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कलयुग का अंत शुरू हो चुका है क्या आप तैयार हैं?”

    कलयुग का अंत शुरू हो चुका है क्या आप तैयार हैं?”

    जब सत्य मौन है और पाप मुखर — तब जानिए क्या यह कलयुग का अंतिम चरण है। चेतावनी स्पष्ट है, परिवर्तन निकट है।

    सत्य का अभाव और झूठ का साम्राज्यkalyug-ka-ant-shuru-ho-chuka-hai

    जानिए कलयुग का अंत कैसे शुरू हो चुका है और क्या आप इस युग परिवर्तन के लिए तैयार हैं। धर्म घट रहा है, पाप बढ़ रहा है — चेतावनी स्पष्ट है

    तब भगवान ने चार युगों की व्यवस्था की  सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग।हर युग में धर्म, सत्य और पवित्रता की मात्रा घटती गई, और अंततः जब कलयुग आया तो मानवता के पतन का आरंभ हुआ।आज का युग कलयुग — वह समय है जब सत्य झूठ के नीचे दब चुका है, लोभ ने प्रेम को निगल लिया है और पाप ने पुण्य का स्थान ले लिया है।

    कलयुग की पहचान

    शास्त्रों में वर्णन आता है कि कलयुग की पहचान क्या होगी।महर्षि वेदव्यास ने कहा था —

    “कलौ धर्मः हि नाम मात्रः भविष्यति।”

    अर्थात कलयुग में धर्म केवल नाम का रह जाएगा।

    मनुष्य दिखावे में धार्मिक होगा, पर भीतर से छल, ईर्ष्या और लोभ से भरा होगा।आज वही हम सब देख रहे हैं जहां मंदिर तो बने हैं, पर मन मंदिर नहीं रहे;जहां लोग पूजा तो करते हैं, पर मन में कपट रखते हैं।

    लोभ और भोग की आग

    आज का इंसान भगवान से नहीं, बाज़ार से जुड़ा है।वह पूजा भी करता है, लेकिन मन में सौदेबाज़ी लिए —“भगवान, मुझे यह दे दो, मैं तेरे लिए दीप जलाऊँगा।”यह आस्था नहीं, व्यापार है।
    मनुष्य अब आत्मा की नहीं, शरीर की भूख मिटा रहा है।विलासिता ने विवेक को खा लिया है,और लालच ने प्रेम को नष्ट कर दिया है।

    सत्य का अभाव और झूठ का साम्राज्य

    कलयुग में झूठ बोलना बुद्धिमानी समझा जाता है।व्यवसाय में छल को “नीति” कहा जाता है,और ईमानदारी को “मूर्खता।”जो झूठे हैं वे ऊँचे पदों पर हैं, और जो सच्चे हैं वे संघर्ष में हैं।यह वही युग है, जहां मनुष्य अपने ही सगे का शत्रु बन जाता है माता-पिता से तकरार, भाई से द्वेष, मित्र से प्रतिस्पर्धा।पैसा और पद रिश्तों से बड़ा हो गया है।

    धर्म का पतन

    कलयुग की सबसे बड़ी त्रासदी है  धर्म का पतन और अधर्म का उत्थान।आज साधु के वेश में पाखंडी छिपे हैं, और पापी भी धर्म का नाम लेकर अपराध करते हैं।संतों की वाणी व्यापार बन चुकी है,और धर्म राजनीति का हथियार।भगवान का नाम लेने वाले बहुत हैं,पर भगवान को मानने वाले बहुत कम।

    भोगवाद का जाल

    कलयुग में मनुष्य की सबसे बड़ी भूख — भोग और विलासिता है।लोग अपनी आत्मा की शांति भूलकर शरीर की इच्छाओं के पीछे दौड़ रहे हैं।कभी धन के पीछे, कभी दिखावे के पीछे।हर कोई कहता है — “मुझे और चाहिए।”पर जितना पा लिया, उसमें संतोष नहीं।यही कलयुग की सबसे गहरी पीड़ा है संतोष खत्म और तुलना अनंत।

    समय का पतन

    पहले लोग कहते थे — “समय का आदर करो।”अब लोग समय नहीं, समय को भी खरीदने की सोचते हैं।तेज़ जीवन, कृत्रिम संबंध, और अंतहीन प्रतिस्पर्धा नेमानवता को मशीन बना दिया है।जो मनुष्य “ध्यान” में बैठ सकता था,वह अब “मोबाइल” में डूबा है।मन की स्थिरता अब स्क्रीन की चमक में खो गई है।

    संबंधों का विघटन

    कलयुग में प्रेम सशर्त है,दोस्ती लाभ की बात है,और विवाह एक सौदा बन गया है।जहां आत्मा का मेल होना चाहिए था,वहां अब आर्थिक मेल देखा जाता है।बच्चे माता-पिता को बोझ समझने लगे हैं,और माता-पिता बच्चों को निवेश।संवेदनाएँ सूख गई हैं —मनुष्य अब रोबोट की तरह जी रहा है,जिसके पास भावनाएँ नहीं, केवल कार्यक्रम हैं।

    प्रकृति का प्रतिशोध

    जब मनुष्य अपने स्वार्थ में अंधा हो जाता है,तो प्रकृति स्वयं न्याय करती है।आज धरती की गर्मी बढ़ रही है,नदियाँ सूख रही हैं, जंगल जल रहे हैं।यह केवल पर्यावरण की समस्या नहीं —
    यह मानव के पापों का परिणाम है। शास्त्रों में कहा गया —“जब धर्म घटता है, तब प्रकृति भी क्रुद्ध होती है।”

    आशा की किरण

    फिर भी, हर अंधकार के बाद प्रकाश आता है।कलयुग का यह अंधकार हमेशा नहीं रहेगा।जब पाप अपनी सीमा पार करेगा,तब भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा —जो अधर्म का अंत करेगा और धर्म को पुनः स्थापित करेगा।परंतु भगवान के अवतरण से पहले,हर आत्मा को अपनी भीतर की ज्योति जगानी होगी।

    कलयुग में मुक्ति का मार्ग

    कलयुग भले ही अंधकारमय हो,पर इसका एक वरदान है —“नाम-स्मरण।”जो भी व्यक्ति ईमानदारी से भगवान का नाम लेता है,वह कलयुग के प्रभाव से मुक्त हो सकता है।श्रीमद्भागवत में कहा गया है —“कलौ तद् हरि कीर्तनात्।”अर्थात — केवल हरि नाम का स्मरण करने से ही मुक्ति संभव है।इसलिए,
    जहां अंधकार है, वहां दीप जलाओ।
    जहां झूठ है, वहां सत्य बोलो।
    जहां नफरत है, वहां प्रेम फैलाओ।
    यही कलयुग में सच्चा धर्म है।

    कलयुग पतन का युग है, पर साथ ही जागरण का अवसर भी है।जो व्यक्ति इस युग में भी अपनी आत्मा को जगाए रखेगा,वह वास्तव में सच्चा साधक होगा।

    जब संसार लोभ में खोया है,
    तब जो व्यक्ति “प्रेम” चुनता है —
    वह ही भगवान के निकट है।

    इसलिए, अंधकार से मत डरो।
    बस एक दीप बनो,
    क्योंकि 

    “एक दीप हजार अंधकार मिटा देता है।”

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