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“समुद्र में डूबी द्वारका आखिरकार मिल ही गई भगवान श्रीकृष्ण की नगरी!

"समुद्र में डूबी द्वारका – आखिरकार मिल ही गई भगवान श्रीकृष्ण की नगरी!

"समुद्र में डूबी द्वारका – आखिरकार मिल ही गई भगवान श्रीकृष्ण की नगरी!

“समुद्र में डूबी द्वारका – आखिरकार मिल ही गई भगवान श्रीकृष्ण की नगरी!

क्या आपने कभी सोचा है… वो नगरी जो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बसाई थी… क्या वह सचमुच अस्तित्व में थी? क्या द्वारका, समुद्र की गहराइयों में लुप्त हो चुकी एक दिव्य नगरी है… या ये सिर्फ एक पौराणिक कथा थी?

लेकिन अब… जो खोज हुई है, वो आपके विश्वास को और भी गहरा कर देगी…

हां! वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों की टीम ने अरब सागर की गहराइयों में एक ऐसी नगरी के अवशेष खोज निकाले हैं, जो महाभारत काल की बताई जा रही है! हां! वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों की टीम ने अरब सागर की गहराइयों में एक ऐसी नगरी के अवशेष खोज निकाले हैं, जो महाभारत काल की बताई जा रही है!

समुद्र में डूबी द्वारका आखिरकार मिल ही गई – भगवान श्रीकृष्ण की नगरी!

क्या कभी आपने सोचा है कि श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका, जो समुद्र में डूब गई थी, क्या वास्तव में अस्तित्व में थी?क्या यह सिर्फ पुराणों की कथा है या फिर एक ऐतिहासिक सच्चाई जो आज विज्ञान भी मानने को मजबूर है?आज हम बात करेंगे उस रहस्यमयी नगरी की, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं बसाया था — द्वारका

भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका – एक दिव्य नगरी

पुराणों के अनुसार, जब मथुरा पर कंस के बाद जरासंध ने बार-बार आक्रमण किया, तब श्रीकृष्ण ने अपने यदुवंशियों की रक्षा के लिए एक नई नगरी बसाई।उन्होंने समुद्र से भूमि मांगी और समुद्र देवता ने स्वयं भूमि प्रदान की।वहीं पर श्रीकृष्ण ने द्वारका का निर्माण करवाया — एक स्वर्ण नगरी, सात द्वारों से घिरी हुई, जिसमें सैकड़ों महल, सुन्दर बगीचे और चमकते रत्नों से जड़े भवन थे।कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण ने अपना पृथ्वी लोक का कार्य पूरा किया, तो समुद्र ने धीरे-धीरे द्वारका को अपने अंदर समा लिया।
लोगों ने इस कथा को सदियों तक सिर्फ एक पौराणिक कहानी समझा… लेकिन अब ऐसा नहीं है।

विज्ञान ने भी मानी द्वारका की सच्चाई

1970 के दशक में भारत सरकार के मैरीन आर्कियोलॉजिकल विभाग ने गुजरात के ओखा तट के पास समुद्र के नीचे डाइविंग अभियान शुरू किया।और जब वैज्ञानिकों ने समुंदर की गहराई में झांका — तो जो उन्होंने देखा, वह किसी चमत्कार से कम नहीं था।समुद्र की लगभग 100 फीट गहराई में विशाल पत्थरों के ढांचे, दीवारें, स्तंभ, सड़कों के निशान और पुराने समय की वस्तुएं मिलीं।ये सभी संरचनाएँ यह बताने के लिए काफी थीं कि यहां कभी एक सुसंगठित नगर बसा था।

प्राचीन अवशेषों ने खोला रहस्य

समुद्र में मिले बर्तन, मूर्तियाँ, और पत्थर के ब्लॉक्स की जांच जब की गई, तो उनकी आयु करीब 9000 साल पुरानी निकली।मतलब, ये सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुरानी है!वैज्ञानिकों ने सोनार तकनीक से पूरे क्षेत्र का नक्शा तैयार किया — और पाया कि वहाँ चौड़ी सड़के, नहरें, और बंदरगाह जैसी संरचनाएँ हैं।यानी यह कोई सामान्य गाँव नहीं, बल्कि एक समृद्ध व्यापारिक और सांस्कृतिक नगरी थी।


क्या यह सच में श्रीकृष्ण की द्वारका थी?

अब सवाल उठता है — क्या यह वही द्वारका है जो भगवान श्रीकृष्ण की थी?पुराणों में लिखा है कि द्वारका सात द्वारों से घिरी थी, और इसमें सुनहरी और चांदी की दीवारें थीं।
समुद्र में मिली नगरी की संरचना भी सात भागों में विभाजित दिखी।यह समानता इतनी गहरी थी कि पुरातत्वविदों ने कहा — “यह कोई संयोग नहीं हो सकता।”डॉ. एस.आर. राव, जो इस अभियान के प्रमुख वैज्ञानिक थे, उन्होंने कहा “हमने जिस नगरी को समुद्र के नीचे पाया है, उसके सभी प्रमाण महाभारत और हरिवंश पुराण में वर्णित द्वारका से मेल खाते हैं।”

इतिहास से जुड़ता प्रमाण

महाभारत में वर्णित है कि द्वारका श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद समुद्र में विलीन हो गई थी।वैज्ञानिक रूप से देखें तो गुजरात के समुद्र तट पर सदियों से भूकंपीय गतिविधियाँ और समुद्र स्तर में वृद्धि होती रही हैं। संभव है कि इसी प्राकृतिक प्रक्रिया के चलते वह नगरी डूब गई हो।इतिहासकारों का मानना है कि यह खोज न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि सभ्यता के विकास के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है।यह दर्शाती है कि भारत की सभ्यता कितनी प्राचीन और विकसित थी — जब मिस्र और रोम भी उतने विकसित नहीं थे।

द्वारका आज भी जीवित है

आज भी गुजरात के द्वारका नगर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर हर भक्त को श्रीकृष्ण की याद दिलाता है।कहा जाता है कि यह मंदिर ठीक उसी स्थान पर बना है, जहाँ पुरानी द्वारका समुद्र में समा गई थी।हर दिन लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं — और समुद्र के किनारे बैठकर उस अदृश्य दिव्य नगरी को महसूस करते हैं, जो अब लहरों के नीचे विश्राम कर रही है।

श्रद्धा और विज्ञान का संगम

द्वारका की खोज यह सिद्ध करती है कि श्रद्धा और विज्ञान विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।जहाँ आस्था हमें दिशा देती है, वहीं विज्ञान हमें प्रमाण देता है।दोनों मिलकर उस सत्य को उजागर करते हैं, जो सदियों से धूल में दबा हुआ था।आज द्वारका सिर्फ एक धार्मिक स्थान नहीं — बल्कि मानव इतिहास का गौरवशाली प्रमाण है।वह बताती है कि जब संसार अंधकार में था, तब भारत में ज्ञान, भक्ति और वास्तुकला की रोशनी जगमगा रही थी।

द्वारका सिर्फ एक डूबी हुई नगरी नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीला का प्रतीक है।जहाँ से उन्होंने अधर्म का नाश किया, धर्म की स्थापना की और हमें यह सिखाया कि“जो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलता है, उसका नाम कभी नहीं डूबता।”द्वारका भले ही समुद्र में विलीन हो गई हो,पर उसकी महिमा, उसकी कथा और उसका सत्य आज भी हर भक्त के हृदय में जीवित है।

“जय श्रीकृष्ण! द्वारकाधीश की जय!”

विशेष उपकरणों और अंडरवॉटर रडार सिस्टम्स की मदद से जो चित्र सामने आए हैं, उनमें भव्य महलों, सीढ़ियों, खंभों और मंदिरों की झलक देखी गई है।और ये सब… उसी स्थान पर मिला है जिसे आज हम “गुजरात की द्वारका” के नाम से जानते हैं!शास्त्रों में कहा गया है –

“जब भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़ी, तब उन्होंने समुद्र के किनारे एक नई नगरी बसाई – द्वारका।” और श्रीमद्भागवत में लिखा है – “जब श्रीकृष्ण इस धरती से विदा हुए, तब समुद्र ने द्वारका को अपने भीतर समा लिया।”अब ये खोज ये सिद्ध कर रही है कि द्वारका कोई कल्पना नहीं थी… यह साक्षात सत्य है…

क्या हम इस खोज को एक संकेत मानें?

क्या ये समय है – अपने विश्वास को फिर से जाग्रत करने का?

आपका क्या मानना है?

क्या द्वारका की खोज हमारे पौराणिक इतिहास की पुष्टि है?

नीचे कमेंट करके अपने विचार जरूर बताइए…

 

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