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पाप को करते देख भगवान चुप क्यों रहते हैं

पाप को करते देख भगवान चुप क्यों रहते हैं

भगवान पाप को करते देख चुप रहने के कई कारण हो सकते हैं: भगवान की इच्छा है कि चीज़ें अपरिवर्तित रहें. पाप करने वाले का भाग्य साथ दे रहा होता है. पाप करने वाले को दंड न मिलने की वजह से डर खत्म हो जाता है और वह और पाप करता है.  ईश्वर एक न्यायी और निष्पक्ष न्यायकर्ता है. वह कूकर्मियों को दंड और भले लोगों को इनाम देता है.

भगवान मौन हैं, पर अंधे नहींhttps://bhakti.org.in/bhagwan-chup-kyun-rehte-hain/
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था

“कर्म करो, फल की चिंता मत करो।”इसका अर्थ यही है कि हर कर्म का फल निश्चित है,भले ही देर से मिले, पर मिलेगा अवश्य।

हुत सुंदर और गहरा सवाल है — “पाप को करते देख भगवान चुप क्यों रहते हैं?”
आइए इसका उत्तर विस्तार से और भावनात्मक तरीके से समझते हैं (आप इसे YouTube वीडियो या ब्लॉग स्क्रिप्ट की तरह भी इस्तेमाल कर सकते हैं 👇):


कई बार हमारे मन में यह सवाल उठता है —अगर भगवान सच में हैं, तो जब कोई पाप करता है, निर्दोष पर अत्याचार होता है, तब वो चुप क्यों रहते हैं?क्या उन्हें यह सब दिखाई नहीं देता?क्या वो अन्याय को रोक नहीं सकते? पर सच्चाई कुछ और है…

1. भगवान मौन हैं, पर अंधे नहीं

भगवान हर पाप, हर अन्याय, हर क्रूरता को देखते हैं।वो चुप इसलिए रहते हैं क्योंकि उनका न्याय तुरंत नहीं, बल्कि सही समय पर होता है।जैसे किसान बीज बोने के बाद तुरंत फसल नहीं काटता — वैसे ही भगवान भी समय आने पर फल देते हैं।कर्म का फल कभी न कभी अवश्य मिलता है।

 2. भगवान हमें परखते हैं

कभी-कभी भगवान चुप रहकर यह देखते हैं कि क्या मनुष्य अन्याय देखकर भी धर्म का साथ देता है या नहीं।यह मौन उनका परीक्षण होता है — हमारी श्रद्धा, धैर्य और कर्म की परीक्षा।

 3. भगवान स्वयं नहीं, कर्म बोलता है

भगवान ने सृष्टि को कर्म के नियमों से बाँधा है। उन्होंने गीता में कहा है “जैसा कर्म करेगा वैसा फल पाएगा।”इसलिए वे हर बार बीच में हस्तक्षेप नहीं करते,क्योंकि यदि वे हर बार रोक देंगे, तो मनुष्य का कर्म और जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी।

 4. न्याय देर से होता है, पर अटल होता है

रामायण में रावण, महाभारत में कौरव दोनों ही उदाहरण हैं कि भगवान ने कुछ समय तक चुप रहकर भी अंत में न्याय किया।रावण को कई वर्ष तक शक्ति मिली, पर जब सीमा पार की तो श्रीराम का तीर कभी नहीं चूका।इसी तरह, भगवान की न्याय-घड़ी धीमी जरूर है, लेकिन कभी रुकती नहीं।

5. भगवान हमें समझाना चाहते हैं

भगवान का मौन हमें यह सिखाता है कि अगर पाप देखकर भी हम चुप रहेंगे,तो हम भी उस पाप में भागीदार बनेंगे।इसलिए वे चाहते हैं कि हम धर्म के पक्ष में खड़े हों,भले ही पूरा संसार गलत दिशा में जा रहा हो। भगवान की चुप्पी उनकी अनुपस्थिति नहीं,बल्कि उनका धैर्य और विश्वास है —कि एक दिन सत्य अवश्य विजयी होगा।“सत्य परेशान हो सकता है, पर पराजित नहीं।”ईश्वर दयालु भी है और पश्चाताप करने पर पापियों को क्षमा प्रदान करता है. मसीह में विश्वास करने वाले के लिए, परमेश्वर हमेशा पाप के विरुद्ध हमारा सहयोगी है. 

भगवान की चुप्पी में संदेश क्या है?

भगवान का मौन हमें यह सिखाता है किअगर हम पाप देखकर भी मौन रहें,तो हम भी उस अन्याय में सहभागी बन जाते हैं।वे चाहते हैं कि हम सत्य के पक्ष में खड़े हों, धर्म का साथ दें,और अन्याय के विरोध में आवाज़ उठाएँ।उनकी चुप्पी हमें यह भी सिखाती है किहर कठिन समय में हमें धैर्य और विश्वास बनाए रखना चाहिए।क्योंकि जब हम हार मान लेते हैं, तब भी भगवान हमारे साथ होते हैं —बस वे हमारी परीक्षा ले रहे होते हैं।

विचारणीय प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न 1: क्या भगवान की चुप्पी हमारी परीक्षा है या चेतावनी?
उत्तर: भगवान की चुप्पी दोनों है — परीक्षा भी और चेतावनी भी।परीक्षा इसलिए, ताकि वे जान सकें कि हम धर्म पर टिके रहते हैं या नहीं।चेतावनी इसलिए, ताकि पापी समझ लें कि उनका समय सीमित है।

प्रश्न 2: क्या हम धर्म के लिए खड़े हैं, या केवल दर्शक बने हैं?
👉 उत्तर: अगर हम पाप देखकर भी चुप हैं,तो हम भी उस पाप का हिस्सा हैं।भगवान चाहते हैं कि हम निर्भय होकर सत्य के साथ खड़े हों।

प्रश्न 3: क्या हम दूसरों के पाप देखकर मौन रहकर खुद पापी नहीं बन रहे?
👉 उत्तर: बिल्कुलगीता में कहा गया है “जो अधर्म को सहता है, वह भी अधर्मी है।”इसलिए मौन रहना भी एक प्रकार का पाप है।

प्रश्न 4: क्या भगवान का मौन हमें खुद भगवान जैसा बनने की प्रेरणा देता है?
👉 उत्तर: हाँ।
भगवान का मौन हमें धैर्य, करुणा और न्याय की भावना सिखाता है।वे हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम भी अपने भीतर का ईश्वर जागृत करेंऔर सच्चाई के मार्ग पर चलें।

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