"जब प्रकृति क्रोधित होती है – तबाही जन्म लेती है"

“जब प्रकृति क्रोधित होती है – तबाही जन्म लेती है”

“जब प्रकृति क्रोधित होती है – तबाही जन्म लेती है”

"जब प्रकृति क्रोधित होती है – तबाही जन्म लेती है"
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“जब प्रकृति क्रोधित होती है – तबाही जन्म लेती है”

पहाड़ कभी चुप नहीं रहते


पहाड़ कभी चुप नहीं रहते, बस सहते हैं, 
पेड़ों की चीखें, नदियों की सिसकियां – सब कहते हैं।

कभी मंदिर इधर किया, कभी उधर किया, 
जिन देवताओं ने रक्षा की, उन्हीं का स्थान बदल दिया।

वनों को काटा, पगडंडियों को मिटाया, 
प्रकृति को जब चाहा, वैसे ही आज़माया।

बिजली की धारें जो पर्वतों ने खुद पर लीं, 
अब उनके नीचे विस्फोटों की चालें चलीं।

क्या तुम समझते हो, यह तबाही यूँ ही आई है? 
नहीं! यह प्रकृति की पुकार है, जो हमने अनसुनी बनाई है।

जंगल देवता हैं, नदी माँ है, और पर्वत पिता, 
इनसे छेड़छाड़ कर, इंसान ने खुद को ही ललकारा है सदा।

अब भी समय है, चेत जाओ, 
प्रकृति से प्रेम करो, उसे फिर से अपनाओ।

वरना जो पर्वत सहन कर रहे हैं आज, 
कल वो आग बनकर बरसेंगे, और नहीं रहेगी कोई आवाज़।

देवता भी अब नाराज़ हैं… 
हमारी इन हरकतों को देखकर, वे मौन नहीं रह गए हैं।

हमने जंगलों को काट डाला, 
नदियों का बहाव रोका, 
और देवस्थानों को एक जगह से दूसरी जगह करना शुरू कर दिया।

लेकिन क्या हम भूल गए हैं, 
देवी-देवताओं का स्थान पवित्र होता है। 
वो जहां विराजमान हैं, उन्हें वहीं रहने देना चाहिए।

क्या आपको याद है, 
साल 2013 की वो काली रात… 
जब *धारी देवी मंदिर* को उसकी मूल जगह से हटाया गया था? 
और उसी रात उत्तराखंड ने वह विनाश देखा, 
जो सदियों तक लोगों की आत्मा को झकझोरता रहेगा।

हजारों लोग बह गए, 
केदारनाथ मंदिर भी जल प्रलय की मार के बीच आ गया, 
पर केवल शिव ही थे जो अडिग रहे – 
लेकिन हम इंसान फिर भी नहीं चेते।

मैं आप सभी से folded hands के साथ विनती करता हूँ — 
**कृपया देवी-देवताओं के स्थलों को इधर-उधर न करें।** 
**प्रकृति के साथ खिलवाड़ न करें।** 
**जंगल, नदियां, पहाड़ — ये सब हमारे रक्षक हैं, खिलौने नहीं।**

अगर हमने अब भी प्रकृति और आस्था के नियमों का पालन न किया, 
तो अगली बार विनाश और भी बड़ा होगा — 
और कोई भी नहीं बचा पाएगा।

अब भी समय है… 
प्रकृति का साथ दें, 
देवताओं की मर्यादा बनाए रखें, 
और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित धरती छोड़ जाएं।

🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏🙏 हरि ओम् 🙏https://bhakti.org.in/devta-bhi-naraz-hain/

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