का मूल है।
क्यों भावना सबसे बड़ा दान है
भावना में लोभ नहीं होता:जब हम भावना से देते हैं, तो प्रतिफल की अपेक्षा नहीं रखते।
यह शुद्ध दान कहलाता है।भावना में ईश्वर बसते हैं:भगवान स्वयं कहते हैं —
“मैं उस हृदय में निवास करता हूँ, जहाँ सच्चा प्रेम हो।”
भावना धनवान को भी दरिद्र बना देती है:
जिसने प्रेम खो दिया, उसके पास चाहे सोना हो या महल,
पर भीतर का सुख चला जाता है।
इसलिए अमीर भी उस भावना की तलाश में रहता है, जो उसे शांति दे।
महादेव और स्वर्ण मंदिर की कथा
एक बार कैलाश पर्वत पर पार्वती जी ने महादेव से पूछा “स्वामी, आपको लाखों लोग पूजा करते हैं, फिर भी आप केवल कुछ भक्तों पर ही प्रसन्न क्यों होते हैं?”महादेव बोले “क्योंकि हर कोई चढ़ावा लाता है, पर भावना नहीं।”उन्होंने आगे कहा “जिसने मुझे भक्ति के साथ एक बूँद जल भी दिया, वह मुझसे जुड़ गया।पर जिसने मेरे सामने अहंकार रखा, वह मुझसे दूर हो गया।”
अमीर भी क्यों मांगता है भावना?
कहते हैं, “भावना वह चीज़ है जो खरीदी नहीं जा सकती।”यह सबसे अमीर व्यक्ति की भी कमी होती है।कितने ही लोग धनवान हैं, पर भीतर से खाली महसूस करते हैं —
क्योंकि उन्हें वह सच्ची शांति नहीं मिलती जो “भक्ति” और “प्रेम” से आती है।
महादेव कहते हैं “भावना अमीर को भी विनम्र बनाती है, और गरीब को भी ईश्वर के समीप।”
शिव का सच्चा भक्त कौन?
शिव पुराण में लिखा है —“जो बिना दिखावे के भक्ति करता है, वही मेरा सच्चा भक्त है।”महादेव को भस्म इसलिए प्रिय है क्योंकि वह “अहंकार के अंत” का प्रतीक है।
वे कहते हैं —
“मैं उस भक्त से दूर हूँ जो धन से पूजा करता है,
और उस हृदय में बसता हूँ जहाँ केवल प्रेम की अग्नि जलती है।”
एक लघु कथा – अमीर व्यापारी और साधु
एक अमीर व्यापारी रोज़ शिवलिंग पर सोना चढ़ाता था।
एक दिन उसने देखा कि एक साधु केवल जल और बेलपत्र अर्पित कर रहा है।
व्यापारी ने हँसकर कहा —
“इतना कम देकर भगवान खुश होंगे?”
साधु मुस्कुराया —“मैं जो देता हूँ, वह बाहर से नहीं, भीतर से आता है।”
अचानक मंदिर में तेज़ प्रकाश हुआ और महादेव की आवाज़ आई “साधु का एक बेलपत्र मेरे लिए तुम्हारे सोने के पहाड़ से भारी है।”
भावना से की गई पूजा का फल
भावना से किया गया हर कार्य फल देता है।यदि कोई गरीब व्यक्ति सिर्फ “ॐ नमः शिवाय” बोलते हुए मिट्टी का दीप जलाता है,तो वह करोड़ों के सोने के दीपक से अधिक पवित्र है।
महादेव कहते हैं —“मैं रूप नहीं, रस देखता हूँ।
मैं अर्पण नहीं, भावना स्वीकार करता हूँ।”
क्या देना चाहिए जब कुछ न हो
यदि जीवन में कुछ भी न हो —ना धन, ना साधन, ना समय —फिर भी एक चीज़ हमेशा दी जा सकती है — सच्ची प्रार्थना।
“हे महादेव, मैं कुछ नहीं रखता, बस आपको याद करता हूँ।”
यही सबसे बड़ा अर्पण है।
क्योंकि प्रार्थना में प्रेम, कृतज्ञता और विश्वास तीनों होते हैं —और यही तीन चीज़ें हर इंसान को पूर्ण बनाती हैं।
महादेव का अमर संदेश
“जिसने भावना दी, उसने सब कुछ दिया।
जिसने भावना खो दी, उसके पास कुछ नहीं बचा।”
यही कारण है कि अमीर भी भावना के लिए हाथ फैलाता है,क्योंकि पैसा सुख दे सकता है, पर शांति नहीं।शांति केवल उसी को मिलती है, जिसके भीतर सच्ची भावना जागी हो।
महादेव की यह शिक्षा हमें याद दिलाती है कि “ईश्वर को पाने के लिए भव्य मंदिर नहीं, बस एक सच्चा दिल चाहिए।”जब हम दिल से किसी की मदद करते हैं, दिल से ईश्वर को पुकारते हैं,
तो वही “भावना” हमें ईश्वर से जोड़ती है।माँ पार्वती ने एक बार कहा था —
“स्वामी, आपके भक्त आपको इतनी जल्दी क्यों पा लेते हैं?”
भोलेनाथ मुस्कुराए —
“क्योंकि मैं भावना से बंधा हूँ, तिलक से नहीं।”
हर हर महादेव 🔱
श्रद्धा से भरा रहे हर दिल, यही हमारी भी दुआ है।