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मिथिला से अयोध्या तक राम–सीता विवाह का अलौकिक इतिहास

Lord Ram and Mata Sita performing vivah rituals with divine glow in Mithila.

he sacred wedding of Bhagwan Shri Ram and Mata Sita in Mithila.

मिथिला से अयोध्या तक राम–सीता विवाह का अलौकिक इतिहास 

The sacred wedding of Bhagwan Shri Ram and Mata Sita in Mithila. https://bhakti.org.in/mithila-ayodhya-vivah/

भूमिका जहाँ प्रेम बनता है धर्म का आधार

भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह केवल एक सांसारिक बंधन नहीं, बल्कि दो दिव्य आत्माओं का मिलन है जिन्होंने आगामी युगों को आदर्श, धर्म और मर्यादा की दिशा दी। 25 नवंबर के पावन अवसर पर मनाया जाने वाला राम–सीता विवाह दिवस भक्तों को उस अद्भुत इतिहास की याद दिलाता है जहाँ प्रेम त्याग, तपस्या और धर्म के साथ जुड़कर एक अनोखी लीला बन जाता है।मिथिला की धरती जिस पर ज्ञान, शील और संस्कारों की नदियाँ बहती थीं—आज भी उस दिव्य विवाह की गूँज सुनाई देती है। और अयोध्या, जहाँ राम का राज्य धर्म और न्याय का प्रतीक था, इस अलौकिक मिलन को युगों से उत्सव की तरह मनाती आ रही है।इस पूरी कथा में हर चरित्र, हर घटना और हर कर्म—एक ऐसा पाठ है जिसके माध्यम से जीवन को दिशा, आदर्श और प्रेरणा मिलती है।

जनकपुर की पावन भूमि – जहाँ मिला था अलौकिक वरदान

माता सीता का जन्म जनकपुर में हुआ। महाराज जनक ने एक बार राजमहल के बाहर यज्ञभूमि में भूमि को हल चलाया। उसी दौरान माता सीता धरती से प्रकट हुईं।
क्योंकि वे स्वयं भूमि देवी की अवतार थीं, इसलिए उन्हें भूमिजा कहा गया।राजा जनक ने उन्हें स्नेह, शिक्षा और संस्कारों से सींचा। जनकपुर हमेशा से कला, साहित्य और ज्ञान की भूमि रहा है, इसलिए सीता माता ने वहाँ धार्मिकता और कर्तव्य का अद्भुत संतुलन सीखा।जनकपुर की यह पावन भूमि राम–सीता विवाह का प्रारंभिक केंद्र बनी।

 शिव धनुष — जनक की प्रतिज्ञा और स्वयंवर की घोषणा

महाराज जनक के पास भगवान शिव का एक अद्भुत धनुष था, जिसे कोई भी साधारण मनुष्य उठा तक नहीं सकता था।राजा जनक ने प्रतिज्ञा की:“जो इस शिव धनुष को उठाकर इसे चढ़ा देगा, वही मेरी पुत्री सीता का वर होगा।”इसलिए देश-विदेश के अनेक राजाओं ने धनुष को उठाने का प्रयास किया, लेकिन कोई सफल नहीं हुआ।सभी के मन में एक ही प्रश्न था—क्या कोई ऐसा भी वीर होगा जो इस धनुष को उठा सके?इसी प्रतिज्ञा के कारण स्वयंवर का आयोजन हुआ और यह स्वयंवर इतिहास के सबसे दिव्य क्षणों में गिना जाता है।

 राम और लक्ष्मण का जनकपुर आगमन — एक नया अध्याय

गुरुदेव विश्वामित्र के मार्गदर्शन में राम और लक्ष्मण राजा जनक के यज्ञ में आए थे।जब वे जनकपुर की गलियों में कदम रखते हैं, तो वातावरण में एक अनोखा आकर्षण फैल जाता है।सीता माता, जो यज्ञभूमि के निकट आई थीं, पहली बार राम को देख कर ठिठक जाती हैं।उनका हृदय कह उठता है—“यही मेरे हृदय के स्वामी हैं।”यह घटना राम–सीता विवाह की नींव बनती है।राम भी सीता के शांत सौन्दर्य, करुणा और तेज को देखकर मन ही मन उनसे प्रभावित हो जाते हैं।

 धनुष भंग — जिसने बदल दिया इतिहास

स्वयंवर सभा में अनेक बलवान राजा, वीर और शूरवीर आए।हर कोई धनुष उठाने का प्रयास करता है, लेकिन धनुष एक अंगुल भी नहीं हिलता।फिर विश्वामित्र ने राम से कहा—
“राम! तुम भी प्रयास करो।”राम ने बिना अहंकार के, शांत मन से आगे बढ़कर धनुष को उठाया।सभा मौन हो गई।पलभर में राम ने धनुष उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाई—और तभी धनुष भंग की ध्वनि गूँज उठी। धनुष टूटते ही—

धरती हिल उठी,

देवी-देवताओं ने पुष्पवर्षा की,

ऋषियों ने जयघोष किया,

सीता माता ने प्रसन्न होकर राम को मन ही मन स्वीकार कर लिया।

राजा जनक ने कहा—
“अब मेरी प्रतिज्ञा पूरी हुई। यही मेरी पुत्री सीता के योग्य वर हैं।”

 गुरु वशिष्ठ और राजा दशरथ का शुभ मिलन

धनुष भंग के बाद विवाह की तैयारी करने के लिए महाराज दशरथ को जनकपुर बुलाया गया।दशरथ जी अपने सभी पुत्रों और परिवार के साथ दिव्य बारात लेकर जनकपुर पहुँचे।दोनों महान राजाओं—दशरथ और जनक—का मिलन अद्भुत था।गुरु वशिष्ठ और गुरु शतानंद ने मिलकर विवाह संस्कारों की रूपरेखा तैयार की।

यह भी निर्णय हुआ कि—

राम–सीता

लक्ष्मण–ऊर्मिला

भरत–मांडवी

शत्रुघ्न–श्रुतकीर्ति

का विवाह एक ही मुहूर्त में होगा।इस तरह यह केवल एक विवाह नहीं बल्कि चार दिव्य विवाहों का महोत्सव बन गया।

 बारात का जनकपुर में भव्य स्वागत

अयोध्या से निकलने वाली बारात देवताओं के आशीर्वाद से भरी हुई थी।जनकपुर में लोग घरों के बाहर दीपक, फूलों की मालाएँ और रंगोली बनाकर खड़े थे।महिलाएँ मंगलगीत गा रही थीं—
“अरे राम लखन जनकपुर आवत, बाजत बधाई…”जब बारात जनकपुर पहुँची, तो सड़कों पर लोगों की खुशी देखते ही बनती थी।

सीता–राम का मंडप — जहाँ दो आत्माएँ एक हुईं

मंडप को फूलों, दीपों और सुवर्ण आभूषणों से सजाया गया।
वेदिक मंत्रों की गूँज चारों ओर फैली।

विवाह की मुख्य रस्में—

वरमाला

कन्यादान

फेरे

सप्तपदी

आशीर्वाद

सभी दिव्य वातावरण में सम्पन्न हुए।जब सीता माता ने राम के गले में वरमाला डाली, तो देवताओं ने पुष्प वर्षा की।राम ने भी माता सीता को प्रेम और मर्यादा से स्वीकार किया।कन्यादान के समय राजा जनक के शब्द आज भी अमर हैं—“आज मैं अपनी कन्या सीता को तुम्हें सौंपता हूँ। उसे धर्म, प्रेम और मर्यादा से निभाना।”राम ने हाथ जोड़कर कहा“मैं सीता का सदैव सम्मान करूँगा और उसे जीवनभर अपने हृदय में स्थान दूँगा।”

चार विवाह – चार आदर्श

राम–सीता का विवाह धर्म और मर्यादा का प्रतीक है।लक्ष्मण–ऊर्मिला का विवाह त्याग और समर्पण का उदाहरण है।भरत–मांडवी का विवाह नीति और विनम्रता का प्रतीक है।शत्रुघ्न–श्रुतकीर्ति का विवाह अनुशासन का स्वरूप है।इसलिए इस दिन को चारों विवाहों का उत्सव भी माना जाता है।

 विवाह के बाद — विदाई और अयोध्या प्रस्थान

विवाह सम्पन्न होने के बाद जनकपुर में उत्सव कई दिनों तक चलता रहा।जब विदाई का समय आया, तो माता सीता अपनी सखियों और परिवार को देखकर भावुक हो गईं।
राजा जनक ने आशीर्वाद दिया—“सीता! तुम धर्म की पथप्रदर्शक बनो, और अपने पति राम का जीवन गौरव बनाओ।”बारात जब अयोध्या के लिए निकली, तो लोग भावनाओं से भर उठे।जनकपुर से अयोध्या का यह मार्ग पवित्र माना जाता है।

 अयोध्या में स्वागत — नई शुरुआत

अयोध्या में लोगों ने राम–सीता का भव्य स्वागत किया।नगर को फूलों और दीपों से सजाया गया।हर तरफ मंगलगीत गूँज रहे थे।यह विवाह अयोध्या के इतिहास में एक ऐसा पर्व बन गया जिसने सदियों तक लोगों को प्रेम, धर्म और आदर्श की शिक्षा दी।

25 नवंबर क्यों मनाया जाता है विशेष?

कुछ परंपराओं में विवाह पंचमी इस तिथि को मनाई जाती है, जो राम–सीता विवाह की स्मृति में होती है।
इस दिन—

मंदिरों में विशेष पूजा

भजन–कीर्तन

रामायण पाठ

विवाह मंडप सजाना

दिव्य झाँकियाँ निकालना

आदि परंपराएँ निभाई जाती हैं।

यह दिन हमें याद दिलाता है कि—प्रेम तब दिव्य बनता है जब उसमें धर्म, मर्यादा और त्याग हो।

निष्कर्ष  राम–सीता विवाह का संदेश

राम–सीता विवाह हमें यह सिखाता है:

प्रेम में मर्यादा होनी चाहिए

रिश्तों में विश्वास हो

जीवन में लक्ष्य और कर्तव्य हों

आदर्श कभी न छोड़ें

राम और सीता का विवाह एक जीवन-मंत्र है जो सदियों से मानवता को प्रेरित कर रहा है।

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