Pauranik Kathayen: कैसे हुआ था पवन पुत्र हनुमान का जन्म, पढ़ें यह पौराणिक कथा

Pauranik Kathayen: कैसे हुआ था पवन पुत्र हनुमान का जन्म, पढ़ें यह पौराणिक कथा

Pauranik Kathayen: कैसे हुआ था पवन पुत्र हनुमान का जन्म, पढ़ें यह पौराणिक कथा

File Auidzi6gmj73c4vbozdd322652746787600409785birth-of-hanuman-story

भारतीय पौराणिक ग्रंथों में हनुमान जी का नाम उस वीर के रूप में लिया जाता है, जो शक्ति, भक्ति और निष्ठा का प्रतीक हैं। वे केवल भगवान श्रीराम के परम भक्त ही नहीं, बल्कि समर्पण, साहस और विनम्रता के आदर्श भी हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पवनपुत्र हनुमान का जन्म कैसे हुआ था? आइए इस अद्भुत कथा को विस्तार से समझते हैं।

File 2sr5n3pxghgq3n8puftzbk3881707855555679875

अंजनी माता की तपस्या

प्राचीन काल में किंनर कुल में जन्मी अंजना नाम की एक अप्सरा थीं। अंजना अत्यंत सुंदर और नृत्यकला में निपुण थीं, परंतु एक बार उन्होंने एक ऋषि का उपहास कर दिया था। इससे क्रोधित होकर उस ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया – “तुम्हें पृथ्वी पर जन्म लेना होगा और तुम वानर रूप में जीवन व्यतीत करोगी।”
श्राप सुनकर अंजना बहुत दुखी हुईं और उन्होंने ऋषि से क्षमा मांगी। तब ऋषि ने कहा, “जब भगवान शंकर का अंश तुम्हारे गर्भ से जन्म लेगा, तब तुम्हारा यह श्राप समाप्त हो जाएगा।”यह बात सुनकर अंजना ने हिमालय के एक पर्वत पर जाकर कठोर तपस्या आरंभ की। वे दिन-रात भगवान शिव की उपासना करने लगीं। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक भगवान स्वयं उन्हें दर्शन नहीं देंगे, वे अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगी।


पवन देव का आशीर्वाद

इसी समय भगवान शिव और माता पार्वती ने अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया — “तुम्हारे गर्भ से मेरा अंश उत्पन्न होगा, जो धर्म, बल, बुद्धि और भक्तिभाव का अद्भुत संगम होगा।”भगवान शंकर ने पवन देव (वायु देवता) को आदेश दिया कि वे इस कार्य में सहयोग करें, क्योंकि वही प्राणों के वाहक हैं। पवन देव ने विनम्रता से सिर झुकाया और कहा, “भगवान, यह मेरा सौभाग्य होगा।”

File Gnlwibtavsxwbj4fnpysar8138399846815933690

दूसरी ओर अयोध्या में एक घटना

उसी समय अयोध्या में राजा दशरथ अपनी संतान के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवा रहे थे। उस यज्ञ के पूर्णाहुति के समय अग्नि देव प्रकट हुए और उन्होंने राजा दशरथ को पायस (खीर) का एक पात्र दिया। उन्होंने कहा — “इसे अपनी रानियों को बांट दीजिए, जिससे उन्हें दिव्य संतान प्राप्त होगी।”
राजा दशरथ ने वह खीर अपनी तीनों रानियों — कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी — को दी।

एक अद्भुत संयोग

जब गरुड़ देव उस यज्ञ में उपस्थित थे, तब एक भाग खीर का पात्र उनके पंजों से गिरकर आकाश में उड़ गया और सीधे उस पर्वत की ओर गया जहाँ अंजना माता तपस्या कर रही थीं।
यह कोई संयोग नहीं था, बल्कि यह भगवान की लीला थी। पवन देव ने अपने दिव्य वेग से उस खीर का अंश अंजना माता के हाथों में पहुंचा दिया।
अंजना ने जैसे ही वह प्रसाद ग्रहण किया, उनके गर्भ में दिव्य तेज उत्पन्न हुआ — यही दिव्य तेज बाद में हनुमान के रूप में अवतरित हुआ।

हनुमान जी का जन्म

समय बीतने पर अंजना माता ने एक सुंदर वानर बालक को जन्म दिया। जैसे ही बालक का जन्म हुआ, पूरे पर्वत पर प्रकाश फैल गया। देवताओं ने आकाश से पुष्पवर्षा की, और सभी ने घोषणा की —
“जय पवनपुत्र हनुमान की!”

उस बालक की काया सुनहरी थी, आंखों में अद्भुत चमक थी और उसके शरीर से दिव्य आभा निकल रही थी। पवन देव ने उस शिशु को आशीर्वाद दिया —
“तुम मेरे पुत्र के समान हो, इसीलिए तुम्हें ‘पवनपुत्र’ कहा जाएगा। तुम्हारी गति, शक्ति और बुद्धि अतुलनीय होगी।”

बाल्यकाल की अद्भुत घटनाएं

हनुमान जी बचपन से ही अत्यंत चंचल और शक्तिशाली थे। एक दिन उन्होंने उगते हुए सूरज को फल समझकर आकाश की ओर छलांग लगा दी। सूर्य तक पहुंचने ही वाले थे कि इंद्रदेव ने अपने वज्र से प्रहार कर दिया।
उस प्रहार से हनुमान जी बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। यह देखकर पवन देव क्रोधित हो गए और उन्होंने संपूर्ण वायु को रोक दिया। संसार में सांस रुक गई, सब जीव तड़पने लगे।
तब सभी देवता पवन देव को शांत करने पहुंचे। इंद्रदेव ने अपनी भूल स्वीकार की और हनुमान जी को जीवनदान दिया।

देवताओं ने हनुमान जी को अनेक वरदान दिए —

  • ब्रह्मा जी ने कहा, “तुम्हें कोई शस्त्र कभी आहत नहीं करेगा।”

  • विष्णु जी ने कहा, “तुम सदैव धर्म की रक्षा करोगे।”

  • शंकर जी ने वर दिया, “तुम मेरे अंश हो, इसलिए तुम्हारी भक्ति और शक्ति कभी क्षीण नहीं होगी।”

‘हनुमान’ नाम की उत्पत्ति

जब अंजना माता ने अपने पुत्र को देखा तो उन्होंने कहा, “यह बालक तो बहुत सुंदर है, लेकिन इसके ठोड़ी पर हल्का सा निशान क्यों है?”
वास्तव में, जब इंद्रदेव के वज्र से बालक गिरा था, तब उसकी ठोड़ी (हिंदी में ‘हनु’) पर हल्की चोट आई थी। उसी कारण देवताओं ने उसे हनुमान नाम दिया — अर्थात “जिसकी हनु (ठोड़ी) प्रमुख हो।”

भगवान शिव का अवतार

पौराणिक कथाओं के अनुसार हनुमान जी स्वयं भगवान शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। उन्होंने इस जन्म को भगवान विष्णु के अवतार राम की सहायता करने के लिए धारण किया था।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि शक्ति तभी सार्थक है जब वह धर्म और सेवा के लिए प्रयुक्त हो।
हनुमान जी का चरित्र केवल एक कथा नहीं, बल्कि यह एक प्रेरणा है — समर्पण की, भक्ति की और निर्भयता की।


हनुमान जी का संदेश

हनुमान जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि जब तक मन में श्रद्धा और सेवा भाव है, तब तक असंभव भी संभव हो सकता है।
उन्होंने कभी अपने बल का अभिमान नहीं किया, हमेशा कहा —

“श्रीराम के नाम से ही मैं सब कार्य कर सकता हूँ।”

यही कारण है कि वे आज भी करोड़ों भक्तों के हृदय में बसे हुए हैं। उनकी भक्ति से मन में साहस, आत्मविश्वास और विनम्रता का भाव आता है।

पवनपुत्र हनुमान जी की यह जन्मकथा केवल एक पौराणिक कहानी नहीं, बल्कि यह बताती है कि जब भक्ति सच्ची होती है, तो ईश्वर स्वयं मार्ग प्रशस्त करते हैं।
अंजना माता की तपस्या, पवन देव की करुणा, और भगवान शिव का आशीर्वाद — इन सबके संगम से जन्मे हनुमान जी आज भी भक्तों के रक्षक और प्रेरणा स्रोत हैं।

Similar Posts

2 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *