क्या भगवान भाव से खुश होते हैं या भोग से? जानिए कन्नप्पा की सच्ची कथा”

क्या भगवान भाव से खुश होते हैं या भोग से? जानिए कन्नप्पा की सच्ची कथा”
जंगलों में बसे एक साधारण जीवन का वह योद्धा, जिसे न ग्रंथों का ज्ञान था, न पूजा-पाठ की रीति-नीति…परंतु उसका दिल, उसका प्रेम, उसकी श्रद्धा – वह शुद्ध थी…
यही था कन्नप्पा, वह शिकार करने वाला वनवासी… जिसने वो कर दिखाया, जो हजारों ज्ञानी भी नहीं कर पाए।
️ भक्ति की परिभाषा बदल देने वाला भक्त
एक दिन, उसे एक शिवलिंग मिला। उस पर गिरते पत्ते, धूल और सूखा…
और कन्नप्पा का हृदय रो पड़ा। न उसके पास जल था, न दूध।तो उसने अपने ही मुंह से पानी भरकर शिवलिंग पर चढ़ा दिया।वह जो मांस लेकर आता था शिकार में, वही महादेव को अर्पित कर देता – क्योंकि उसके लिए वह शुद्ध भाव से चढ़ाया गया प्रसाद था।
थूक…? और शिव ने स्वीकार किया…
एक बार शिवलिंग की आंख से रक्त बहने लगा…कन्नप्पा ने बिना सोचे समझे अपनी एक आंख निकालकर चढ़ा दी। फिर दूसरी आंख निकालने को तैयार हुआ…लेकिन तभी शिव प्रकट हुए – महाकाल ने खुद आकर उसे रोक दिया।
और कहा –
“तू ही मेरा सच्चा भक्त है। तूने मुझे प्रेम दिया, निष्कलंक भाव दिया… यही मुझे चाहिए।”
🕯️ कहानी का संदेश
जो लोग सोचते हैं कि केवल घी, फूल, और मंत्रों से भगवान प्रसन्न होते हैं…वो भूल जाते हैं कि भगवान भाव के भूखे हैं, भोग के नहीं। आज हम उसी भक्त को महाभक्त कन्नप्पा के नाम से जानते हैं।
और वही आज का सच्चा संदेश है –
“सच्ची भक्ति में दिखावा नहीं, समर्पण होता है।”
जिसने शिवलिंग पर मांस और थूक चढ़ाया…
वही बना भगवान शिव का सबसे प्रिय भक्त।
🚩 हर हर महादेव!
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