क्यों मनाई जाती है उत्तराखंड में दिवाली 11 दिन बाद?”
क्यों मनाई जाती है उत्तराखंड में दिवाली 11 दिन बाद?”
भारत के हर कोने में दिवाली रोशनी, प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, लेकिन उत्तराखंड में यह पर्व एक अनोखी परंपरा के साथ मनाया जाता है।
यहाँ लोग एक नहीं, बल्कि दो दिवालियाँ मनाते हैं —पहली दिवाली कार्तिक अमावस्या को (जैसे देशभर में मनाई जाती है), और दूसरी, 11 दिन बाद, जिसे कहते हैं “एगास बग्वाल” या “देवी दीपावली”।
एगास बग्वाल न सिर्फ धार्मिक रूप से, बल्कि गढ़वाल की ऐतिहासिक और लोक परंपराओं से भी गहराई से जुड़ी है।
पहली दिवाली – कार्तिक अमावस्या की दिवाली:
यह वही दिवाली है जो पूरे भारत में कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। इस दिन लोग माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं,
दीप जलाते हैं और अपने घरों को सजाते हैं। उत्तराखंड के मैदानों और शहरों — जैसे देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी आदि — में यह दिवाली पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है।
लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में असली रौनक 11 दिन बाद आती है — जब मनाई जाती है एगास बग्वाल।
दूसरी दिवाली – एगास बग्वाल (11 दिन बाद की दिवाली):
“एगास” का अर्थ है एकादशी, यानी दिवाली के 11वें दिन। उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ के लोग इस दिन को देवी दीपावली के रूप में मनाते हैं।यह दिन भक्ति, पराक्रम और परंपरा – तीनों का संगम है।
एगास बग्वाल 11 दिन बाद क्यों मनाई जाती है?
1️⃣ लोककथा: श्रीराम के लौटने का समाचार 11 दिन बाद पहुँचना
जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर दिवाली मनाई। लेकिन तब उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों तक यह शुभ समाचार पहुँचने में समय लगा —
पहाड़ों के कठिन रास्तों, नदियों और दूरी के कारण लोगों को यह खबर 11 दिन बाद मिली। जब यह सूचना गढ़वाल और कुमाऊँ पहुँची, तो वहाँ के लोगों ने उसी दिन दीप जलाए और प्रसन्नता मनाई।
तभी से यह परंपरा बन गई कि यहाँ श्रीराम के लौटने की खुशी में दिवाली 11 दिन बाद मनाई जाएगी।
2️⃣ ऐतिहासिक कथा: गढ़वाल के वीर योद्धा माधव सिंह जगजीत की घर वापसी
गढ़वाल क्षेत्र में एक प्रचलित मान्यता है कि एक समय गढ़वाल के वीर योद्धा माधव सिंह जगजीत युद्ध पर गए थे। उन्होंने अपने पराक्रम से दुश्मनों को परास्त किया और जब वे विजय पाकर अपने घर लौटे,
तो वह दिन दिवाली के 11 दिन बाद का था। उनकी वापसी पर पूरे क्षेत्र में दीप जलाकर उत्सव मनाया गया, और तभी से इस दिन को एगास बग्वाल के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। यह कथा गढ़वाल के लोगों के वीरत्व, कृतज्ञता और संस्कृति की प्रतीक बन गई।
3️⃣ कृषि और देवी पूजा से जुड़ा कारण:
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में फसल कटाई देर से होती है। इसलिए जब लोग अपने अन्न को सुरक्षित घर में रख लेते हैं,तब वे देवी लक्ष्मी और अन्नपूर्णा की पूजा करते हैं। इस तरह एगास बग्वाल को अन्नकूट पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
एगास दिवाली कैसे मनाई जाती है?
1. घरों की सजावट और पवित्रीकरण
दिवाली से पहले हर घर को गेरू, गोबर और पानी से लीपा जाता है।दीवारों पर पारंपरिक चित्र और पवित्र चिह्न बनाए जाते हैं।
2. गौ-पूजा:
गायों और बैलों को नहलाकर, माथे पर तिलक लगाकर, फूलों से सजाया जाता है। यह पर्व कृषि, पशु और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है।
3.अन्नकूट पर्व:
इस दिन घरों में पारंपरिक भोजन बनता है — मंडुवे की रोटी, खीर, आलू की सब्जी, पूड़ी और घी से बने व्यंजन। परिवार एक साथ भोजन करता है और इसे प्रसाद रूप में बाँटता है।
4. लोकगीत और नृत्य:
शाम को गाँवों में लोग एकत्र होकर ढोल-दमाऊं की थाप पर नाचते-गाते हैं। महिलाएँ झोड़ा, चांचरी, और रंवाई नृत्य करती हैं। गीतों में देवी शक्ति, श्रीराम और वीर माधव सिंह की जय-जयकार की जाती है।
5. दीपदान:
रात को नदी, खेत और मंदिरों में सैकड़ों दीप जलाए जाते हैं। इसे “देवी दीपदान” कहा जाता है। यह दृश्य पूरे उत्तराखंड को एक चमकते पर्वत राज्य में बदल देता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
यह पर्व श्रीराम के लौटने और गढ़वाल के वीरों की विजय का प्रतीक है। देवी लक्ष्मी और अन्नपूर्णा माता की कृपा प्राप्ति के लिए दीप जलाए जाते हैं। यह पर्व उत्तराखंडी एकता, भक्ति और लोक संस्कृति का उत्सव है। उत्तराखंड की एगास बग्वाल हमें यह सिखाती है कि भक्ति, पराक्रम और संस्कृति — तीनों मिलकर ही असली दीपावली का प्रकाश बनते हैं। यह पर्व केवल दीपों का नहीं, बल्कि देवी शक्ति, मातृभूमि और धर्म के प्रति निष्ठा का प्रतीक है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
1. उत्तराखंड में दो दिवालियाँ क्यों मनाई जाती हैं?
👉 पहली, कार्तिक अमावस्या को देश के साथ; दूसरी, 11 दिन बाद एगास बग्वाल के रूप में।
2. एगास बग्वाल किस दिन मनाई जाती है?
👉 कार्तिक शुक्ल एकादशी को।
3. इसका संबंध किन कथाओं से है?
👉 भगवान श्रीराम के लौटने का समाचार 11 दिन बाद मिलने से और गढ़वाल के योद्धा माधव सिंह जगजीत की विजय वापसी से।
4. इस दिन क्या विशेष किया जाता है?
👉 गौ-पूजा, अन्नकूट, दीपदान और लोकनृत्य।
5. क्या यह त्योहार पूरे उत्तराखंड में मनाया जाता है?
👉 हाँ, विशेष रूप से गढ़वाल, चमोली, टिहरी, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर और पिथौरागढ़ क्षेत्रों में।
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