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“गणपति बप्पा मोरया! विसर्जन के पीछे छुपे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्य”

“गणपति बप्पा मोरया! विसर्जन के पीछे छुपे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्य”

“गणपति बप्पा मोरया! विसर्जन के पीछे छुपे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्य”
“गणपति बप्पा मोरया! विसर्जन के पीछे छुपे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्य”https://bhakti.org.in/ganesh-visarjan-aastha-parampara-vigyaan/

गणेशोत्सव भारत का एक प्रमुख पर्व है, जो दस दिनों तक भक्तिभाव और उत्साह से मनाया जाता है। इन दिनों घर-घर और पंडालों में गणपति बप्पा की स्थापना होती है और अंतिम दिन श्रद्धा भाव से उनका विसर्जन किया जाता है। विसर्जन का अर्थ है—“आगमन और प्रस्थान का उत्सव”। यह हमें जीवन के मूल सत्य की याद दिलाता है कि सब कुछ नश्वर है और हर आरंभ का एक अंत निश्चित है।

परंपरागत रूप से गणेश प्रतिमा को नदी, तालाब या समुद्र में ले जाकर विधि-विधान से जल में विसर्जित किया जाता है। ढोल-नगाड़ों और भजनों के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है, जहाँ भक्त “गणपति बप्पा मोरया” का जयघोष करते हैं। विसर्जन से पहले पूजा, आरती और नैवेद्य अर्पण कर भगवान से घर-परिवार की सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगा जाता है।

लोगों का विश्वास

1. भक्ति का भाव – माना जाता है कि गणेश जी की विदाई जितनी श्रद्धा से होगी, उतना ही शीघ्र वे अगले वर्ष पुनः पधारेंगे।

2. विघ्नों का नाश – विसर्जन से जीवन में आई बाधाएँ और दुख जल के साथ बह जाते हैं।

3. पुनः आगमन का वचन – “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” कहकर भक्त उनके पुनः स्वागत का संकल्प लेते हैं।

परंपरा और प्रतीकात्मकता

मिट्टी की मूर्ति यह दर्शाती है कि हम भी इसी मिट्टी से बने हैं और अंततः इसी में विलीन हो जाएंगे।

प्रतिमा का जल में मिल जाना जीवन की अनित्यता (impermanence) का प्रतीक है।

यह त्योहार समाज को एकता, सहयोग और मिल-जुलकर उत्सव मनाने का संदेश देता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही तरीका

वर्तमान समय में प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP), केमिकल रंग और सजावटी सामग्री से बनी मूर्तियाँ जल प्रदूषण का कारण बन रही हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विसर्जन करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए:

1. मिट्टी या प्राकृतिक रंगों की प्रतिमा – इससे जल प्रदूषण नहीं होता और यह जल्दी घुल जाती है।

2. कृत्रिम विसर्जन कुंड – कई नगर निगम पानी के टैंक और कृत्रिम तालाब बनाते हैं, जहाँ सुरक्षित विसर्जन किया जा सकता है।

3. घर पर विसर्जन – छोटी मूर्तियों को घर में बाल्टी या गमले में पानी रखकर उसमें विसर्जित किया जा सकता है। बाद में उस जल का उपयोग पौधों को सींचने में किया जा सकता है।

4. धातु, प्लास्टिक या पॉलिश वाली प्रतिमा से बचें – ये जल जीवों और पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं।

महामूर्ति विसर्जन और आज की चुनौती

आजकल बड़े-बड़े पंडालों और समितियों में कई फीट ऊँची गणेश प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं। इन विशाल मूर्तियों का विसर्जन करना आसान नहीं होता। अक्सर देखा जाता है कि लोग इन्हें अधूरा ही नदी-तालाब में डाल देते हैं या किसी खाली जगह पर फेंक देते हैं। इससे मूर्तियाँ पानी के बाहर पड़ी रह जाती हैं, टूट-फूट जाती हैं और कचरे का ढेर बन जाती हैं।

समस्याएँ जो सामने आती हैं

1. पर्यावरण प्रदूषण – प्लास्टर ऑफ पेरिस की विशाल प्रतिमाएँ पानी में नहीं घुलतीं और महीनों तक गंदगी फैलाती रहती हैं।
2. धार्मिक अपमान – अधूरी मूर्ति का फेंका जाना आस्था का अपमान भी माना जाता है।
3. स्वास्थ्य खतरे – केमिकल रंग और सजावट का कचरा मछलियों, पक्षियों और स्थानीय निवासियों के लिए हानिकारक है।

सही तरीका क्या होना चाहिए?

इको-फ्रेंडली महामूर्ति – आयोजकों को मिट्टी, गोबर या अन्य प्राकृतिक सामग्री से बनी मूर्तियों का ही प्रयोग करना चाहिए।
कृत्रिम विसर्जन स्थल – नगर निगम और समितियों को मिलकर बड़े टैंक या कृत्रिम तालाब बनाना चाहिए, जहाँ सुरक्षित तरीके से महामूर्ति विसर्जित की जा सके।
विसर्जन के बाद प्रबंधन – विसर्जन के बाद बचे हुए फूल, कपड़े, सजावट को कूड़े की तरह न फेंकें, बल्कि अलग से एकत्रित कर कंपोस्ट या पुनर्चक्रण (recycle) में उपयोग करें।
सामूहिक जिम्मेदारी – पंडाल समितियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विसर्जन आधा-अधूरा न हो। मूर्ति पूरी तरह से जल में मिल जाए, तभी विसर्जन सम्पन्न माना जाए।

आस्था और सम्मान बनाए रखें

मूर्ति चाहे छोटी हो या बड़ी, उसमें भगवान गणेश का रूप माना जाता है। इसलिए उसका अपमान या लापरवाही करना उचित नहीं है। विसर्जन इस भाव से करें कि गणपति बप्पा विदा होकर पुनः हमारे घर और जीवन में शुभता लेकर आएँ।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्र.1: क्या गणेश विसर्जन हमेशा नदी या समुद्र में करना जरूरी है?
उत्तर: नहीं, अब पर्यावरण की दृष्टि से घर या कृत्रिम कुंड में विसर्जन करना अधिक उचित माना जाता है।

प्र.2: अगर मिट्टी की प्रतिमा नहीं मिली तो क्या करें?
उत्तर: ऐसी स्थिति में छोटी प्रतिमा खरीदें और उसे घर पर ही सुरक्षित तरीके से विसर्जित करें।

प्र.3: विसर्जन का सही दिन कौन-सा है?
उत्तर: गणेश चतुर्थी से ग्यारहवें दिन अनंत चतुर्दशी पर परंपरागत रूप से विसर्जन किया जाता है, लेकिन लोग 3, 5 या 7 दिन बाद भी कर सकते हैं।

प्र.4: क्या विसर्जन न करने से कोई दोष लगता है?
उत्तर: यह पूरी तरह श्रद्धा का विषय है। अगर प्रतिमा को विसर्जित नहीं करना चाहते, तो उन्हें स्थायी रूप से घर के मंदिर में भी रखा जा सकता है।

प्र.5: बच्चों को विसर्जन में क्यों शामिल करना चाहिए?
उत्तर: ताकि वे परंपरा, पर्यावरण और संस्कृति के महत्व को समझें और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी विकसित करें।

गणेश विसर्जन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के गहरे संदेश को दर्शाता है। आज आवश्यकता है कि हम अपनी परंपराओं को निभाते हुए पर्यावरण की रक्षा करें। मिट्टी की प्रतिमा और कृत्रिम कुंड का उपयोग करके हम भक्ति और विज्ञान, दोनों का संतुलन बना सकते हैं। इसी से सच्चे अर्थों में “गणपति बप्पा मोरया” का जयघोष सार्थक होगा।

✍️ लेखक: संदीप रावत (भक्ति ज्ञान ब्लॉग)


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1 thought on ““गणपति बप्पा मोरया! विसर्जन के पीछे छुपे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक तथ्य””

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