मृत्यु का महत्व – अगर मृत्यु न होती तो क्या होता?"

मृत्यु का महत्व – अगर मृत्यु न होती तो क्या होता?”

मृत्यु का महत्व – अगर मृत्यु न होती तो क्या होता?”

मृत्यु का महत्व – अगर मृत्यु न होती तो क्या होता?"
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जब कोई अपनों को खोता है… तो सबसे पहला प्रश्न यही उठता है – “मृत्यु क्यों आती है?”क्यों वो चेहरे जो कभी मुस्कुराते थे, अब केवल तस्वीरों में रह जाते हैं?क्यों वो आवाजें जो हमारे जीवन का हिस्सा थीं, अब एक शून्य में समा जाती हैं?

क्या मृत्यु वास्तव में अंत है?

या यह एक आरंभ है – आत्मा की उस यात्रा का जो शरीर से परे है?



हिंदू दर्शन कहता है – “न जायते म्रियते वा कदाचित्।”
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
शरीर मिटता है, पर आत्मा अनंत है।


मृत्यु आवश्यक है… क्योंकि यह जीवन को अर्थ देती है।कल्पना कीजिए, अगर मृत्यु न होती, तो क्या हम कभी समय की कद्र करते?
क्या हम अपने संबंधों को, अपने कर्मों को, अपने जीवन को इतनी गहराई से जीते?

मृत्यु हमें याद दिलाती है कि यह जीवन अनमोल है।हर सांस, हर क्षण, एक उपहार है।हर दिन एक अवसर है – प्रेम करने का, सीखने का, बढ़ने का, और मोक्ष की ओर बढ़ने का।


हमारे ऋषियों ने कहा – “मरणं प्रकृति: शरीरिणां।”मरना प्रकृति का नियम है।जो जन्मा है, वो मरेगा।लेकिन जो जान गया है स्वयं को… उसके लिए मृत्यु भी एक उत्सव बन जाती है।

मृत्यु इस संसार की एक याद दिलाने वाली घंटी है –कि यह शरीर केवल एक वस्त्र है,और आत्मा यात्री है… जो एक शरीर से दूसरे शरीर की यात्रा करती है,जब तक वो परमात्मा में विलीन न हो जाए।
 

सोचिए… अगर मृत्यु न होती,तो क्या संतों की वाणी इतनी प्रभावशाली होती? क्या गीता का ज्ञान हमें झकझोरता?

भगवद गीता कहती है –
“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय,
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।”
जैसे हम पुराने वस्त्र छोड़ कर नए वस्त्र धारण करते हैं,वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़ कर नया शरीर लेती है।

प्रकृति का हर कण यही कहता है –जो उत्पन्न हुआ है, वो नष्ट होगा…और जो नष्ट होता है, वो फिर से उत्पन्न होगा।

यह चक्र है – जीवन और मृत्यु का,जो सृष्टि को संतुलन देता है।मृत्यु डरावनी नहीं है…डर तो इस बात का है कि हम उसे समझ नहीं पाए।
मृत्यु केवल एक द्वार है –जहां से आत्मा अपनी अगली यात्रा के लिए निकलती है।और यह जानना… कि मृत्यु निश्चित है…हमें वर्तमान को पूरी तरह जीने की प्रेरणा देता है।

जीवन का अंतिम उद्देश्य केवल जीना नहीं है,बल्कि स्वयं को जानना है, आत्मा को पहचानना है,और परमात्मा से एकाकार हो जाना है।
जब तक हम मृत्यु को स्वीकार नहीं करते,हम जीवन को गहराई से समझ नहीं सकते।


इसलिए मृत्यु आवश्यक है।
क्योंकि यही हमें याद दिलाती है –
कि हम केवल शरीर नहीं हैं…
हम आत्मा हैं – चैतन्य, शाश्वत, और अमर।

“मृत्यु अंत नहीं… एक नवीन आरंभ है।”
“ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।”]

 

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