“क्या सच में कलियुग में भगवान के दर्शन होते हैं? वो रहस्य जिसे जानकर आपका दिल काँप उठेगा!”
वो सवाल जो हर इंसान के दिल को चीर देता है
हम सबके मन में एक सवाल अक्सर उठता है—“क्या आज के समय में, कलियुग में, वास्तव में भगवान के दर्शन हो सकते हैं?”ये सवाल सिर्फ एक जिज्ञासा नहीं है…
ये उस आत्मा की पुकार है जो हर रोज़ जीवन की ऊँच-नीच में थक जाती है,जो कभी मंदिर की घंटियों में,कभी आरती की लौ में,कभी अकेली रात में अपने दिल की धड़कनों में एक दिव्य स्पर्श खोजती है।कुछ लोग कहते हैं—“कलियुग में भगवान मिलते ही नहीं।”कुछ कहते हैं—“दर्शन अब सिर्फ पुरानी किताबों में होते हैं।”और कुछ तो ये भी मानते हैं किईश्वर सिर्फ चमत्कारों में रहने लगे हैं,मनुष्यों के जीवन में नहीं।पर क्या ये सच है?या सच्चाई कुछ और है—कुछ इतनी गहरी कि उसे समझने के लिए मन को मौन होना पड़ता है।आज आप उसी रहस्य के भीतर उतरेंगे…एक ऐसी यात्रा पर,जहाँ आपको पता चलेगा—भगवान कहीं नहीं गए…हम दूर चले गए।
युग बदलते हैं, भगवान नहीं
भगवान त्रेता में भी थे,द्वापर में भी थे,और आज भी हैं।फर्क बस इतना है त्रेता के लोग सरल थे,द्वापर के लोग भक्तिमय थे,कलियुग का मन… ज़रा थका हुआ है।हमारी आँखें मोबाइल की रोशनी में चमकती हैं,पर आत्मा अंधेरे में भटकती है।हमारे कान शोर से भरे हैं,पर दिव्यता की आवाज़ सुनने का समय नहीं।इसलिए नहीं कि भगवान नहीं मिलते बल्कि इसलिए कि अब मिलने वाला मन अंदर नहीं जा पाता।
क्यों कहते हैं कि कलियुग में भगवान मिलते नहीं?
सदियों से मनुष्य बदलता रहा,पर भगवान नहीं बदले।जो चीज़ बदली है, वो हैहमारा मन।
मन में शोर बहुत है
जहाँ भीतर हजारों विचार भाग रहे हों,वहाँ ईश्वर की हल्की, धीमी, करुण आवाज़ कैसे सुनाई दे?
हमारा विश्वास पल-पल डगमगाता है
कभी आस्था,कभी शक,कभी डर,कभी उम्मीद।ये लहरें दिल को स्थिर नहीं रहने देतीं।
भक्ति अब “शर्तों” वाली हो गई है
“इच्छा पूरी हुई तो भगवान अच्छे।नहीं हुई तो भगवान दूर।”ऐसी भक्ति में सच्चा समर्पण कहाँ?
कर्मों का बोझ आत्मा पर पड़ा है
बुरे कर्म परदा बन जाते हैं।और परदे के पीछे दिव्य स्वरूप छिप जाता है।
फिर भी कलियुग में दर्शन सबसे आसान हैं (गूढ़ रहस्य)
ये बात सुनकर आप चौंकेंगे—कलियुग भगवान को पाने का सबसे आसान युग है।न हजार साल की तपस्या,न भयंकर योग,न जंगलों की यात्राएँ,न कठिन गृहत्याग—कुछ भी जरूरी नहीं।क्योंकि इस युग मेंमनुष्य कमजोर है,डरा हुआ है,थका हुआ है,टूटा हुआ है…और जिस बच्चे का दिल टूटता है माँ-बाप उसी की पुकार सबसे पहले सुनते हैं।भगवान कहते हैं“कलियुग में मेरा नाम ही नाव है।”बस एक बार,एक बार सच्चे मन से पुकार लो—“हे प्रभु”और आप देखेंगे कि हवा भी बदल जाती है।
कलियुग में दिव्य दर्शन की वास्तविक घटनाएँ
कई उदाहरण ऐसे हैं जिन्हें कोई नकार नहीं सकता—
शिर्डी साईं बाबा का प्रकट होना
वो साधारण रूप में आये,पर दिव्य शक्तियों के साथ रहे।पूरे जीवन उन्होंने दिखाया किईश्वर देह में भी आ सकते हैं…और बिना देह के भी।
हिमालय में साधकों को प्रकाश रूप दिखाई देना
कई संतों ने गवाही दी”ध्यान के चरम पर दिव्य प्रकाश उतरता है।”ये कल्पना नहीं…अनुभव है।
कठिन समय में अदृश्य सहायता
कई भक्त ऐसा बताते हैं—जब जीवन-मरण का संकट आया,तो किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें बचाया।क्या ये संयोग है?या ईश्वर की कृपा?जो दिल से पूछेगा,वही समझेगा।
भगवान के दर्शन होते कैसे हैं? (गुप्त, सरल, स्पष्ट)
भगवान को पाने के पाँच रास्ते—
मन का शांत होना
आँधी में पानी में कोई प्रतिबिंब नहीं दिखता।शांत जल में सब दिखाई देता है।मन शांत—भगवान स्पष्ट।
हृदय का पिघलना
जब दिल सख़्त हो,क्रोध भरा हो,द्वेष भरा हो—भगवान दिल में कैसे प्रवेश करेंगे?दिल नरम हुआदिव्यता उतरने लगती है।
संकेत मिलना शुरू होते हैं
अचानक मधुर सुगंध
बिजली के बिना प्रकाश
घंटे की ध्वनि
भीतर शांति की गहरी लहर
ये संकेत बताते हैं”कोई दिव्य शक्ति पास है।”
करुणा की अनुभूति
अचानक दूसरों की पीड़ा देखने लगना।दिल में softness आना।ये दर्शाता हैमनुष्य दिव्य हो रहा है।
फिर दर्शन—आँखों से या अनुभव से
कुछ लोग ईश्वर को प्रकाश रूप में देखते हैं।कुछ सपनों में।कुछ ध्यान में।और कुछ…अपने जीवन में हो रहे चमत्कारों में।
जब भगवान स्वयं प्रकट होते हैं (जिस अवस्था में मन काँप जाता है)
संतों ने बताया है कि जब दिव्यता उतरती है—
समय रुक सा जाता है
शरीर हल्का महसूस होता है
आँखें खुद-ब-खुद बंद हो जाती हैं
दिल में अजीब सी मिठास उतरती है
भय गायब हो जाता है
मन में गूँज उठता है—
“तुम अकेले नहीं हो, मैं यहाँ हूँ।”
ये एहसास ही भगवान के दर्शन का आरंभ है।देह रूप…प्रकाश रूप…ऊर्जा रूप…अनुभूति रूप…दर्शन कई प्रकार के होते हैं।
साधारण इंसान भी दर्शन पा सकता है?
हाँ।इतिहास में जितने लोगों को दर्शन हुए—उनमें से 80% साधारण लोग थे।न राजा,न ऋषि,न विद्वान—बल्कि आम मनुष्य,जो परिवार चलाते थे,किसान थे,ग्वाले थे,लोगों की सेवा करने वाले थे।भगवान को पद नहीं चाहिए।भगवान को दिल चाहिए।और अगर आपका दिल निर्मल है,तो भगवान आपके लिए दौड़ते हुए आते हैं।
दर्शन पाने के चार असली मार्ग (सबसे प्रभावी)
नामस्मरण
“राम राम”,“ॐ नमः शिवाय”,“हरे कृष्ण”—जो भी नाम आपका अपना लगे,बस रोज़ 5 मिनट जप करें।
सेवा
किसी भी जीव को मदद करना सबसे तेज़ मार्ग है।
आभार
जो आपके पास है—उसके लिए धन्यवाद।ये ऊर्जा ईश्वर को आकर्षित करती है।
सत्य और सरलता
जहाँ सत्य है,वहाँ ईश्वर का वास है।
अंतिम सत्य जिसे जानना ज़रूरी है
भगवान तक की दूरी बहुत बड़ी नहीं।ये दूरी मात्र एक इंच है—पलकों के पीछे का अंधेरा।आप आँखें बंद करकेएक क्षण रुक जाएँ…और सच्चे मन से पुकारें—“हे मेरे परमात्मा,
एक बार अपने होने का एहसास करा दो…”तो यकीन मानिए—आपके पास कुछ न कुछ जरूर उतरता है—
शांति
ऊर्जा
प्रकाश
आँसू
कम्पन
या एक दिव्य सन्नाटा
ये सब भगवान के आने के संकेत हैं।
क्या कलियुग में भगवान के दर्शन होते हैं?
उत्तर—हाँ, बिल्कुल होते हैं।पर आँखों से पहले…दिल को खुले रहना होता है।ईश्वर हमेशा से यहीं हैं—हमारे पास,हमारी साँसों में,हमारे भीतर।बस वो चाहते हैं कि
हम एक पल रुकें…उन्हें पुकारेंऔर महसूस करें।कलियुग अँधेरा नहीं—कलियुग सबसे आसान मार्ग हैईश्वर को पाने का। https://bhakti.org.in/kalyug
