“गर्भगृह में पर्दा क्यों डाला जाता है? जानिए इस प्राचीन परंपरा का गहरा रहस्य”
जब हम किसी प्राचीन या प्रसिद्ध मंदिर में जाते हैं, तो ध्यान देंगे कि मंदिर के गर्भगृह (जहाँ देवता का मुख्य विग्रह स्थित होता है) पर अक्सर एक पर्दा या परदा लगाया जाता है। कई बार पुजारी विशेष समय पर ही उस पर्दे को हटाकर भगवान का दर्शन कराते हैं।यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि गूढ़ आध्यात्मिक, ऊर्जात्मक और वैदिक विज्ञान पर आधारित है।
आइए जानते हैं आखिर गर्भगृह में पर्दा क्यों डाला जाता है और इसके पीछे कौन-सा रहस्य छिपा है
पर सवाल यह उठता है…https://bhakti.org.in/garbhgriha-mystery/
आख़िर ये पर्दा क्यों डाला जाता है?
क्या भगवान को भी विश्राम की आवश्यकता होती है?
क्या मूर्ति में भी जीवन है?
उत्तर है — हाँ।
1. गर्भगृह क्या होता है?
“गर्भगृह” शब्द दो भागों से मिलकर बना है —“गर्भ” यानी केंद्र या मूल स्रोत, और “गृह” यानी स्थान।यह मंदिर का सबसे पवित्र भाग होता है जहाँ देवता का निवास माना जाता है।
यह स्थान सृष्टि की मूल ऊर्जा, दिव्यता और चेतना का केंद्र होता है।जिस प्रकार माँ के गर्भ में जीवन विकसित होता है, वैसे ही मंदिर के गर्भगृह में दिव्य ऊर्जा का निर्माण और संरक्षण होता है।
2. गर्भगृह में ऊर्जा का अत्यधिक संचार
वैदिक वास्तुशास्त्र के अनुसार, मंदिर का गर्भगृह ऐसा बनाया जाता है कि वहाँ पर कॉस्मिक एनर्जी (Cosmic Energy) का अधिकतम संचार हो।यह स्थान इतना ऊर्जावान होता है कि वहाँ निरंतर मंत्रोच्चारण, अग्नि, दीपक और ध्वनि की तरंगें ऊर्जा को स्थिर रखती हैं।अगर यह ऊर्जा बिना नियंत्रण के फैल जाए, तो सामान्य मनुष्य का शरीर और मन उसे सहन नहीं कर पाएंगे।इसी कारण से गर्भगृह पर पर्दा डाला जाता है — ताकि उस दिव्य ऊर्जा का संतुलन बना रहे और वह धीरे-धीरे भक्तों तक पहुँचे।
3. पर्दा — ऊर्जा संतुलन का साधन
मंदिरों में लगाया जाने वाला पर्दा केवल सजावट नहीं है। यह एक ऊर्जा फिल्टर (Energy Filter) की तरह काम करता है।जब पुजारी आरती या पूजा के बाद पर्दा हटाते हैं, तो भक्तों को सीमित और सुरक्षित मात्रा में उस ऊर्जा का अनुभव होता है।
जैसे सूरज की सीधी किरणें आँखों को झुलसा सकती हैं, उसी तरह बिना संतुलन के दिव्य ऊर्जा भी शरीर पर प्रभाव डाल सकती है।
इसलिए पर्दा एक सुरक्षा परत का कार्य करता है।
4. प्रतीकात्मक अर्थ – “माया का पर्दा”
हिन्दू दर्शन में पर्दा केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक प्रतीक भी है।गर्भगृह में पर्दा यह दर्शाता है कि ईश्वर और जीवात्मा के बीच माया (अज्ञान) का एक आवरण है।जब तक यह पर्दा नहीं हटता, तब तक जीव भगवान के वास्तविक स्वरूप को नहीं देख पाता।जब भक्त अपने अहंकार, वासना और अज्ञान का पर्दा हटाता है, तभी भगवान का साक्षात्कार होता है।इसीलिए जब पुजारी पर्दा हटाकर दर्शन कराते हैं, तो यह संकेत होता है कि “अब माया हट गई और भगवान के साक्षात दर्शन संभव हैं।”
5. गर्भगृह के वातावरण की पवित्रता बनाए रखना
गर्भगृह अत्यंत संवेदनशील स्थान होता है। वहाँ का तापमान, प्रकाश और शुद्धता नियंत्रित रहती है।पर्दा इस पवित्र वातावरण को बाहरी प्रदूषण, धूल या अशुद्ध तरंगों से बचाता है।
जब हजारों भक्त आते-जाते हैं, तब यह पर्दा ऊर्जा को केंद्रित और पवित्र बनाए रखता है।
6. पुजारी ही क्यों करते हैं पर्दा उद्घाटन?
गर्भगृह में प्रवेश केवल मुख्य पुजारी (अर्चक) को ही अनुमत होता है क्योंकि वे शुद्धिकरण विधियों से गुज़रते हैं।उनका मन, शरीर और वाणी पवित्र रखी जाती है।इसलिए वे ही पर्दा हटा सकते हैं, क्योंकि वे उस ऊर्जा के संपर्क में आने के लिए तैयार रहते हैं।साधारण व्यक्ति को यह सीधी ऊर्जा नुकसान पहुँचा सकती है, इसलिए दर्शन केवल पर्दा खुलने पर ही होते हैं।
7. प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख
अगम शास्त्र और शिल्प शास्त्र में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि —
“गर्भगृह देव का निवास है, वहाँ प्रकाश मंद होना चाहिए, और ऊर्जा को धारण करने के लिए पर्दा आवश्यक है।”
यह परंपरा दक्षिण भारत के मंदिरों में विशेष रूप से दिखाई देती है — जैसे तिरुपति बालाजी, श्री रंगनाथ स्वामी, मदुरै मीनाक्षी मंदिर इत्यादि।
हर मंदिर में दर्शन के निश्चित समय तय किए जाते हैं क्योंकि ऊर्जा के प्रवाह के अनुसार ही देवता का “जागरण” या “विश्राम” होता है।
8. पर्दा और भक्ति का मनोवैज्ञानिक संबंध
पर्दा हटने का क्षण भक्त के लिए अत्यंत भावनात्मक होता है।जब घंटियाँ बजती हैं, शंखनाद होता है और पुजारी पर्दा हटाता है, तो भक्त का मन तुरंत भगवान से जुड़ जाता है।
यह क्षण उसे दिव्य ऊर्जा से स्पर्श कराता है।
यह भाव हमें सिखाता है कि —
भगवान तक पहुँचने के लिए संयम, प्रतीक्षा और श्रद्धा आवश्यक है।
9. पर्दे का रंग और उसका अर्थ
मंदिरों में पर्दे के रंग का भी महत्व होता है —
लाल या केसरिया रंग – शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक
पीला रंग – ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक
सफेद रंग – शांति और पवित्रता का संकेत
हरे या नीले रंग – संरक्षण और संतुलन का प्रतीक
रंग भी उस मंदिर की ऊर्जा के अनुसार चुना जाता है ताकि वातावरण का संतुलन बना रहे।
10. आधुनिक दृष्टि से इसका महत्व
अगर हम वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो मंदिरों का निर्माण इस तरह होता है कि गर्भगृह मैग्नेटिक पॉइंट पर स्थित होता है।यहाँ पृथ्वी की चुंबकीय तरंगें (Geomagnetic Waves) अधिक होती हैं।
पर्दा इन तरंगों के प्रवाह को नियंत्रित करता है ताकि ऊर्जा का फोकस देव प्रतिमा पर बना रहे।इस प्रकार, पर्दा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि ऊर्जा विज्ञान और वास्तुशास्त्र का भी आधार है।
11. पर्दा – आत्मा और परमात्मा के बीच का अंतर
भक्ति का अंतिम रहस्य यही है कि जब तक भीतर का पर्दा नहीं हटेगा, तब तक सच्चा “दर्शन” संभव नहीं।यह पर्दा हमारे भीतर के अज्ञान, क्रोध, लोभ और अहंकार का प्रतीक है।
जब हम इन भावनाओं से ऊपर उठ जाते हैं, तब हमारा हृदय “गर्भगृह” बन जाता है और भगवान उसमें प्रकट होते हैं।
“पर्दा हटे मन के भीतर, तभी प्रभु का दर्शन होता है।”
गर्भगृह में पर्दा डालने की परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विज्ञान पर आधारित है।यह ऊर्जा, संतुलन, पवित्रता और भक्ति का सुंदर मेल है।जब पुजारी पर्दा हटाकर भगवान के दर्शन कराते हैं, तो वह केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि एक संदेश है —
“भक्तो, अपने मन के पर्दे हटाओ, ईश्वर सदा तुम्हारे समीप हैं।
