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शिव जी और भस्मासुर की रहस्यमयी कथा | शिवपुराण की प्रसिद्ध कहानी

शिव जी और भस्मासुर की रहस्यमयी कथा | शिवपुराण की प्रसिद्ध कहानी

 

 

शिवपुराण की प्रसिद्ध कहानीhttps://bhakti.org.in/shivji-aur-bhasmasur-ki-rahasyamayi-katha/

शिवपुराण की कथाएँ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे मानव स्वभाव, भक्ति और अहंकार के परिणामों की गहराई को भी दर्शाती हैं। ऐसी ही एक अद्भुत कथा है — शिव जी और भस्मासुर की रहस्यमयी कहानी, जो इस बात का प्रतीक है कि शक्ति का दुरुपयोग अंततः विनाश का कारण बनता है।

शिव जी और भस्मासुर की कथा जानिए जिसमें भक्ति, अहंकार और भगवान विष्णु की माया का अद्भुत संगम है। एक प्रेरणादायक पौराणिक कथा।शिवपुराण में अनेक रहस्यमयी और प्रेरणादायक कथाएँ मिलती हैं। ऐसी ही एक प्रसिद्ध कथा है भस्मासुर और भगवान शिव की। यह कहानी न केवल रोमांचक है, बल्कि यह हमें सिखाती है कि शक्ति का दुरुपयोग अंततः विनाश की ओर ले जाता है।शिव जी जब प्रकट हुए तो भस्मासुर ने उनसे एक अनोखा वरदान माँगा – “हे प्रभु, मुझे यह वरदान दीजिए कि मैं जिसके सिर पर हाथ रखूँ, वह तुरंत भस्म हो जाए।”भोलेनाथ ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर बिना सोचे-समझे उसे यह वरदान दे दिया। शिव जी तो “भोले” कहलाते हैं, वे भक्त की भावना को देखते हैं, न कि उसके मन के छल को।

भस्मासुर का जन्म और तपस्या

एक समय की बात है, एक राक्षस था जिसका नाम भस्मासुर था। वह बहुत बलवान और घमंडी था। उसे अपने बल पर अभिमान था, लेकिन फिर भी वह चाहता था कि उसे ऐसी शक्ति मिले जिससे वह अजेय बन जाए। इस लालसा में उसने भगवान शिव की आराधना प्रारंभ की।भस्मासुर ने कई वर्षों तक कठोर तप किया। वह न तो कुछ खाता था, न सोता, केवल “ओम नमः शिवाय” का जाप करता रहता था। उसके तप से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और बोले “भस्मासुर, मैं तुम्हारे तप से अत्यंत प्रसन्न हूँ। मांगो, क्या वरदान चाहिए तुम्हें?”

भस्मासुर का वरदान

भस्मासुर ने बड़ी चतुराई से कहा —“हे महादेव! मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मैं जिसके सिर पर हाथ रख दूँ, वह तुरंत भस्म हो जाए।”भोलेनाथ करुणामय हैं, वे भक्तों की परीक्षा नहीं लेते — बस उनकी श्रद्धा देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। उन्होंने कहा तथास्तु!”शिव जी को क्या पता था कि भस्मासुर इस वरदान का उपयोग उन्हीं पर करने वाला है।

वरदान का दुरुपयोग

वरदान मिलते ही भस्मासुर का चेहरा बदल गया। उसके मन में दुष्ट विचार आने लगे। उसने सोचा “अब तो मैं सबसे बड़ा देवता बन सकता हूँ। पहले शिव को ही भस्म कर दूँ।”इतना सोचकर वह हँसने लगा और बोला —हे भोलेनाथ, अब आपकी शक्ति की परीक्षा लेता हूँ!”शिव जी यह सुनकर चौंक गए। भस्मासुर ने जैसे ही उनके सिर पर हाथ रखने की कोशिश की, शिव जी तुरंत अदृश्य हो गए और भागने लगे। भस्मासुर उनके पीछे-पीछे पूरे ब्रह्मांड में दौड़ा। शिव जी ने सृष्टि के हर लोक में शरण ली, लेकिन भस्मासुर हार नहीं मान रहा था।

भगवान विष्णु का रूपांतरण

अंततः भगवान शिव ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। विष्णु जी ने मुस्कराकर कहा —यह कार्य बुद्धि से होगा, बल से नहीं।”फिर उन्होंने मोहिनी का सुंदर रूप धारण किया। वह ऐसी अप्सरा बनी कि भस्मासुर का मन मोह गया। मोहिनी ने अपनी अद्भुत सुंदरता और नृत्य से भस्मासुर को मोहित कर लिया।भस्मासुर ने मोहिनी से कहा “हे सुंदरि! तुम कौन हो? मुझसे विवाह कर लो।”मोहिनी ने मुस्कराकर कहा “ठीक है, लेकिन पहले तुम्हें मेरे नृत्य की हर मुद्रा की नकल करनी होगी। जो मैं करूँ, वही तुम भी करो।”भस्मासुर सहमत हो गया। मोहिनी ने नृत्य आरंभ किया। वह एक-एक करके अद्भुत मुद्राएँ दिखाने लगी। भस्मासुर उसके पीछे-पीछे वही करने लगा।

अंत का रहस्य

नृत्य के बीच मोहिनी ने धीरे-धीरे अपना हाथ अपने सिर की ओर उठाया। भस्मासुर ने भी वैसा ही किया — और जैसे ही उसका हाथ उसके सिर पर गया, वह स्वयं भस्म हो गया!मोहिनी का रूप तुरंत विलीन हुआ और वहाँ भगवान विष्णु प्रकट हुए। उसी समय भगवान शिव भी वहाँ आए। उन्होंने विष्णु जी को प्रणाम करते हुए कहा “नारायण, आपने मेरे लिए बड़ी कृपा की।”भगवान विष्णु ने उत्तर दिया —
“यह अहंकार का अंत था, भोलेनाथ। शक्ति तभी शुभ होती है जब उसका उपयोग धर्म के मार्ग में किया जाए।”

इस कथा का संदेश

भस्मासुर की कहानी हमें यह सिखाती है कि शक्ति और वरदान तभी सार्थक हैं जब उनका उपयोग विनम्रता और सद्भाव से किया जाए।यदि किसी के मन में अभिमान और लालच है, तो वह अपनी ही शक्ति से नष्ट हो जाता है। यही कारण है कि भगवान शिव को भोलेनाथ कहा जाता है — क्योंकि वे हर भक्त को वरदान तो देते हैं, परंतु उसका उपयोग कैसा होगा, यह भक्त के कर्म पर निर्भर करता है।

भस्मासुर की कथा आज भी हमें यह याद दिलाती है कि ईश्वर से वरदान मांगना सरल है, परंतु उसका सदुपयोग करना कठिन
जो व्यक्ति अहंकार में आकर दूसरों को हानि पहुँचाना चाहता है, उसका अंत उसी के कर्मों से होता है। भगवान शिव और भगवान विष्णु की यह लीलात्मक कथा सिखाती है कि बुद्धि, भक्ति से श्रेष्ठ है जब वह धर्म के लिए प्रयुक्त हो।

 

 

 

 

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