मृत्यु का महत्व – अगर मृत्यु न होती तो क्या होता?”

यह प्रश्न जितना सरल लगता है, उतना ही गहरा और रहस्यमय है —“अगर मृत्यु न होती, तो क्या होता?”यह केवल दार्शनिक प्रश्न नहीं, बल्कि जीवन के रहस्य को समझने की कुंजी है।
जब कोई अपनों को खोता है… तो सबसे पहला प्रश्न यही उठता है – “मृत्यु क्यों आती है?”क्यों वो चेहरे जो कभी मुस्कुराते थे, अब केवल तस्वीरों में रह जाते हैं?क्यों वो आवाजें जो हमारे जीवन का हिस्सा थीं, अब एक शून्य में समा जाती हैं?
जीवन और मृत्यु – दो पहलू, एक ही सत्य
हम अक्सर मृत्यु को अंत मान लेते हैं,लेकिन वास्तव में मृत्यु ही नए आरंभ का द्वार है।जैसे सूर्य अस्त होता है, ताकि फिर उग सके —वैसे ही मृत्यु, आत्मा को एक नए अनुभव की ओर ले जाती है।“मृत्यु विनाश नहीं, परिवर्तन है।”अगर मृत्यु न होती, तो यह सृष्टि ठहर जाती,विकास रुक जाता, और जीवन एक बोझ बन जाता।
गर मृत्यु न होती, तो क्या होता?
कल्पना कीजिए —अगर कोई भी कभी न मरता,तो क्या दुनिया जीने लायक रह पाती?
धरती पर भीड़ बढ़ती जाती —
हर युग, हर पीढ़ी एक साथ जीवित होती।
न भोजन पर्याप्त रहता, न संसाधन।
समय ठहर जाता —
हर जीव अमर होता, तो “नया जन्म” का अर्थ ही खत्म हो जाता।
अनुभवों का आदान-प्रदान रुक जाता।
प्रेम और वियोग की गहराई मिट जाती —
अगर किसी के जाने का भय न होता,
तो किसी को पाने की लालसा भी इतनी तीव्र न होती।
कर्म का चक्र टूट जाता —
पुनर्जन्म, मोक्ष, और आत्मा की यात्रा सब अधूरी रह जाती।
मृत्यु ही सिखाती है “जीना”
मृत्यु हमें यह एहसास दिलाती है कि हर क्षण अनमोल है।अगर मृत्यु न होती, तो शायद कोई“आज” का मूल्य नहीं समझता।“मृत्यु हर दिन हमें याद दिलाती है कि हम जीवित हैं।”यही कारण है कि भगवद गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं —
“जो जन्मा है, उसकी मृत्यु निश्चित है;
और जो मरा है, उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है।”
मृत्यु का असली अर्थ
मृत्यु शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं।आत्मा तो केवल वस्त्र बदलती है —जैसे पुराना वस्त्र त्यागकर नया धारण किया जाता है।अगर मृत्यु न होती, तो यह आत्मा कभी शुद्ध नहीं हो पाती,
क्योंकि उसके कर्मों का फल उसे भोगने का अवसर ही न मिलता।
क्या मृत्यु वास्तव में अंत है?
या यह एक आरंभ है – आत्मा की उस यात्रा का जो शरीर से परे है?
हिंदू दर्शन कहता है – “न जायते म्रियते वा कदाचित्।”
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
शरीर मिटता है, पर आत्मा अनंत है।
मृत्यु आवश्यक है… क्योंकि यह जीवन को अर्थ देती है।कल्पना कीजिए, अगर मृत्यु न होती, तो क्या हम कभी समय की कद्र करते?
क्या हम अपने संबंधों को, अपने कर्मों को, अपने जीवन को इतनी गहराई से जीते?
मृत्यु हमें याद दिलाती है कि यह जीवन अनमोल है।हर सांस, हर क्षण, एक उपहार है।हर दिन एक अवसर है – प्रेम करने का, सीखने का, बढ़ने का, और मोक्ष की ओर बढ़ने का।
हमारे ऋषियों ने कहा – “मरणं प्रकृति: शरीरिणां।”मरना प्रकृति का नियम है।जो जन्मा है, वो मरेगा।लेकिन जो जान गया है स्वयं को… उसके लिए मृत्यु भी एक उत्सव बन जाती है।
मृत्यु इस संसार की एक याद दिलाने वाली घंटी है –कि यह शरीर केवल एक वस्त्र है,और आत्मा यात्री है… जो एक शरीर से दूसरे शरीर की यात्रा करती है,जब तक वो परमात्मा में विलीन न हो जाए।
सोचिए… अगर मृत्यु न होती,तो क्या संतों की वाणी इतनी प्रभावशाली होती? क्या गीता का ज्ञान हमें झकझोरता?
भगवद गीता कहती है –
“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय,
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।”
जैसे हम पुराने वस्त्र छोड़ कर नए वस्त्र धारण करते हैं,वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़ कर नया शरीर लेती है।
प्रकृति का हर कण यही कहता है –जो उत्पन्न हुआ है, वो नष्ट होगा…और जो नष्ट होता है, वो फिर से उत्पन्न होगा।
यह चक्र है – जीवन और मृत्यु का,जो सृष्टि को संतुलन देता है।मृत्यु डरावनी नहीं है…डर तो इस बात का है कि हम उसे समझ नहीं पाए।
मृत्यु केवल एक द्वार है –जहां से आत्मा अपनी अगली यात्रा के लिए निकलती है।और यह जानना… कि मृत्यु निश्चित है…हमें वर्तमान को पूरी तरह जीने की प्रेरणा देता है।
जीवन का अंतिम उद्देश्य केवल जीना नहीं है,बल्कि स्वयं को जानना है, आत्मा को पहचानना है,और परमात्मा से एकाकार हो जाना है।
जब तक हम मृत्यु को स्वीकार नहीं करते,हम जीवन को गहराई से समझ नहीं सकते।
इसलिए मृत्यु आवश्यक है।
क्योंकि यही हमें याद दिलाती है –
कि हम केवल शरीर नहीं हैं…
हम आत्मा हैं – चैतन्य, शाश्वत, और अमर।
“मृत्यु अंत नहीं… एक नवीन आरंभ है।”
“ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।”]
मृत्यु हमें डराती नहीं, जीवन को अर्थ देती है।
वह हमें सिखाती है कि हर पल को प्रेम, करुणा और कृतज्ञता से जिया जाए।“जो मृत्यु से नहीं डरता, वही सच में जीना जानता है।”