“गरुड़ पुराण के अनुसार चुगली करने वाले की भयानक सजा”
गरुड़ पुराण—वह दिव्य ग्रंथ जिसे स्वयं भगवान विष्णु ने गरुड़ जी को सुनाया। इसमें मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा, कर्मों का लेखा-जोखा, और यमलोक की भयानक सच्चाई का विस्तार से वर्णन है।
## गरुड़ पुराण में चुगली की सजा क्या है?
इस पुराण में एक विशेष प्रकार के पाप का उल्लेख मिलता है—जिसे आज की दुनिया में बहुत हल्के में लिया जाता है, लेकिन उसकी सजा इतनी भयंकर है कि आत्मा तड़प उठे।
यह पाप है—‘चुगली करना’।
हां, किसी की पीठ पीछे उसकी निंदा करना, झूठ फैलाना, दो लोगों के बीच दरार डालना—यह सिर्फ सामाजिक अपराध नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पतन का कारण भी है।
गरुड़ पुराण के प्रेत खंड में स्पष्ट लिखा है:
“योऽन्यस्य दोषान् कथयेत् स धर्मविचलः स्मृतः।
स नरकं याति घोरं यावदिन्द्राश्च पश्यति॥”
अर्थ:
जो व्यक्ति दूसरों की बुराई करता है, उनकी निंदा करता है, वह धर्म से विचलित माना जाता है और उसे ऐसा घोर नरक भोगना पड़ता है, जहाँ वह तब तक तड़पता है जब तक इंद्र जैसे महान देवता उसे न देख लें।
चुगली करने वाला प्राणी मृत्यु के बाद असिपत्रवन नामक नरक में फेंका जाता है। वहाँ लोहे की पत्तियों वाले पेड़ होते हैं, जिनके हर पत्ते पर तेज़ धार होती है। ऐसे पेड़ों पर उसकी आत्मा को उल्टा टांग दिया जाता है, और पक्षी उसके शरीर को नोचते हैं। यह पीड़ा हजारों वर्षों तक चलती है।
चुगली से रिश्ते टूटते हैं, समाज में वैमनस्य फैलता है, और सबसे बढ़कर यह पाप आत्मा को अधोगति की ओर ले जाता है।
लेकिन समाधान क्या है?
गरुड़ पुराण बताता है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी गलती को स्वीकार कर, प्रायश्चित करे, और भविष्य में सत्य और प्रेम के मार्ग पर चले—तो उसे मुक्ति का मार्ग भी प्राप्त हो सकता है।
कहानी एक चेतावनी है।
यदि आपने कभी किसी की चुगली की है, तो अब समय है आत्ममंथन का। सत्य बोलें, परोपकार करें, और दूसरों के दोष ढूंढ़ने की जगह अपने गुण बढ़ाएं।
क्योंकि गरुड़ पुराण की दृष्टि में—
“वाणी ही वह तलवार है, जो बिना खून बहाए, आत्मा को घायल कर देती है।”
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