शिव जी और भस्मासुर की कथा जानिए जिसमें भक्ति, अहंकार और भगवान विष्णु की माया का अद्भुत संगम है। एक प्रेरणादायक पौराणिक कथा।
शिवपुराण में अनेक रहस्यमयी और प्रेरणादायक कथाएँ मिलती हैं। ऐसी ही एक प्रसिद्ध कथा है भस्मासुर और भगवान शिव की। यह कहानी न केवल रोमांचक है, बल्कि यह हमें सिखाती है कि शक्ति का दुरुपयोग अंततः विनाश की ओर ले जाता है।
प्राचीन काल में एक राक्षस था जिसका नाम था भस्मासुर। वह अत्यंत शक्तिशाली बनने की इच्छा रखता था और इसी उद्देश्य से उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की। उसकी तपस्या इतनी कठोर और निष्ठा से भरी थी कि अंततः भगवान शिव उससे प्रसन्न हो गए।
शिव जी जब प्रकट हुए तो भस्मासुर ने उनसे एक अनोखा वरदान माँगा – “हे प्रभु, मुझे यह वरदान दीजिए कि मैं जिसके सिर पर हाथ रखूँ, वह तुरंत भस्म हो जाए।”
भोलेनाथ ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर बिना सोचे-समझे उसे यह वरदान दे दिया। शिव जी तो “भोले” कहलाते हैं, वे भक्त की भावना को देखते हैं, न कि उसके मन के छल को।
भस्मासुर का अहंकार:
वरदान प्राप्त करते ही भस्मासुर का स्वभाव बदल गया। उसके भीतर अहंकार भर गया और वह स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने लगा। उसने सोचा कि क्यों न इस वरदान की शक्ति को शिव जी पर ही आजमाया जाए।वह शिव जी की ओर दौड़ा और उनके सिर पर हाथ रखने का प्रयास करने लगा।
शिव जी का पलायन:
भस्मासुर की इस कपटी भावना को देख शिव जी अत्यंत व्याकुल हो गए और अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। संपूर्ण ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। देवता भी चिंतित हो उठे।
नारायण की लीला:
जब शिव जी को संकट में देखा, तो भगवान विष्णु ने एक सुंदर अप्सरा का रूप धारण किया और मोहिनी बनकर भस्मासुर के सामने प्रकट हुए। मोहिनी की सुंदरता देख भस्मासुर मोहित हो गया।
चतुराई से विनाश:
मोहिनी ने उसे नृत्य में लुभाया और कहा, “यदि तुम सच में महान हो, तो मेरी तरह नृत्य करके दिखाओ।” भस्मासुर मान गया और नाचने लगा।
मोहिनी ने चतुराई से ऐसा नृत्य किया कि उसने अपने हाथ को अपने ही सिर पर रखने का अभिनय किया। भस्मासुर ने भी वही दोहराया – और परिणामस्वरूप वह स्वयं ही भस्म हो गया।
कथा की सीख:
यह कथा हमें सिखाती है कि
1. अहंकार विनाश की जड़ है।
2. शक्ति का उपयोग विवेक और सद्भाव से करना चाहिए।
3. ईश्वर की कृपा पाने से अधिक, उसका सदुपयोग करना महत्वपूर्ण होता है।